आज का चिंतन(सुविचार) - fastnewsharpal.com
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आज का चिंतन(सुविचार)

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💠 *Aaj_Ka_Vichar*💠

🎋 *..07-03-2021*..🎋


✍🏻कठिनाइयाँ एक प्रकार का व्यायाम है जिनका निर्माण इस लिए किया गया है कि मनुष्य अपनी उन्नति कर सके।

💐 *Brahma Kumaris* 💐

🌷 *σм ѕнαитι*

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  💥 *विचार परिवर्तन*💥


✍🏻अपनी सहनशीलता को बढाइए, छोटी मोटी घटना से हताश मत होईये, जो चंदन घिस जाता है, वह भगवान के मस्तक पर लगाया जाता है और जो नही घिसता वह तो सिर्फ जलाने के काम ही आता है।

🌹 *σм ѕнαитι.*🌹

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#GOD is #ONE
आपको यह जानकर हर्ष होगा ( और शायद आश्चर्य भी ) कि शिवरात्रि कोई साधारण पर्व नही बल्कि सर्व आत्माओं के पारलौकिक परमपिता , निराकार परमात्मा के इस सृष्टि पर दिव्य अवतरण का स्मृति दिवस है । अत : यह पर्व सारे विश्व का सर्व महान पर्व है । शिवरात्रि पर्व का वर्तमान समय से व हम सभी के जीवन से गहरा सम्बंध है । 

#शिवरात्रि_का_रहस्य : - 

आध्यात्मिक अर्थ में रात्रि शब्द , अज्ञान अंधकार व आसुरी लक्ष्णों का सूचक है और शिव शब्द , कल्याणकारी निराकार परमात्मा के लिए है । आज आप चारों ओर देख रहें है पापाचार , दुराचार व भ्रष्टाचार बढ़ता जा रहा है । मनुष्य विषय - विकारों की कैद में फंस हुए हैं । ' गीता ' में वर्णित धर्म की ग्लानि के सभी लक्ष्ण साफ - साफ दिखाई दे रहें है । यही वह समय है जबकि , स्वयं सृष्टि के रचयिता निराकार परमात्मा शिव इस धरा पर अवतरित होकर , अज्ञान व अधर्म के अंधकार को मिटाते हैं , जिसका यादगार पर्व है ' महाशिवरात्रि ' । 

#परमात्मा_शिव_का_परिचय : - 

भारत के कोने - कोने में १२ ज्योतिर्लिंग परमात्मा शिव के दिव्य कर्तव्यों की यादगार प्रतिमाएं हैं । दूसरे धर्मो में ' गॉड इज लाइट ' , ' अल्लाह नूर ' , ' एकों ओंकार निराकार ' कहकर , परमपिता परमात्मा को प्रकाश का रूप माना गया है । अत : ज्योतिस्वरूप निराकार परमात्मा की ही यादगार प्रतिमा शिवलिंग है जिसे ज्योतिर्लिंगम् भी कहा जाता है । शिव व शंकर में महान अन्तर है , शंकर जी विनाश की एक शक्ति के प्रतीक है जबकि परमात्मा शिव , रचना - पालना - विनाश तीनों शक्तियों के दाता है । शंकर जी सूक्ष्म शरीर धारी देवता हैं और शिव निराकार परमात्मा हैं , इसलिए शिव को अजन्मा अभोक्ता भी कहा जाता है । 

#शिवरात्रि_पर्व_पर_मनाई_जाने_वाली_रस्में_एवं_उनका_आध्यात्मिक_रहस्य :-

1 शिवरात्रि पर जागरण... 
अर्थात अज्ञान निंद्रा से जागने की निशानी 

2 शिवरात्रि पर व्रत... 
अर्थात विषय विकारों के त्याग की प्रतिज्ञा 

3 जल की लोटी चढ़ाना... 
अर्थात मन के पवित्र प्रेम का अर्पण 

4 कलावा बांधना... 
अर्थात आत्मा का परमात्मा से मन का बंधन बांधना ( मनमनाभव ) 

5 अक - धतूरा चढ़ाना... 
अर्थात मनोविकारों रूपी विष का त्याग करना 

6 बेल - पत्र चढ़ाना... 
अर्थात मन - बुद्वि - संस्कार सहित शिव पर अर्पण होना 

7 तिलक लगाना... 
अर्थात आत्म स्मृति में रहना 

8 बलि चढ़ाना... 
अर्थात स्वयं के मैं पन को मिटाना...

