*झूठ मन में घाव बनाते रहते हैं, जिससे मन में सुक्ष्म घाव,शरीर में बीमारियां पैदा हो जाती है। / कोई भी नकारात्मक शब्द मन में गाठ बना लेते हैं, वही असाध्य रोग के रूप में बाहर आती है* - fastnewsharpal.com
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*झूठ मन में घाव बनाते रहते हैं, जिससे मन में सुक्ष्म घाव,शरीर में बीमारियां पैदा हो जाती है। / कोई भी नकारात्मक शब्द मन में गाठ बना लेते हैं, वही असाध्य रोग के रूप में बाहर आती है*

 झूठ मन में घाव बनाते रहते हैं, जिससे मन में सुक्ष्म घाव,शरीर में बीमारियां पैदा हो जाती है।  / कोई भी नकारात्मक शब्द मन में गाठ बना लेते हैं, वही असाध्य रोग के रूप में बाहर आती है  --ब्रहमा कुमार नारायण भाई



अलीराजपुर 

,जब कोइ नकारात्मक विचार बार बार मन में   उठता रहता है  या  एक खास तरह की नकारात्मक  परिस्थिति लम्बे समय तक बनी रहती है  तॊ उस नकारात्मक  संकल्प की मन में  गांठ बन जाती है । किसी ने आप को क्रोध से कहा,  ' तुम घटिया हो'  ।  आप ने इस बात को पकड़ लिया और मन में इसी शब्द से दुखी होते रहे  और उन लोगो से  बातो में  या  व्यवहार  में टकराने लगे  ।




आप  किसी को बताते भी  नहीं कि  आप के इस  बदले  व्यवहार का कारण क्या है । 

मन का यह नकारात्मक  शब्द   एक गांठ का रूप ले लेता है  ।  यह गांठ किसी न किसी बीमारी के रूप में फूटेगी  । कोइ भी  असाध्य रोग  की  जड़  कोइ नकारात्मक शब्द ही  है  जो आप के मन में गूंज रहा है । यह विचार इंदौर से पधारे जीवन जीने की कला के प्रणेता ब्रहमा कुमार नारायण भाई ने  दीपा की चौकी में स्तिथ ब्रहमा कुमारी सभागृह में नकारात्मक विचारों का शरीर पर प्रभाव पर नगर वासियों को संबोधित करते हुए बताया कि बड़े लोग या महान संत सभी से सम्मान चाहते हैँ । 




इतनी बड़ी दुनिया में कोइ  न  कोइ उनके विपरीत बोल देता है   जिसे वह  अपना अपमान समझ लेते  हैँ और अंदर ही अंदर आहत  होते रहते  हैं  ।   बोलते बहुत अच्छा हैँ परन्तु मन से अपमान की गांठ  जाती नहीं  । बड़े लोग झूठे वादे  भी करते हैँ ।  उन्हे पता होता है यह कार्य पूरा होने वाला नहों है ।  उनका यह झूट मन में कांटे की  तरह  चुभता  रहता है,  जिस से उन के  मन में सूक्ष्म   घाव बन  जाता है जो कि  शरीर में केंसर आदि के रूप में प्रकट होता है । ऐसे  ही प्रत्येक व्यक्ति  के मन में अपमान,  झूठ,  लाचारी,  निराशा,  झूठे आरोप या  कोइ  और नकारात्मक  बात मन में चलती रहती है । प्राय लोग    " बोला''      शब्द से आहत होते रहते हैं  ।  इस ने बोला,  उसने बोला,  क्यो बोला,  कैसे बोला,  उसकी यह मजाल यह हिम्मत ।  ये शब्द शरीर व मन में रोग बना देते   हैं ।  साधारण लोग शराब पीते है या  दूसरे नशे करते है जिस के प्रभाव से यह दुःख कुछ समय के लिये भूल जाता है । समझदार लोग,  बड़े लोग या योगी लोग  नई  नई स्कीमें लाते है ।  योगी लोग सेवा में लगे रहते है ।  जब तक सेवा करते है तब तक वे इस  सूक्ष्म दुःख से बचे  रहते है ।  सेवा  खत्म होते ही फिर उसी दुःख से पीड़ित होते रहते है । कोइ भी नकारात्मक शब्द जो आप को अंदर ही अंदर आहत करता  है, तुरंत उस शब्द को बदलो ।  उसके बदले में वह  शब्द सोचो व बोलो  जो आप सुनना  चाहते थे । अपमान  आये तॊ  सम्मान सोचो,  दुःख आये तॊ सुख सोचो,  निराशा आये तॊ प्रसन्नता सोचो  ।  कैसी भी विपरीत  इमोशन  हो,  कोइ कुछ कह  दें, तुरंत भगवान को याद करना है और  मन में दोहराना है,  प्रेम,  आंनद और  मौज ।

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