नारायण नाम रटने से कट जाते सारे पाप,शहर के सत्यनारायण मंदिर में अजामिल प्रसंग पर प्रवचन
आधुनिकीकरण के नाम पर संस्कृति का हो रहा पतन: पं. आदित्य रामदास
नारायण नाम रटने से कट जाते सारे पाप,शहर के सत्यनारायण मंदिर में अजामिल प्रसंग पर प्रवचन
गोबरा नवापारा नगर
रविवार को शाम 4:00 बजे शहर के प्रसिद्ध श्री सत्यनारायण मंदिर (कंसारी समाज ) में इस्कॉन मंदिर मुंबई से पधारे भागवताचार्य आदित्य रामदास प्रभु ने अजामिल प्रसंग पर विशेष व्याख्यान दिए। उन्होंने कहा कि कलयुग में ईश्वर नाम रतन ही श्रेष्ठ है। सतयुग में भगवान विष्णु हुए, त्रेता में रामचंद्र, द्वापर में कृष्ण तथा कलयुग में ईश्वर नाम की भक्ति को ही प्रमुख बताया गया है। कृष्ण के 16 अक्षर का महामंत्र जीवन को गति प्रदान करता है।
उन्होंने आगे कहा कि प्रभु के नाम के जपन से मनुष्य गलत कार्यों की ओर उन्मुख नहीं होता है उनमें अच्छे विचार पनपते हैं तथा जीवन जीने की कला आती है। काम क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है जो व्यक्ति काम में आसक्त होते हैं उन पर विश्वास नहीं किया जा सकता। लंका जाने के लिए हनुमान ने राम नाम का सहारा लिया और उन्हें के भरोसे लंबे चौड़े समुद्र को पारकर लंकापुरी प्रस्थान कर गए। हम भी अपने दिनचर्या में राम नाम को उतार ले तो गति मिलेगी। जिससे सद्गति प्राप्त किया जा सकता है। वर्तमान कन्नौज का रहने वाला अजामिल ब्राह्मण था एक दिन पिता की आज्ञा से अजामिल जंगल फूल लाने के लिए चले गए लेकिन वहां उन्होंने वेश्या और शूद्र के आलिंगन देख लिया जिससे उन्हें अपने आप का ही भान ना रहा और शनै शनै वह भी वेश्या के समीप जा पहुंचा तथा उसे अपना पत्नी बना लिया। उनके द्वारा 10 पुत्र हुए। सबसे छोटे पुत्र प्राप्त हुए तो अचानक एक दिन उनके घर में कुछ ऋषि भिक्षा मांगने के लिए उपस्थित हुए। उनके छोटे पुत्र को देखकर उन्होंने उनका नाम पूछा तब अजामिल की पत्नी ने कहा कि इनका नामकरण नहीं हुआ है इस पर साधुओं ने उनका नाम नारायण रख दिया और चला गया। जंगल से वापस आने के बाद अजामिल को सारे घटनाक्रम को बताया गया। उस दिन आजामिल ने बार-बार नारायण शब्द का उच्चारण किया जिससे उनके जीवन के पाप कट गए। 88 वर्ष की उम्र में दसवां पुत्र प्राप्त हुआ था। जैसे तैसे अब उनके जाने का समय हो गया प्राण हरने के लिए यमराज उपस्थित हो गए। उन्हें देखकर अजामिल अपने बेटे नारायण को चिल्लाने लगा। उनका बेटा तो नहीं आया लेकिन नारायण भगवान जरूर उन्हें मौत के मुंह से बचा गए और इस तरह से ईश्वर नाम संकीर्तन करने का समय मिल गया जिससे उनके जीवन को सद्गति मिली। पं. आदित्य रामदास प्रभुजी आधुनिकता के चकाचौंध पर फोकस करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति पूरी दुनिया में विख्यात है फिर भी हम गलत दिशा में जा रहे हैं यह चिंतनीय विषय बन गया है आधुनिकीकरण के नाम पर संस्कृति का पतन हो रहा है। मोबाइल एवं टीवी ने बहुत कुछ दिया है लेकिन बहुत कुछ हमसे छीन भी लिया है लोग मोबाइल में घंटों चैट करते रहते हैं जबकि वह समय परिवार के सदस्यों के साथ बतियाने का होता है सुख-दुख बांटने के समय अब मोबाइल में ही पूरा वक्त व्यतीत हो रहा है। दूसरे शब्दों में हमें जिसे नहीं देखना चाहिए हम समय से पहले उसे देख लेते हैं जिससे मानव समाज का नुकसान ही हो रहा है। तनाव बढ़ता जा रहा है हमें जिनका जितना उपयोग करना चाहिए उसी के आधार पर काम करें तो जीवन खुशहाल हो जाता है और यदि अति कर दे तो उनसे संकट पैदा होती है। इससे अच्छे समाज की कल्पना कैसे की जा सकती है। वैज्ञानिक आविष्कार सुविधाएं प्रदान करने के लिए होती है ना कि उस पर लिप्त होने की। इस मौके पर प्रमुख रूप से सत्यनारायण मंदिर कमेटी के अध्यक्ष राजकुमार कंसारी, कंसारी समाज के अध्यक्ष सहदेव कंसारी, रामा साव, कलीदान कंसारी, बलराम कंसारी, रमेश कंसारी, मुन्ना साव, बाबूलाल साव, विन्डू कंसारी, गोविंदा कंसारी, मिथिलेश कंसारी, संतोष कंसारी, नंदकुमार साव, साहित्यकार तुकाराम कंसारी सहित सामाजिक बंधु ,मंदिर कमेटी एवं नगर कंसारी समाज के पदाधिकारी एवं भजन मंडली के सदस्यगण महिलाएं , बच्चे युवा व बुजुर्ग भी उपस्थित थे।