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💠 *Aaj_Ka_Vichar*💠
🎋 *..08-05-2021*..🎋
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✍🏻हमारी खुशी हमारी सोच पर निर्भर है, हम शिकायत कर सकते हैं कि गुलाब की झाड़ियों में कांटें हैं या खुश हो सकते हैं कि काँटों की झाड़ियों में गुलाब हैं।
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💐 *Brahma Kumaris* 💐
🌷 *σм ѕнαитι*🌷
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💧 *_आज का मीठा मोती_*💧
_*08 मई:-*_ क्रोध के कारण स्वार्थ और ईर्ष्या है, इनका त्याग करने से अंदर में स्नेह और मधुरता भर्ती है।
🙏🙏 *_ओम शान्ति_*🙏🙏
🌹🌻 *_ब्रह्माकुमारीज़_*🌻🌹
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*जब मनुष्य जन्म लेता है तो उसके पास सांसे तो होती हैं पर कोई नाम नहीं होता और जब मनुष्य की मृत्यु होती है तो उसके पास नाम तो होता है पर सांसे नहीं होती।*
*इसी सांसोंऔर नाम के बीच की यात्रा को "जीवन" कहते हैं।*
*न किसी के अभाव में जियो,*
*न किसी के प्रभाव में जियो। यह जिंदगी है आपकी, अपने स्वभाव में जियो।*
ॐ शांति
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*जाने - अनजाने मनुष्य से अनेक तरह के पाप कर्म बन ही जाते हैं। चाहते हुए पाप करना अलग बात है लेकिन न चाहते हुए भी अनेक पाप कर्म मनुष्य कर ही लेता है। मनुष्य द्वारा जाने - अनजाने किये जाने वाले उन्हीं पाप कर्मों के फल स्वरूप उसके कर्म फल का भी निर्धारण किया जाता है और उन पाप कर्मों के आधार पर ही उसके दण्ड का भी निर्धारण होता है। उन पाप कर्मों के फल से बचने के लिए शास्त्रों ने जो विधान निश्चित किया गया है उसी को प्रायश्चित कर्म कहा गया है।*
*सरल अर्थों में मनुष्य का अपराध बोध ही उसका प्रायश्चित कहलाता है। कोई पाप कर्म बनने पर अथवा तो कोई गलत कर्म बनने पर मनुष्य द्वारा अपने उस गलत कर्म की स्वीकारोक्ति और उसके निवृत्ति के लिए किया जाने वाला कर्म ही प्रायश्चित कर्म कहलाता है।*
*अगर कभी जाने - अनजाने कोई अपराध बन जाता है और प्रायश्चित कर्म के फलस्वरूप मनुष्य ज्यादा कुछ भी न कर पाये और वह केवल इतना करले कि अपने अपराध बोध को स्वीकारते हुए, अपने पूर्व कृत दुष्कर्मों को स्वीकारते हुए आर्त भाव से उस परम प्रभु को बताके दुबारा नही करने का वचन कर ले तो इससे बढ़कर कोई प्रायश्चित नहीं हो सकता।*
ॐ शांति
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अनमोल वचन :
पानी में खुद के प्रतिबिम्ब को देखने की तीन शर्ते है:-पानी उबलता हुआ नहीं होना चाहिए,पानी मैला नहीं होना चाहिए और उसमें तरंगे नहीं होनी चाहिए। इसी प्रकार अगर हमें परमात्मा को पाना हो तो मन में क्रोध नहीं होना चाहिए,मन मैला नहीं
होना चाहिए और उस में इच्छाओं की तरंगें नहीं होनी चाहिए !!
🙏ओम् शांति🙏
🌹आपका दिन शुभ हो 🌹
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🙏 *ॐ शांति* 🙏
नकारात्मकता एक विष की तरह होती है, जो धीरे-धीरे आपके *व्यक्तित्व* को *खत्म* कर देती है। इसलिये हर परिस्थिति में *सकारात्मक* रहने का प्रयास करें।
🌸 सुप्रभात...
