आज का चिंतन(सुविचार) - fastnewsharpal.com
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आज का चिंतन(सुविचार)

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💠 *Aaj_Ka_Vichar*💠

🎋 *..31-03-2021*..🎋


✍🏻दिखावा और झूठ बोलकर, व्यवहार बनाने से अच्छा है सच बोलकर दुश्मन बनाले तो, शायद आप के साथ कभी विश्वासघात नही होगा।

💐 *Brahma Kumaris* 💐

🌷 *σм ѕнαитι*🌷

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  💥 *विचार परिवर्तन*💥

✍🏻संकल्पों पर ध्यान बहुत जरूरी है, क्योंकि जो भी आप सोचते हैं वह आपके ही सूक्ष्म शरीर का हिस्सा बन जाता है और आपके साथ चलता रहता है। इस जन्म में और अगले जन्म में भी।

🌹 *σм ѕнαитι.*🌹

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अनमोल वचन:


हमारे सुख तथा दुःख का कारण हमारे कर्म हैं। कोई दूसरा व्यक्ति हमें सुखी या दुःखी नहीं कर सकता। यदि हमारी आत्मा में शुभ भाव जैसे दूसरों की भलाई करने की भावना पैदा होती है तो हमारे अच्छे कर्म होंगे तो हमें यश,सफलता,उन्नति और धन संपदा आदि प्राप्त होगें। जब हम अशुभ भाव जैसे दूसरों का बुरा सोचना इत्यादि रखेंगे तो हमारे कर्म भी अशुभ होंगे  और हमें दुःख,अपयश,गरीबी हार इत्यादि फल प्राप्त होंगें। इसलिए यह बात निराधार होती है किसी दूसरे ने हमें दुःखी कर दिया। जैसे पत्थर की ठोकर लगे हम गिर जाएँ तो पत्थर निमित्त होता है। किंतु गिरने और दुःख पाने के कर्ता हम खुद होते हैं,क्योंकि हम होश पूर्वक नहीं चले,ऐसे में पत्थर का क्या दोष ? ऐसे दोष देने वाले को अज्ञानी कहा जाएगा।अतः गहराई से देखें तो हमारे पिछले जन्मों के कर्म ही हमारे वर्तमान सुख-दुख के निमित्त बनते हैं। इसलिए हर कर्म सोच समझकर करें..   


🙏ओम् शांति🙏


🎈आपका दिन शुभ हो🎈


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   ओम शांति

*जो संसार देह इंद्रियां और अहंकार की सत्ता त्याग कर स्थित हुआ है और जानता है कि  "न मैं देह हूं" , "न मेरी देह",  मैं इनका साक्षी हूं , ऐसी वृत्ति को धारण करने वाला महत्यागी है । जो सब चेष्टा करता है और राग-द्वेष से रहित है वह महत्यागी है।  जो प्राप्त हुए शुभ-अशुभ को अहंकार से रहित होकर करता है वह महत्यागी है।  जो मन इंद्रिय और देह की भी इच्छा से रहित है वह सब चेष्टाएं करने पर भी महत्यागी है। जो  समचित, इंद्रजीत और क्षमावान है वह महत्यागी है।  हे राम, जिस ने धर्म-अधर्म की देह और संसार के मद, मान, मनन इत्यादि कल्पना का त्याग किया है वह महत्यागी है। जिस पुरुष ने अपने द्वारा किए हुए कर्मों का त्याग किया है वह महत्यागी है*

     ॐ शांति

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                ओम शांति                                          
        *सुखी जीवन जीने का सिर्फ एक ही रास्ता है वह है अभाव की तरफ दृष्टि ना डालना। आज हमारी स्थिति यह है जो हमे प्राप्त है उसका आनंद तो लेते नहीं, वरन जो प्राप्त नहीं है उसका चिन्तन करके जीवन को शोकमय कर लेते हैं।*
         *दुःख का मूल कारण हमारी आवश्कताएं नहीं हमारी इच्छाएं हैं। हमारी आवश्यकताएं तो कभी पूर्ण भी हो सकती हैं मगर इच्छाएं नहीं। इच्छाएं कभी पूरी नहीं हो सकतीं और ना ही किसी की हुईं आज तक। एक इच्छा पूरी होती है तभी दूसरी खड़ी हो जाती है।*
          *इसलिए शास्त्रकारों ने लिख दिया*
*"" आशा हि परमं दुखं नैराश्यं परमं सुखं ""*
*दुःख का मूल हमारी आशा ही हैं। हमे संसार में कोई दुखी नहीं कर सकता, हमारी अपेक्षाएं ही हमे रुलाती हैं। अति इच्छा रखने वाले और असंतोषी हमेशा दुखी ही रहते हैं।*

