संतोष का अर्थ यह नहीं कि हम कोई प्रयत्न नहीं करें प्रयत्न के बाद जो फल मिले उसमें संतुष्ट रहना ही संतोषी जीवन का लक्षण है- ब्रहमा कुमार नारायण भाई
संतोष का अर्थ यह नहीं कि हम कोई प्रयत्न नहीं करें प्रयत्न के बाद जो फल मिले उसमें संतुष्ट रहना ही संतोषी जीवन का लक्षण है- ब्रहमा कुमार नारायण भाई
अलीराजपुर,
संसार में सब हमारे मित्र बन जाये...यह किन्चित सम्भव नहीं है लेकिन कोई हमारा शत्रु ना बनें, यह प्रयास किया जा सकता हमारे मुख से सबके लिए प्रशंसा के शब्द ना निकलें कोई बात नहीं, पर हमारे मुख से किसी की निंदा ना हो, यह तो किया जा सकता है।आप किसी को अपनी थाली में से रोटी निकलकर नहीं खिला सकते तो किसी के निवाले को छीनने वाले भी ना बनो। यह विचार इंदौर से पधारे जीवन जीने की कला के प्रणेता ब्रहमा कुमार नारायण भाई ने दीपा की चौकी पर स्तिथ ब्रहमा कुमारी सभागृह में विचारों से विकास विकारों से अवकाश विषय पर नगर वासियों को संबोधित करते हुए बताया कि अगर हमसे पुन्य नहीं बनें तो पाप ना हो, ऐसा प्रयत्न जरूर करें। आप सत्य नहीं बोल सकते तो असत्य ना वोलने का संकल्प लें। विकार से विचार एवं विकास की यात्रा पर चलने वाला ही सत्य की अनुभूति कर सकता है।
सफल होते ही ये दुनिया
आपके भीतर अनेक खूबियां ढ़ूँढ़ लेती है,
और असफल होते ही हज़ार कमिया।
संतोष का अर्थ प्रयत्न ना करना नहीं है अपितु प्रयत्न करने के बाद जो भी मिल जाए उसमें प्रसन्न रहना है। लोगों के द्वारा अक्सर प्रयत्न ना करना ही संतोष समझ लिया जाता है। कई लोग संतोष की आड़ में अपनी अकर्मण्यता को छिपा लेते है।प्रयत्न करने में, उद्यम करने में, पुरुषार्थ करने में असंतोषी रहो। प्रयास की अंतिम सीमाओं तक जाओ। एक क्षण के लिए भी लक्ष्य को मत भूलो। तुम क्या हो ? यह मुख से मत बोलो लोगों तक तुम्हारी सफलता बोलनी चाहिए।
करने में सावधान होने में प्रसन् ।कर्म करते समय सब कुछ मुझ पर ही निर्भर है इस भाव से कर्म करो। कर्म करने के बाद सब कुछ प्रभु पर ही निर्भर है इस भाव से शरणागत हो जाओ। परिणाम में जो प्राप्त हो, उसे प्रेम से स्वीकार कर लो।सब्र की जड़े...चाहें जैसी भी हो।
इसके फ़लसदैव मीठे होते है।