आज का चिंतन(सुविचार) - fastnewsharpal.com
फास्ट न्यूज हर पल समाचार पत्र,

आज का चिंतन(सुविचार)

 🍃🏵🍃🏵🍃🏵🍃🏵🍃

💠 *Aaj_Ka_Vichar*💠

🎋 *..27-03-2021*..🎋


✍🏻चाहे कोई व्यक्ति कितना भी बुरा हो, उसमें कोई न कोई गुण अवश्य होता है। मधुमक्खी बनकर गुणों रूपी मिठास एकत्रित करते रहें।

💐 *Brahma Kumaris* 💐

🌷 *σм ѕнαитι*

🍃🏵🍃🏵🍃🏵🍃🏵🍃


♻🍁♻🍁♻🍁♻🍁♻

  💥 *विचार परिवर्तन*💥


✍🏻खुशियों के लिए क्यों किसी का इंतज़ार करे, आप ही तो हो अपने जीवन के शिल्पकार, चलो आज मुश्किलों को हराते हैं और दिन भर मुस्कुराते हैं।

🌹 *σм ѕнαитι.*🌹

♻🍁♻🍁♻🍁♻🍁♻

🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
            ओम शांति
*समय निरंतर चलता रहता है। इसे न कोई रोक पाया है और न ही कोई रोक पायेगा इसलिए समय रहते आत्मज्ञान परम आवश्यक है अन्यथा घोर विनाश है। सिर्फ अपने शरीर को कष्ट देने से और किसी जंगल में अकेले में कठिन तपस्या करने से हमें आत्मआनंद की प्राप्ति नहीं होगी ।*
*हमें आत्मआनंद की प्राप्ति सिर्फ आत्मज्ञान के द्वारा प्राप्त हो सकती है। लम्बी यात्रा पर जाने से या कठिन व्रत रखने से हमें परम ज्ञान अथवा आत्मआनंद प्राप्त नहीं होगा।*
*चाहे हम योग, ज्ञान , भक्ति, ध्यान आदि की राह पर चलें या हम अपने सांसारिक उत्तरदायित्वों को पूर्ण करना ही बेहतर समझें, यदि हमने आत्मा और परमात्मा के भाव को जान लिया तो हमें सदैव आत्मआनंद प्राप्त होगा कयोंकी एकमात्र परमात्मा ही आनंद है।*
     ॐ शांति
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹

🌸🌼🌸🌼🌸🌼🌸🌼🌸

अनमोल वचन :
     
किसी की उन्नति को देखकर ईर्ष्या मत करो क्योंकि आपकी ईर्ष्या से दूसरों को तो कोई फर्क नहीं पड़ेगा मगर आपका स्वभाव जरूर बिगड़ जाएगा। किसी दूसरे की समृद्धि या उसकी किसी अच्छी वस्तु को देख कर यह भाव आना कि यह इसके पास ना होकर मेरे पास होनी चाहिए थी,बस इसी का नाम ईर्ष्या है। ईर्ष्या सीने की वो जलन है,जो पानी से नहीं अपितु सावधानी से शांत होती है। ईर्ष्या की आग बुझती अवश्य है किन्तु ताकत से नहीं, विवेक से। ईर्ष्या वो आग है जो लकड़ियों की नहीं अपितु आपकी खुशियों को जलाती है। अत: संतोष और ज्ञान रूपी पानी से इसे और अधिक भड़कने से रोको ताकि आपके जीवन में खुशियाँ नष्ट होने से बच सकें । जलो मत,साथ-साथ चलो क्योंकि खुशियाँ जलने से नहीं लेकिन आपसी सद्भाव रखने और सदमार्ग पर चलने से मिलती है।

🙏ओम् शांति🙏

🎈आपका दिन शुभ हो🎈

🌸🌼🌸🌼🌸🌼🌸🌼🌸

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
      ओम शांति
*कोई लाख अपने गुनाह छिपाये। उस रब से कुछ नही छिपा सकते।*

*जब उसकी मार पडती है तब अच्छे - अच्छे की अक्ल ठिकाने लग जाती है।*
*तब उसके गुनाह याद आने लग जाते हैं कि मैने किसके साथ क्या किया।*

*इसलिये हमेशा एक बात याद रखिये जो करेगा वो भरेगा*

*जब हम ईश्वर को मानते हैं तो सबकुछ उस  परमात्मा पर छोड देना चाहिए।*

*यदि कोईअपने आपको ईश्वर से बढकर समझता हो और दुसरो की बेइज्जती करता हो या अपनी मान-बडाई या अहंकारवश दूसरो का अपमान करता हो,*
 *उसे उसके किये की सजा एक न एक दिन अवश्य मिलेगी।*

*कुदरत किसी के साथ नाइंसाफी नहीं करती।*
*जो बोया है वही सामने आएगा*।

*हां देर जरुर हो सकती है, अंधेर नहीं।*

*करम जो जो करेगा , वही भोगना पडेगा....*
        ॐ शांति
🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
हमारी सबसे बड़ी *अज्ञानता* यह है कि... हम जो और जैसा *सोचते* है... वह किसी को भी पता नहीं चलता। जबकि वास्तविकता यह है कि आपके जीवन में *अच्छा या बुरा* जो भी *घटित* होता है... आपके *संकल्प* ही उसका आधार हैं।
जिन्दगी *बोझ* तब लगती है जब हम हर *कार्य* को ये सोच कर करते है कि ये में कर रहा हूँ, ये सोचो इसे *परमात्मा* करा रहा है।
       *ओम शांति*

♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️


*👉🏿^महामारी^*🏵️

🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅🔅

एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे

उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा तुम्हारी राजधानी के

बीचो बीच जो पुराना सूखा कुंआ है अगर

अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक

घर से एक – एक बाल्टी दूध उस कुएं में

डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और

लोगों का मरना बन्द हो जायेगा।

राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह

घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है । अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे अगर मै अकेली एक

बाल्टी "पानी" डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ

भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुयी थी। राजा ने जब कुंए

के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है।

दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी।

राजा समझ गया कि इसी कारण से

महामारी दूर नहीं हुई और लोग

अभी भी मर रहे हैं।

दरअसल ऐसा इसलिये हुआ

क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में

आया था वही विचार पूरे राज्य के

लोगों के मन में आ गया और किसी ने

भी कुंए में दूध नहीं डाला।

मित्रों , जैसा इस कहानी में हुआ

वैसा ही हमारे जीवन में

भी होता है। जब

भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे

लोगों को मिल कर करना होता है

तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह

सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और

हमारी इसी सोच की वजह से

स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं।

अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो पूरे देश में भी ऐसा बदलाव ला सकते हैं जिसकी आज ज़रूरत है।




🌻▪️🌻▪️🌻▪️🌻

Previous article
Next article

Articles Ads

Articles Ads 1

Articles Ads 2

Advertisement Ads