अब न कोई हड़ताल है न हड़ताली,घटना या साजिस
अब न कोई हड़ताल है न हड़ताली,घटना या साजिस
सुरेन्द्र जैन/धरसींवा
अपनी मांगों को लेकर शांतिप्रिय तरीके से विरोध प्रदर्शन कराना सभी का हक है गलत का विरोध यदि न हो तो भी गलत ही कहलाता है लेकिन किसी शांतिप्रिय विरोध प्रदर्शन में अचानक कोई बड़ा बवाल हो आगजनी हो तो यह बेहद चिंता का विषय होता है हम बात कर रहे हैं ओधोगिक क्षेत्र सिलतरा में स्थित एसकेएस फेक्ट्री में हुये बवाल व आगजनी की जो हमे चिंता की तरफ मोडता है यह वास्तव में एक घटना ही है या सोची समझी साजिश का दुष्परिणाम है इसकी गहराई तक जाना ही होगा और यह काम पुलिस विभाग बखूबी कर भी सकता है।
जहाँ तक मांगो को लेकर हड़ताल का सवाल है तो यह जग जाहिर है कि बीते कुछ समय मे महंगाई ने आसमान छू लिया है हर घर और घर घर का बजट बिगड़ चुका है
एक तरफ साल डेढ़ साल से कोरोना राक्षस की तरह मुंह बाए खड़ा है दूसरी तरफ देश में बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है जबकि महंगाई ने सभी रिकार्ड तोड़ दिए है कोरोना काल के चलते उधोगो की भी कमर टूटी पड़ी है इसी को माध्यम बनाकर फेक्ट्री प्रबंधन ने कर्मचारियों की वेतन वृद्धि नही कि ऐंसे में आख़िर कर्मचारी भी क्या करते उन्होंने जब कोई रास्ता न दिखा तो हड़ताल की राह पकड़ी पहले 14 जुलाई फिर 18 जुलाई व 19 जुलाई को हड़ताल की इसी दौरान ऐंसी घटना हुई जिसके बारे में सपने में भी नही सोचा था
अब सवाल ये उठता है कि कोई भी उधोग हों उन्हें कर्मचारी व मजदूर अपने खून पसीने से सींचते हैं क्योकि यह उनकी रोजी रोटी का साधन होती है और कोई भी अपनी रोजी रोटी को लात नही मारता तो आख़िर इतनी बड़ी घटना घटित हुई कैंसे इसकी गहराई में पुलिस प्रशासन को जाना ही होगा तभी दूध का दूध और पानी का पानी होगा
यदि हम इसकी गहराई में जाकर देखें तो सर्वप्रथम यह समझना होगा कि इससे लाभ किन किनको होगा कर्मचारियों की मांग वेतन वृद्धि की थी जो बीते माह भी हुई ओर बड़े ही शांतिप्रिय ढंग से हुई प्रशासन का आश्वासन में हड़ताल समाप्त हुई मांग पूरी न होने पर कल से पुनः हड़ताल शुरू हुई पहले दिन शांति रही लेकिन दूसरे दिन अचानक बबाल मच गया
हड़ताल से कंपनी को हानि होती है यह कड़वा सच है हड़ताल कोई भी हो जितनी लंबी खिंचेगी उतना ही संबंधित कंपनी को हानि होती है लेकिन हड़ताल के दौरान यदि अचानक ऐंसी घटनाएं घटित हो जाती हैं तो न हड़ताल दिखती है न हड़ताली क्योकि ऐंसी घटनाओ के बाद फिर कानून का डंडा चलता है मतलब साफ है यदि किसी भी शांतिप्रिय हड़ताल आन्दोलन को तहस नहस करना हो तो ऐंसे बबाल करा दो बात खत्म न समझना यही है कि आख़िर एसकेएस इस्पात में हुई इस घटना से किनको लाभ है और कौन हैं जिन्होंने ऐंसी साजिस रची होगी दूसरा यह भी की कहीं यह किसी का राजनीतिक षड्यन्त्र तो नही।