ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनकी विभिन्न वाट्सएप ग्रुपो में
ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनकी विभिन्न वाट्सएप ग्रुपो में
प्रतिदिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनकी विभिन्न वाट्सएप गृपों में प्रातः 10:00 बजे किया गया जिसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किए
सत्संग परिचर्चा में पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी की
सूर्य जी की 7, गणेश जी की 3, विष्णु जी की 4, दुर्गा जी की 1, हनुमान जी की 3, शिवलिंग की अर्ध परिक्रमा का विधान है। इन अलग - अलग संख्याओं का क्या विधान तथा महत्व है बताने की कृपा करेंगे बाबा जी, बाबा जी ने बताया कि कोई भी देवी देवता चाहे वह दुर्गा जी हो गणेश जी हो श्री नारायण हो उनकी हम एक से लेकर 108 या अपने मन के अनुसार परिक्रमा कर सकते इसमें कोई दोष नहीं लेकिन भगवान शिव की परिक्रमा अर्ध परिक्रमा है क्योंकि उनकी जलहरी से निकले हुए पानी को लांघा नहीं जाता इसे दोष लगता है
सतसंग परिचर्चा में जिज्ञासा प्रस्तुत हुई की
कुलवंति निकारहिं नारी सती।गृह आनहिं चेरि निबेरि गति।।सुत मानहिं मातु पिता तब लौं।अबलानन दीख नहीं जब लौं।।ससुरारि पिआरि लगी जब तें।रिपुरुप कुटुंब भए तब तें।।नृप पाप परायन धर्म नहीं।करि दंड बिडंब प्रजा नितहीं।। इस चौपाई पर प्रकाश डालने की कृपा करेंगे गुरु देव, इन पंक्तियों के भाव के स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि आज से 500 साल पूर्व गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस कलयुग का वर्णन कर दिया था उन्होंने उत्तरकांड में कलयुग का वर्णन करते हुए बताया कि कुल की मर्यादा को रखने वाली लाज शील धर्म को धारण करने वाली नारी का अपमान होगा आज कल जो प्रतिदिन धर्म का पालन करती तुलसी परिक्रमा करती पूजा आरती करती साड़ी पहनती माथे में बिंदी लगाती सुहाग चिन्ह को धारण करती उन स्त्रियों को पिछड़ी कहा जाता है और जो आघाडी वस्त्र पहनती हैं सुहाग चिन्हो को नहीं धारण करती इधर-उधर डोलते रहती है उनको मॉडल और पढ़ी-लिखी माना जाता है
गोस्वामी तुलसीदास जी ने विवाह उपरांत जो माता-पिता मायके में बिटिया के हस्तक्षेप करते हैं उनके विषय में भी कहा है उन पालकों को ऐसा नहीं करना चाहिए इससे उनकी गृहस्ती भी खराब होती है और उनका मान सम्मान भी घटता है
गीता शुक्ला जी इंदौर ने जिज्ञासा रखी थी भगवान का नहलाया हुआ पानी तुलसी मे डाला जाता हैं कि नहीं गुरुदेव जी बतायें
बाबा जी ने बताया कि तुलसी के बिना भगवान की पूजा अधूरी है जब तक जल में तुलसी ना डाली जाए तब तक भगवान का स्नान नहीं होता अतः भगवान के स्नान किए गए पानी को आप माता तुलसी में चढ़ा सकते हैं बस किसी भी मनुष्य के पैर आदि धोकर उस जल को कभी भी तुलसी में नहीं चढ़ाना चाहिए आप भगवान शिव का रुद्राभिषेक आदि भी कर रहे हैं तो उस जल को भी तुलसी में चढ़ाया जा सकता है
अपर्णा विश्वकर्मा ने जिज्ञासा रखी की एक धोबी के निंदा के वजह से माँ सीता को वनवास जाना पड़ा।, तो धोबी ने ऐसा क्या कहा की माँ सीता को वनवास भोगना पड़ा ?, बाबाजी ने बताया कि जब भगवान राम का राज्याभिषेक हुआ तब उन के राज्य में एक धोबी था जिसकी पत्नी रात्रि में एक मेहमान के घर रुक गई क्योंकि रात्रि होने पर वह अपने घर नहीं लौट पाई जिसके कारण दूसरे दिन धोबी ने उससे कहा कि तुम रात्रि में कहां रुकी थी तब उसकी पत्नी ने उसे कहा कि तुम्हें अपनी पत्नी पर विश्वास नहीं तो उसने कहा कि मैं श्रीराम नहीं हूं जो 14 महीने रावण की कैद में रहने के बाद भी सीता को अपना लिए मैं तो एक सामान्य मनुष्य हूं वे राजाराम है वह कुछ भी कर सकते हैं तब श्री राम जी ने यह सब सुना और उन्होंने लोक व्यवहार को देखते हुए माता-सीता का त्याग कर दिया और यह सब देव रचित था क्योंकि माता सीता को स्व धाम गमन भी करना था,
