आज का सुविचार(चिन्तन)
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💠 *Aaj_Ka_Vichar*💠
🎋 *..13-07-2021*..🎋
✍🏻बहुत खास होते हैं वो लोग, जो आपकी आवाज़ से आप की, खुशी और दुख का अंदाज़ा लगा लेते हैं।
💐 *Brahma Kumaris* 💐
🌷 *σм ѕнαитι*🌷
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💥 *विचार परिवर्तन*💥
✍🏻आध्यात्मिक मूल्य जीवन की सबसे बड़ी संपत्ति हैं। यह वह शिक्षा है जो जीवन को अधिक मूल्यवान और अर्थपुर्ण बनाती है।
🌹 *σм ѕнαитι.*🌹
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♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️
👉 प्रेरणा दायक 🏵️
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*यदि आप स्वयं सुखी रहना तथा दूसरों को सुख देना चाहते हैं, तो मीठा बोलें।*
आज से लगभग 20 वर्ष पहले लोगों में जल्दबाजी चंचलता असहिष्णुता ईर्ष्या द्वेष क्रोध कटुभाषा अभिमान इत्यादि दोष कम मात्रा में थे। पिछले 20 वर्षों में जब से इलेक्ट्रोनिक साधन मीडिया व ऐसी सुविधाएं बढ़ गई हैं, तब से लोगों के जीवन में विशेष परिवर्तन देखा जा रहा है। अच्छे अच्छे गुण घटते जा रहे हैं। उनके स्थान पर अनेक दोष बढ़ते जा रहे हैं। भौतिक साधनों का अधिक प्रयोग करने से, भोगवादी बनने से भी यह परिणाम होता है। यह बहुत बड़ा कारण प्रतीत होता है, जिससे लोगों में गुणों में कमी आई और दोषों में वृद्धि हुई है।
*परंतु मनुष्यों का मूल उद्देश्य न बदला है, और न बदलेगा। भ्रांति अविद्या संशय आदि के कारण व्यक्ति के विचार बदलते रहते हैं, उसकी क्रियाएं या आचरण बदलता रहता है, परंतु मुख्य उद्देश्य कभी नहीं बदलता। मुख्य उद्देश्य पहले भी यही था कि सुख चाहिए। आज भी वही है कि सुख चाहिए।* इसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ, और न भविष्य में कभी होगा। क्योंकि यह आत्मा की स्वाभाविक इच्छा है।
*सुख चाहिए, दुख नहीं चाहिए.* इसी उद्देश्य को मन मे रख कर सभी लोग काम करते हैं। वैज्ञानिक भी इसी उद्देश्य से नए-नए आविष्कार करते हैं। और वे सोचते हैं कि हम इन भौतिक आविष्कारों से मनुष्य को पूर्णतया सुख से तृप्त कर देंगे। उसके सब दुखों का पूरी तरह से विनाश कर देंगे। परंतु यह बहुत बड़ी भ्रांति है। आज के लोग इस बात को नहीं जानते कि इन भौतिकवादी वस्तुओं से हमें पूर्ण सुख नहीं मिलेगा। और दुखों की निवृत्ति भी पूर्णतया नहीं हो पाएगी। इसी भ्रांति अविद्या के कारण ही रोज नए-नए भोग के साधन बनाए जाते हैं, और उनका उपयोग किया जाता है। *इनके उपयोग का परिणाम तो यही आ रहा है कि लोगों में सेवा परोपकार दान दया सभ्यता नम्रता बड़ों का आदर सम्मान उत्तम मीठी वाणी सहनशक्ति इत्यादि जो सुख देने वाले उत्तम गुण थे, वे कम होते जा रहे हैं। और जल्दबाजी चंचलता असहिष्णुता ईर्ष्या द्वेष क्रोध कटुभाषा अभिमान इत्यादि दोष बढ़ते जा रहे हैं।*
*हम यह नहीं कहते कि इन भौतिक भोग साधनों का प्रयोग न करें, अवश्य करें। परंतु संयम पूर्वक प्रयोग करें। बुद्धिमत्ता से इनका प्रयोग करें। इनका लाभ उठाएं, इनके मालिक बनकर इनका प्रयोग करें, इनके गुलाम न बनें। आज यह भयंकर भूल हो रही है।* लोग इन भौतिक साधनों के गुलाम होते जा रहे हैं। इसीलिए उत्तम गुणों को भूलते जा रहे हैं।
यदि आप सुख चाहते हों, तो सदा उत्तम मीठी भाषा सम्मान पूर्वक बोलें। ऐसी भाषा बोलने से वक्ता का अपना भी, और श्रोता का भी, दोनों का सुख बढ़ता है। *कठोर भाषा तो केवल दंड व्यवस्था में काम आती है। मीठी भाषा का उपयोग करना, स्वयं प्रसन्न रहना, और दूसरों को भी सुख देना,सभ्यता, मनुष्यता और सुख दायक है।*
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