💐💐 आपका दिन शुभ हो... 💐💐
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*कर्मों से डरिये ईश्वर से नहीं... ईश्वर तो माफ कर देता हैं मगर कर्म कभी माफ़ नहीं करते।यह अटल सत्य है कि जैसे बछड़ा सौ गायों में अपनी मां को ढूंढ लेता है... उसी प्रकार कर्म भी अपने कर्ता को ढूंढ ही लेता है... आज नहीं तो कल।इसलिये कर्म करते वक़्त ज़रूर सोचिये कि इसका फल मुझे ही भोगना है👏🏻*
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ॐ शांति
*यदि कोई कहे कि सिमरण करते हुए आनंद और शांति नहीं मिल रही तो इसका कोई कारण अवश्य होना चाहिये ।*
*ये कभी नहीं हो सकता कि लोहा पारस को छू जाये और सोना न बने । लोहा ही मैला और खोटा या जंग लगा हो तो पारस क्या करे । यदि लोहा और पारस पास-पास होते हुए भी लोहे की दशा नहीं बदलती तो समझ लेना चाहिये कि बीच में अवश्य कोई पर्दा रह गया है , चाहे वह कितना ही बारीक क्यों न हो , उस पर्दे ने लोहे को पारस से टकराने नहीं दिया है ।।*
*पारस के स्पर्श से साफ लोहा सोना जरूर बन सकता है पर पारस नहीं , मगर भगवान जो हैं जीव को उसे अपना ही रूप बना लेते हैं ।*
*जरूरत है दृड़ विश्वास की , जो उनकी बात पर विश्वास करता है तो उसे अपने रुप बनाना चाहते हैं ।।*
*यही अन्तर है गुरु में और पारस में , पारस तो लोहे को सोना ही बना सकता है परन्तु गुरु सच्चे नाम की कमाई वाले को अपने समान ही महान बना लेते हैं ।।*
ॐ शांति
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ओम शांति
*सारा संसार सुख और शांति की तलाश में मारा - मारा फिर रहा है । शारीरिक और बाहरी सुख क्षणभंगुर और बदल जानेवाले हैं । इंद्रियों के घाट पर जो सुख प्रतीत होते हैं , वे हमारे अपने ही मन की वृत्तियों के उनके साथ जुड़ जाने के फलस्वरूप हैं । वह सुख हमारा अपना ही है जो एकाग्रता ( मन की वृत्तियों की क्षणिक एकाग्रता ) के कारण प्रतीत होता है ; जिस प्रकार कुत्ता हड्डी को चबाता है जिससे उसके अपने मुँह से खून बहता है , वह उसे पीकर मस्त होता है और समझता है कि यह हड्डी से मिल रहा है ।*
*_ _ _ आत्मा चेतन है , उसे अचेतन जड़ पदार्थों से सुख कहाँ ! उसे तो केवल महाचेतन के साथ जुड़ने से सच्चा सुख मिल सकेगा । गुरु का शब्द महाचेतन की धारा है , जिसके साथ स्पर्श करके सुरत सच्चे सुख का अनुभव करती है :*
ॐ शांति
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♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️
*👉🏿मृत्यु एक सत्य हैं* 🏵️
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एक राधेश्याम नामक युवक था | स्वभाव का बड़ा ही शांत एवम सुविचारों वाला व्यतयक्ति था | उसका छोटा सा परिवार था जिसमे उसके माता- पिता, पत्नी एवम दो बच्चे थे | सभी से वो बेहद प्यार करता था |
