*स्थानियो की उपेक्षा ओर बड़े पदों पर क्यों नही हैं छत्तीसगढ़िया* *सुरेन्द्र जैन धरसीवां
*किसानों के बाद अब धरसीवां विधायक ने उठाया मजदूरो के शोषण का मुद्दा*
*स्थानियो की उपेक्षा ओर बड़े पदों पर क्यों नही हैं छत्तीसगढ़िया*
*सुरेन्द्र जैन/धरसीवां*
विधानसभा में अपने क्षेत्र के किसानों का मुद्दा उठाने के बाद क्षेत्रीय विधायक अनिता योगेंद्र शर्मा ने आज ओधोगिक इकाइयों में मजदूरो के शोषण का मुद्दा उठाया।
विधायक अनिता योगेंद्र शर्मा ने बताया कि उन्होंने किसानों की समस्याओं के बाद दूसरे दिन गुरुवार को विधानसभा में मजदूरों को कलेक्टर दर पर वेतन के साथ साथ स्थानीय लोगो को रोजगार देने का मामला उठाया विधानसभा में उन्होंने नगरीय प्रशासन मंत्री से सवाल किया कि धरसीवां छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा इंडस्ट्रियल एरिया है,जहाँ काफी संख्या में मजदूर कार्य करते हैं लेकिन आज तक मजदूरों को उनका हक यानी कलेक्टर दर पर वेतन क्यों नही मिलता बड़ी बड़ी कंपनियां मजदूरों का खुलेआम शोषण करती हैं,
*स्थानियो की उपेक्षा ओर बड़े पदों पर छत्तीसगढ़िया क्यो नही*
विधायक श्रीमती शर्मा ने इसके साथ ही स्थानीय लोगों के रोजगार के संदर्भ में भी सवाल उठाया उन्होंने सरकार से पूछा कि छत्तीसगढ़ का स्थानीय निवासी कंपनियों में बड़ी पोस्ट पर क्यों नहीं रक्खें जाते जिसके कारण स्थानीय लोगों में रोष व्याप्त रहता है।
*कराएंगे जांच*
क्षेत्रीय विधायक के सवालों के जबाब में नगरीय प्रशासन मंत्री शिव डहरिया ने कहा कि कि अगर ऐसा कंपनियों के द्वारा किया जा रहा है तो उस पर जांच करवा कर उनके विरुद्ध उचित कार्रवाई की जाएगी
*चलिए यह भी जानते हैं कि कितना होता है शोषण*
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के धरसीवां विधानभा में मौजूद ओधोगिक क्षेत्र सिलतरा देश की सबसे बड़ी स्पंज आयरन उधोग मंडियों में शुमार रखता है बाबजूद इसके यहां के उधोगो में मध्य्प्रदेश ओर छत्तीसगढ़ के गरीब मजदूरों का ही शोषण होता है समय समय पर समाचार पत्रों चैनलों में भी मजदूरों के शोषण को लेकर पत्रकारों ने खबरें चलाई लेकिन आज तक चाहे सरकार भाजपा की रही हो या कांग्रेस की लेकिन मजदूरों का शोषण बन्द नही हुआ न ही कभी किसी उधोग या लेबर ठेकेदारों पर कोई कार्यवाही हुई है।
*महिलाओं को मिलते हैं दो सौ*
धरसीवां क्षेत्र के दर्जनों गांवों से सुबह सुबह बड़ी संख्या में महिला मजदूर फेक्ट्रियो में मजदूरी करने जाती हैं जो शाम तक 8 घण्टे मजदूरी करती हैं इसके बदले उन्हें मात्र दो सौ रुपये ही मिलता है कुछ इक्का दुक्का बड़ी कंपनिययो में जरूर 260 रुपये तक दिए जाते हैं।
*श्रम कल्याण मंडल के अध्यक्ष के समक्ष भी उठाया था मुद्दा*
विगत दिनों धनेली में आयोजित शिविर में भी श्रम कल्याण मंडल के अध्यक्ष शफी एहमद के समक्ष भी मजदूरो के शोषण का मुद्दा स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने उठाया था जिस पर उन्होंने अधिकारियों को निर्देशित भी किया लेकिन अब तक उसका भी कोई असर दिखाई नही दिया।
*सालाना करोड़ो की मेहनत की कमाई डकारते हैं लेबर ठेकेदार*
एक अनुमान के मुताबिक उरला को छोड़ कर सिर्फ सिलतरा ओधोगिक क्षेत्र की ओधोगिक इकाइयों पर नजर डालें तो यहां की सांकरा सिलतरा सोंडरा बहेसर मुरेठी मांढर टाडा धनेली चरोदा आदि ग्राम पंचायत क्षेत्रों में लगी ओधोगिक इकाइयों में यदि हम सिर्फ महिला मजदूरों के शोषण का टोटल लगाएं अलग अलग फेक्ट्रियो में ग्रामीण अंचलों से तीन हजार के आसपास महिलाएं मजदूरी करने जाती हैं जिन्हें 8 घण्टे की मजदूरी कहीं 180 तो कहीं 200 रुपये तक दी जाती है जबकि निर्धारित दर लगभग 350 रुपये है यदि प्रति महिला श्रमिक की मेहनत की कमाई 150 रुपये भी लेबर ठेकेदार ओर फैक्ट्रियां डकारती हैं तो 3000 महिलाओं का एक ही दिन में साढ़े चार लाख रुपये मेहनत की कमाई डकार जाती हैं और एक माह में एक करोड़ पैंतीस लाख इस हिसाब से एक साल में 16 करोड़ 42 लाख 50 हजार रुपये सिर्फ धरसीवां क्षेत्र की महिला श्रमिको की मेहनत की कमाई पर डाका डाला जाता है डांका इसलिए क्योकि यह उनकी निर्धारित रेट के हिसाब से मेहनत की कमाई का हक होता है जो उन्हें नही मिलता शायद इसीलिए आज तक जितने भी संगठन मजदूरो के हितों में आवाज उठाते रहे हैं उनकी आवाजों के बाबजूद अब तक गरीब मजदूरो को उनका पूरा हक नही मिला है यदि हम इसमें एमपी के मंडला विछिया अमरकंटक एवं छत्तीसगढ़ के दूरस्थ अंचलों के महिला श्रमिको को ओर जोड़ लें तो यह आर्थिक शोषण का आंकड़ा बहुत अधिक हो जाएगा ।