खिलावन सेन जी ने जिज्ञासा रखी सूर्य गर्मी के दिनों में और ठण्डी के दिनों में अलग अलग स्थानो से क्यों उदित होता है कृपया प्रकाश डालने की कृपा करे प्रभु जी, बाबाजी ने बताया कि कुछ लोग मानते हैं कि धरती सूर्य की परिक्रमा करती है तो कुछ लोग मानते कि सूर्य धरती की और हम तो यह मानते हैं कि सूर्यनारायण 7 अश्व के रथ मैं बैठकर पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करते हैं और उनकी इसी परिक्रमा की गति के कारण ही दिन और रात होते हैं तो कभी दिन छोटे होते हैं तो कभी रात
कुंभ लाल विश्वकर्मा जी ने जिज्ञासा रखी की
बाल हठ और योगहठ इसके बारे में जानने की बहुत इच्छुक हूं, बाबा जी ने बताया कि हठ दो ही नहीं तीन होते हैं तीसरा हठ है त्रिया हठ जो कि स्त्री हठ र्होता है प्रथम हठ जो होता है वह बाल हठ होता है जो कि माता-पिता से अपनी जिद पूरी करने के लिए बालकों द्वारा किया जाता है और दूसरा हठ है त्रिया हठ जो कि स्त्रियों द्वारा किया जाता है जो ही बहुत ही विनाशकारी होता है जैसे कैकई का हठ और द्रोपति का हठ थे जिसके कारण महाभारत हुआ और भगवान राम को वनवास जाना पड़ा
परिचर्चा में छोटी सी गुड़िया ने मौपका से जिज्ञासा रखी कि कबीर जी के दोहे पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजू पहाड़ को स्पष्ट करने की विनती है, बाबा जी ने इन भाव को स्पष्ट करते हुए बताया कि यहां पर कबीर जी स्पष्ट कर रहे हैं कि यदि पत्थर को पूजने से भगवान मिलते तो मैं पहाड़ को पूज लेता और भगवान मुझे अति शीघ्र मिल जाते हैं यहां पर उन्होंने अंधविश्वास का पुरजोर विरोध किया है
रामफल जी ने पारिजात की विशेषताओं को स्पष्ट करने की विनती बाबा जी से कि बाबा जी ने बताया कि यह पुष्प एकमात्र है जो ब्रह्म मुहूर्त में खिलकर स्वयम गिर जाने वाला पुष्प है यह सभी देवी देवताओं को बहुत अधिक प्रिय होता है और इसके पत्ते भी औषधिय गुण लिए होते हैं जो कि घुटनों के दर्द और स्वसन संबंधी समस्याओं में बहुत ही उपयोगी होते हैं
पाठक परदेसी जी ने जिज्ञासा रखते हुए प्रश्न किया कि
मोह नदी विकराल है, कोई ना उतरे पारl
सतगुरु केवट साथ ले, हंस होय उस न्या रll
महात्मा कबीर के दोहे पर प्रकाश डालने की कृपा हो भगवन, बाबा जी ने इन पंक्तियों के भाव को स्पष्ट करते हुए बताया कि विचारों को स्थिरता ना देना संकल्प भी आए और चले जाए वृत्त चंचल हो और मनोदशा भी चंचल हो ऐसी है हमारे जीवन की मोह नदी
परंतु जब इस नदी का पतवार सद्गुरु के हाथों में चला जाता है तो हमें सद्बुद्धि प्राप्त हो जाती है
परिचर्चा में जिज्ञासा उपस्थित हुई की
हेरत-हेरत हे सखी, रहा कबीर हेराय ।
बूँद समानी समुद्र में, सो कस हेरी जाय ।।
बूँद समानी समुद्र में, जानत है सब कोय ।
और समुद्र समानी बूँद में, जाने विरला कोय ।।
जल में कुंभ कुंभ में जल है ,बाहर भीतर पानी ।
फूटा कुंभ जल हि जल समानी, यह तत्व दो जानी ।। इन पंक्तियों के भाव को स्पष्ट करते बाबा जी ने बताया कि यदि समुद्र में हम एक लोटा जल डाल दे तो उसे निकाल पाना असंभव होता है वैसे ही यदि कोई मटका फूट जाए तो उसमें जो जल है वह वापस जाकर जल में ही मिल जाता है उसी तरह से हमारा शरीर भी नश्वर है जोकि समाप्त होने पर परमात्मा में स्वयं ही लीन हो जाता है
इस प्रकार आज का ऑनलाइन सत्संग संपन्न हुआ
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम