शुभ विचार, मेडिटेशन ,सत्य ज्ञान का अध्ययन हमारी भावना व कर्म को श्रेष्ठ बनाता है--ब्रह्मा कुमार नारायण भाई - fastnewsharpal.com
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शुभ विचार, मेडिटेशन ,सत्य ज्ञान का अध्ययन हमारी भावना व कर्म को श्रेष्ठ बनाता है--ब्रह्मा कुमार नारायण भाई

 शुभ विचार, मेडिटेशन ,सत्य ज्ञान का अध्ययन हमारी भावना व कर्म को श्रेष्ठ बनाता है--ब्रह्मा कुमार नारायण भाई




अलीराजपुर,

हमें विश्व को श्रेष्टता बनाना है।तॊ  इसके लिये   हमें  भावना  श्रेष्ट रखनी है और ऐसे  कर्म करने है जिस से  बेसहारा  को सहारा  

मिलें ।   घर को ही नहीँ मन को भी सुंदर रखना  होगा ।   क्रोध, मोह, लोभ जैसे भावों पर नियंत्रण रखना होगा  ।कलह से बचना  होगा     तथा  मीठे  बोल बोलने होंगे   । चीखे चिलायेगे नहीँ  । आलस्य नहीँ करेंगे तथा  सदा प्र्फुलित    रहेंगे । 



ये तभी होगा अगर  हम अपनी भावना को   शुध्द   रखेंगे  ।भावना  अर्थात गहरी  विचार  तरंगे ।भावना की  विचार  तरंगे  और विद्युत तरंगे  एक ही प्रकार  की है ।इनका  वाहक  ईथर  है ।



ईथर  सारे ब्रह्माण्ड  में समाया  हुआ है ।

जैसे रेडियो संदेशों  को हम नहीँ देख सकते । ऐसे भावना शक्ति को भी नहीँ देख सकते ।दिमाग   इसका प्रसारण और प्राप्ति  स्थान है । यह विचार इंदौर से पधारे जीवन जीने की कला के प्रणेता ब्रह्मा कुमार नारायण भाई ने महात्मा गांधी मार्ग पर स्थित ब्रहमा कुमारी सभागृह में कर्म और भाग्य विषय पर नगर वासियों को संबोधित करते हुए बताया कि मस्तिष्क के इस भाग में ईथर  है ।  ईथर  तत्व की विशेषता क्या  है ? यह ध्वनि, प्रकाश,  गर्मी तथा संकल्पों  का वाहक है और  सारे ब्रह्मांड में व्यापक है ।   प्रेम, करुणा, सहयोग, घृणा, लोभ, द्वेष आदि के विचार व्यक्ति  एक दूसरे को देखते ही पकड़ लेते हैं ।जिस से हम प्यार या घृणा करते है वह बिना बोले ही समझ लेते  हैं  । दो प्रेमी एक दूसरे की भाषा से अंजान होते हुए भी खिंच  कर नज़दीक आ जाते हैं ।भाषा  भाव  की अभिव्यक्ति है । जैसा हम बोलते हैं , वैसी भावना  बन जाती है ।भावना  को सुधारने के चार  उपाय है ।शुभ विचार  रखना,  हर रोज नया पढ़ना,  हर रोज प्रवचन सुनना  तथा  हर रोज ध्यान साधना करना । 

अच्छे  वाक्यों को लिख कर योग के बाद 5 मिनिट दोहराने से भावना शुद्व होती है  । समस्या से  सम्बन्धित पुस्तकों  और ग्रंथों का अध्ययन करने से भावना शुद्व होती है  । 

पढ़ाई और योग  के बिना भावना  बदलना मुश्किल है ।कल्पना करना  ही भावना  का निर्माण करना है ।कोई भी इच्छा कल्पना में ही उठती है इच्छा को लक्ष्य बना कर  कर्म करने से भी भावना शुद्व होती है ।हर रोज  परमात्मा के महा वाक्य  ज्ञान  मुरली पढ़ते रहें तो प्रत्येक व्यक्ति की भावना और कर्म शुद्ध हो जाएंगे ! एक मास में ही अद्धभुत परिवर्तन होने लगता हैं ! इसलिए आप को चाहे कैसी भी समस्या आ रही है,  आप आस्तिक हैं,  चाहे नास्तिक इस  को पढ़ना शुरू कर दे ।



  

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