इसके अलावा वो कृष्ण भक्त था और सभी पर दया भाव रखता था | जरूरतमंद की सेवा करता था | किसी को दुःख नहीं देता था | उसके इन्ही गुणों के कारण श्री कृष्ण उससे बहुत प्रसन्न थे और सदैव उसके साथ रहते थे | और राधेश्याम अपने कृष्ण को देख भी सकता था और बाते भी करता था | इसके बावजूद उसने कभी ईश्वर से कुछ नहीं माँगा | वह बहुत खुश रहता था क्यूंकि ईश्वर हमेशा उसके साथ रहते थे | उसे मार्गदर्शन देते थे | राधेश्याम भी कृष्ण को अपने मित्र की तरह ही पुकारता था और उनसे अपने विचारों को बाँटता था |
एक दिन राधेश्याम के पिता की तबियत अचानक ख़राब हो गई | उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया | उसने सभी डॉक्टर्स के हाथ जोड़े | अपने पिता को बचाने की मिन्नते की | लेकिन सभी ने उससे कहा कि वो ज्यादा उम्मीद नहीं दे सकते | और सभी ने उसे भगवान् पर भरोसा रखने को कहा |
तभी राधेश्याम को कृष्ण का ख्याल आया और उसने अपने कृष्ण को पुकारा | कृष्ण दौड़े चले आये | राधेश्याम ने कहा – मित्र ! तुम तो भगवान हो मेरे पिता को बचा लो | कृष्ण ने कहा – मित्र ! ये मेरे हाथों में नहीं हैं | अगर मृत्यु का समय होगा तो होना तय हैं | इस पर राधेश्याम नाराज हो गया और कृष्ण से लड़ने लगा, गुस्से में उन्हें कौसने लगा | भगवान् ने भी उसे बहुत समझाया पर उसने एक ना सुनी |
तब भगवान् कृष्ण ने उससे कहा – मित्र ! मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूँ लेकिन इसके लिए तुम्हे एक कार्य करना होगा | राधेश्याम ने तुरंत पूछा कैसा कार्य ? कृष्ण ने कहा – तुम्हे ! किसी एक घर से मुट्ठी भर ज्वार लानी होगी और ध्यान रखना होगा कि उस परिवार में कभी किसी की मृत्यु न हुई हो | राधेश्याम झट से हाँ बोलकर तलाश में निकल गया | उसने कई दरवाजे खटखटायें | हर घर में ज्वार तो होती लेकिन ऐसा कोई नहीं होता जिनके परिवार में किसी की मृत्यु ना हुई हो | किसी का पिता, किसी का दादा, किसी का भाई, माँ, काकी या बहन | दो दिन तक भटकने के बाद भी राधेश्याम को ऐसा एक भी घर नहीं मिला |
तब उसे इस बात का अहसास हुआ कि मृत्यु एक अटल सत्य हैं | इसका सामना सभी को करना होता हैं | इससे कोई नहीं भाग सकता | और वो अपने व्यवहार के लिए कृष्ण से क्षमा मांगता हैं और निर्णय लेता हैं जब तक उसके पिता जीवित हैं उनकी सेवा करेगा |
थोड़े दिनों बाद राधेश्याम के पिता स्वर्ग सिधार जाते हैं | उसे दुःख तो होता हैं लेकिन ईश्वर की दी उस सीख के कारण उसका मन शांत रहता हैं |
दोस्तों इसी प्रकार हम सभी को इस सच को स्वीकार करना चाहिये कि मृत्यु एक अटल सत्य हैं उसे नकारना मुर्खता हैं | दुःख होता हैं लेकिन उसमे फँस जाना गलत हैं क्यूंकि केवल आप ही उस दुःख से पिढीत नहीं हैं अपितु सम्पूर्ण मानव जाति उस दुःख से रूबरू होती ही हैं | ऐसे सच को स्वीकार कर आगे बढ़ना ही जीवन हैं |
कई बार हम अपने किसी खास के चले जाने से इतने बेबस हो जाते हैं कि सामने खड़ा जीवन और उससे जुड़े लोग हमें दिखाई ही नहीं पड़ते | ऐसे अंधकार से निकलना मुश्किल हो जाता हैं | जो मनुष्य मृत्यु के सत्य को स्वीकार कर लेता हैं उसका जीवन भार विहीन हो जाता हैं और उसे कभी कोई कष्ट तोड़ नहीं सकता | वो जीवन के हर क्षेत्र में आगे बढ़ता जाता हैं |
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