 ओम शांति।

💧 *_आज का मीठा मोती_*💧
_*07 मार्च:-*_ अगर किसी व्यक्ति में आपको बोहोत सारे अवगुण दिखाई दे तो ये मत समजना के उसमे कोई गुण नहीं है, क्योकि हिरा कोयले की खान से निकलता है।
        🙏🙏 *_ओम शान्ति_*🙏🙏
       🌹🌻 *_ब्रह्माकुमारीज़_*🌻🌹
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अजन्मा परमात्मा शिव का दिव्य जन्म


परमपितापरमात्मा शिव किसी पुरुष के बीज से अथवा किसी माता के गर्भ से जन्म नहीं लेते क्योंकि वे तो स्वयं ही सबके माता-पिता है, मनुष्य-सृष्टि के चेतन बीज रूप है और जन्म-मरण तथा कर्म-बन्धन से रहित है |अत: वे एक साधारण मनुष्य के वृद्धावस्था वाले तन में प्रवेश करते है | इसे ही परमात्मा शिव का ‘दिव्य-जन्म’ अथवा ‘अवतरण’ भी कहा जाता है क्योंकि जिस तन में वे प्रवेश करते है वह एक जन्म-मरण तथा कर्म बन्धन के चक्कर में आने वाली मनुष्यात्मा ही का शरीर होता है, वह परमात्मा का ‘अपना’ शरीर नहीं होता | 


जब सारी सृष्टि माया (अर्थात काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार आदि पाँच विकारों) के पंजे में फंस जाती है तब परमपिता परमात्मा शिव, जो कि आवागमन के चक्कर से मुक्त है, मनुष्यात्माओं को पवित्रता, सुख और शान्ति का वरदान देकर माया के पंजे से छुड़ाते है | वे ही सहज ज्ञान और राजयोग की शिक्षा देते है तथा सभी आत्माओं को परमधाम में ले जाते है तथा मुक्ति एवं जीवनमुक्ति का वरदान देते है | 


शिव रात्रि का त्यौहार फाल्गुन मास, जो कि विक्रमी सम्वत का अंतिम मास होता है, में आता है | उस समय कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी होती है और पूर्ण अन्धकार होता है | उसके पश्चात शुक्ल पक्ष का आरम्भ होता हुई और कुछ ही दिनों बाद नया संवत आरम्भ होता है | अत: रात्री की तरह फाल्गुन की कृष्ण चतुर्दशी भी आत्माओं को अज्ञान अन्धकार, विकार अथवा आसुरी लक्षणों की पराकाष्ठा के अन्तिम चरण का बोधक है | इसके पश्चात आत्माओं का शुक्ल पक्ष अथवा नया कल्प प्रारम्भ होता है, अर्थात अज्ञान और दुःख के समय का अन्त होकर पवित्र तथा सुख अ समय शुरू होता है |


परमात्मा शिव अवतरित होकर अपने ज्ञान, योग तथा पवित्रता द्वारा आत्माओं में आध्यात्मिक जागृति उत्पन्न करते है इसी महत्व के फलस्वरूप भक्त लोग शिवरात्रि को जागरण करते है | इस दिन मनुष्य उपवास, व्रत आदि भी रखते है | उपवास (उप-निकट, वास-रहना) का वास्तविक अर्थ है ही परमत्मा के समीप हो जाना | अब परमात्मा से युक्त होने के लिए पवित्रता का व्रत लेना जरूरी है | 


         ओम शांति

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