वीडियो---सिलतरा एसकेएस प्लांट के कर्मचारियों ने की हड़ताल,वेतन वृद्धि न होने से आक्रषित हैं कर्मचारी* - fastnewsharpal.com
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वीडियो---सिलतरा एसकेएस प्लांट के कर्मचारियों ने की हड़ताल,वेतन वृद्धि न होने से आक्रषित हैं कर्मचारी*

 सिलतरा एसकेएस प्लांट के कर्मचारियों ने की हड़ताल,वेतन वृद्धि न होने से आक्रषित हैं कर्मचारी*


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    सुरेन्द्र जैन/धरसीवां

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से सटे धरसीवां के ओधोगिक क्षेत्र सिलतरा की एसकेएस इस्पात फेक्ट्री में आज सुबह से कर्मचारियों ने अचानक हड़ताल कर दी और सभी साइडें बन्द कर दी हैं ।

   *बढ़ती महंगाई और वेतन वृद्धि भी नही*



   एक तरफ देश में आसमान छूती महंगाई तो दूसरी तरफ कोरोना काल मे जेब पर बढ़ता अतिरिक्त खर्च का भारी भरकम बोझ बाबजूद इसके फेक्ट्री कर्मियों का वेतन ज़स का तस होने से इन दिनों फेक्ट्रियो में काम करने वाले कर्मचारी बेहद परेसान हैं ऐंसी स्थिति में यदि फेक्ट्री प्रबंधन कर्मचारियों की तरफ मानवीय दृष्टिकोण न अपनाए तो नाराजगी बढ़ती है यही कारण एसकेएस इस्पात फेक्ट्री में हड़ताल का रहा वेतन वृद्धि न होने से कर्मचारियों में खासी नाराजगी है ।

  *आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया*

     एक कहावत है पुरानी की आमदनी अठन्नी खर्चा रुपैया उक्त कहावत बर्तमान में देश मे तेजी से बढ़ती महंगाई ने न सिर्फ फेक्ट्री कर्मियों के लिए बल्कि हर मध्यम गरीब मजदूर किसानों पर सटीक साबित कर दी है सत्ताधारियों की कुनीतियों के चलते एक तरफ डीजल पेट्रोल गैस से लेकर प्रत्येक दैनिक उपयोग की चीजों खाद्य सामग्री खाद्य तेल आदि के दाम मोदी सरकार के कार्यकाल में आसमान पर पहुच चुके हैं तो वहीं दूसरी तरफ फेक्ट्री श्रमिको कर्मचारियों के अलावा मध्यम किसान आदि की आय उतनी ही है जितनी पहले थी यही कारण है कि बर्तमान में प्रत्येक आम नागरिक के घरों का बजट बिगड़ चुका है ।

   *कोरोना काल मे बढ़ा जेब पर बोझ*

   कोरोना कॉल में सरकार भले ही हजारों करोड़ के पैकेज की बात क्यों न करती आ रही हो और खर्च भी क्यों न बता रही हो लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि सरकार की एक चबन्नी भी किसी भी रूप में आम जनता तक कभी नही पहुची कोरोना कॉल में दवाइयों का डॉक्टरों की फीस अस्पतालों के भारी भरकम खर्च भी आम जनता की जेबों पर ही पड़ा लोगो जिससे आम जनता कर्ज के बोझ तले दब गई है ।

   यही सब कारण हैं कि अब फेक्ट्रियो में भी कर्मचारियों को हड़ताल करनी पड़ रही है कर्मचारी तो संगठित होकर हड़ताल के लिए कदम उठा भी लेते हैं लेकिन रोज कमाने खाने वाले श्रमिको की तो हड़ताल की भी हिम्मत नही होती वह यही सोचकर रह जाते हैं कि कहीं निकाल दिया तो जो मिल रहा कहीं उससे भी हाथ न धोना पड़े।

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