*हजार महफिलें हों, लाख मेले हों!*
*पर जब तक खुद से न मिलो, अकेले हो..!!*
              ॐ शांति                                                                            
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💧 *_आज का मीठा मोती_*💧
_*31 मार्च:-*_ जो लोग हमे दुःख देते है इसका अर्थ है के वे शान्ति स्नेह सुख ख़ुशी से बिलकुल खाली है, उनपे रहम करना है गुस्सा नही ।
        🙏🙏 *_ओम शान्ति_*🙏🙏
       🌹🌻 *_ब्रह्माकुमारीज़_*🌻🌹
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♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️


*👉🏿परलोक के भोजन का स्वाद* 🏵️

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      *एक सेठ जी ने अन्नसत्र खोल रखा था।उनमें दान की भावना तो कम थी,पर समाज उन्हें दानवीर समझकर उनकी प्रशंसा करे यह भावना मुख्य थी।उनके प्रशंसक भी कम नहीं थे। थोक का व्यापार था उनका।वर्ष के अंत में अन्न के कोठारों में जो सड़ा गला अन्न बिकने से बच जाता था, वह अन्नसत्र के लिए भेज दिया जाता था। प्रायः सड़ी ज्वार की रोटी ही सेठ के अन्नसत्र में भूखों को प्राप्त होती थी।*

        *सेठ जी के पुत्र का विवाह हुआ। पुत्रवधू घर आयी। वह बड़ी सुशील,धर्मज्ञ और विचारशील थी।उसे जब पता चला कि उसके ससुर द्वारा खोले गये अन्नसत्र में सड़ी ज्वार की रोटी दी जाती है तो उसे बड़ा दुःख हुआ।उसने भोजन बनाने की सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। पहले ही दिन उसने अन्नसत्र से सड़ी ज्वार का आटा मँगवाकर एक रोटी बनायी और सेठ जब भोजन करने बैठे तो उनकी थाली में भोजन के साथ वह रोटी भी परोस दी।काली, मोटी रोटी देखकर कौतुहलवश सेठ ने पहला ग्रास उसी रोटी का मुख में डाला।ग्रास मुँह में जाते ही वे थू-थू करने लगे और थूकते हुए बोले"बेटी!घर में आटा तो बहुत है।यह तूने रोटी बनाने के लिए सड़ी ज्वार का आटा कहाँ से मँगाया ?"*

     *पुत्रवधू बोलीः"पिता जी!यह आटा परलोक से मँगाया है।"*

     *ससुर बोले"बेटी!मैं कुछ समझा नहीं।"*

         *"पिता जी !जो दान पुण्य हमने पिछले जन्म में किया वही कमाई अब खा रहे हैं और जो हम इस जन्म में करेंगे वही हमें परलोक में मिलेगा। हमारे अन्नसत्र में इसी आटे की रोटी गरीबों को दी जाती है।परलोक में केवल इसी आटे की रोटी पर रहना है।इसलिए मैंने सोचा कि अभी से हमें इसे खाने का अभ्यास हो जाय तो वहाँ कष्ट कम होगा।"*

        *सेठ जी को अपनी गलती का एहसास हुआ।उन्होंने अपनी पुत्रवधू से क्षमा माँगी और अन्नसत्र का सड़ा आटा उसी दिन फिकवा  दिया। तब से अन्नसत्र से गरीबों, भूखों को अच्छे आटे की रोटी मिलने लगी।*

       *आप दान तो करो लेकिन दान ऐसा हो कि जिससे दूसरे का मंगल-ही-मंगल हो।जितना आप मंगल की भावना से दान करते हो उतना दान लेने वाले का भला होता ही है,साथ में आपका भी इहलोक और परलोक सुधर जाता है।दान करते समय यह भावना नहीं होनी चाहिए कि लोग मेरी प्रशंसा करें,वाहवाही करें। दान इतना गुप्त हो कि देते समय हमारे  दूसरे हाथ को भी पता न चले*

   



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