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 वर्तमान में ब्रह्माकुमारी संस्थान की मुख्य प्रशासिका , अब 46 हजार बहनों की मार्गदर्शक बारह वर्ष की उम्र में आध्यात्म से जुड़ी राजयोगिनी दादी ह्रदयमोहिनी



पत्रिका न्यूज नेटवर्क patrika.com आबूरोड . यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता । जहां नारी की पूजा होती , वहीं देवता निवास करते हैं । 12 वर्ष की उम्र में आध्यात्म से जुड़ी ह्रदयमोहिनी जीवन के अस्सी वर्ष आध्यात्मिक जीवन को देने के बाद आज वे 46 हजार बहनों की मार्गदर्शक व अभिभावक हैं दुनियाभर में फैली ब्रह्माकुमारी संस्थान की मुख्य प्रशासिका 92 वर्षीय राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी ने संस्थान का नेतृत्व कर विश्व में यह प्रमाणित कर दिया है कि नारी विश्व की जननी है । संस्कारों का पुंज और नए समाज का सृजनहार भी । 1928 में कराची में जन्मी दादी हृदयमोहिनी को हिंदी , अंग्रेजी व गुजराती का ज्ञान है । केवल चौथी कक्षा तक पढ़ाई के बाद वे 12 वर्ष की उम्र में ब्रह्माकुमारी संस्थान के सम्पर्क में आई । वर्षों के आध्यात्मिक ज्ञान के चलते 23 मार्च 2020 में संस्थान की पूर्व मुख्य प्रशासिका 104 वर्षीय राजयोगिनी दादी जानकी के निधन के बाद संस्था की बागडोर राजयोगिनी हृदयमोहिनी को सौंपी गई । हृदयमोहिनी संस्थान की मुख्य प्रशासिका के रूप में संस्थान के विश्व में 140 देशों में स्थित 8 हजार अधिक केंद्रों के जरिए संस्थान से जुड़ी 46 हजार महिला अनुयायियों अभिभावक हैं । दादी ह्रदयमोहिनी ने स्वयं को केवल मानव मात्र की सेवा , धन व वैभवों के बजाय मानवीय मूल्यों और श्रेष्ठ संस्कारों से करने पर जोर दिया । लाखों लोगों को अपने दिव्य व आध्यात्मिक ऊर्जा से नए जीवन का वरदान देने का कार्य कर है ।

शांत स्वभाव के साथ गंभीरता व्यक्तित्व में शामिल दादी हृदयमोहिनी की सबसे बड़ी विशेषता है उनका गंभीर व्यक्तित्व । हमेशा गहन चिंतन की मुद्रा में रहने वाले दादी हृदयमोहिनी का पूरा जीवन सादगी , सरलता और सौम्यता की मिसाल रहा । बचपन से ही विशेष योग - साधना के चलते दादी का व्यक्तित्व इतना दिव्य हो गया कि उनके सम्पर्क में आने वाले लोगों को उनकी तपस्या व साधना की अनुभूति होती । 18 जनवरी 1969 संस्थान के संस्थापक ब्रह्मा बाबा निधन के बाद दादी हृदयमोहिनी परमात्मा संदेशवाहक व दूत बनकर लोगों के लिए आध्यात्मिक ज्ञान व दिव्य प्रेरणा देने की भूमिका निभाई । 2016 तक संस्थान के मुख्यालय माउंटआबू में हर वर्ष आने वाले लाखों अनुयायियों के लिए परमात्मा का दिव्य संदेश देकर योग - तपस्या के लिए प्रेरित किया । दादी हृदयमोहिनी ने 14 वर्ष तक बाबा के सानिध्य में रहकर कठिन योग - साधना की । इन वर्षों में खाने- पीने को छोड़कर दिन - रात योग साधना में वह लगी रहती । तभी से दादी का स्वभाव बन गया कि जितना काम होता उतनी ही बात करती हैं । उनके निर्देशन में पूरे विश्व में आध्यात्मिक ज्ञान व राजयोग शिक्षा से लोगों के जीवन में इंसान को श्रेष्ठ बनाने की कला का कार्य प्रारम्भ है । दादी का कहना है कि यदि नारी अपने रूपों को जान व पहचान तो उसके जीवन में एक अदभुत बदलाव आ सकता है , क्योंकि वह शक्ति पुंज है ।

राजयोगिनी दादी हृदयमोहिनी को नॉर्थ उड़ीसा विश्वविद्यालय , बारीपाड़ा ने डी . लिट . ( डॉक्ट्रेट ऑफ लिटरेचर ) की उपाधि से सम्मानित किया है । दादी को यह उपाधि उड़ीसा में संदेशवाहक के रूप में लोगों आध्यात्मिकता का प्रचार - प्रसार करने और समाजसेवा के क्षेत्र में योगदान पर प्रदान की गई । पिछले कुछ समय से अस्वस्थ होने के बावजूद हृदयमोहिनी दिन - रात लोगों का कल्याण करने की भावना में लगी रहती है । मुख्य प्रशासिका मुंबई से ही संस्थान की गतिविधियों की जानकारी लेकर दिशा - निर्देश प्रदान करती हैं ।

वर्तमान में ब्रह्माकुमारी संस्थान की मुख्य प्रशासिका , अब 46 हजार बहनों की मार्गदर्शक बारह वर्ष की उम्र में आध्यात्म से जुड़ी राजयोगिनी दादी ह्रदयमोहिनी 

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