शहीद भगत सिंह
सुनो जम्बू के वीर लाल
गाथा वर्णन एक भरत बाल
रग रग में जिसके इंकलाब
जीवन जैसे क्रांति मशाल।
जननी जिसकी विद्यावती
पिता सरदार किशन सिंह
जन्मे 1907 में
नाम पाया भगत सिंह ।
बारह बरस में देख रक्तपात
अपने ही परिवार का
ठाना भगत ने लूँगा प्रतिशोध
जलियाँवाला बाग का।
त्याग कर लड़कपन की अठखेलियाँ
पोथी शूर - वीरों की पढ़ने लगा
काटकर परतंत्रता की बेड़ियाँ
आज़ादी का स्वप्न गढ़ने लगा।
पगड़ी बाँध भर जोश हृदय में
नौजवान काफिला बनाया
निराश हो चौरा-चौरी कांड से
सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाया।
क्षुब्ध हो लाला जी की हत्या से
की प्रतिशोध की जंग शुरु
संगठित किया क्रांति वीरों को
प्रमुख जिनमें चंद्रशेखर और राजगुरु।
फेका बम असेम्बली में उस स्थान
जहाँ न खड़ा था कोई इंसान
जो स्वार्थ में बिक जाये वो देशभक्त नहीं
जो डरकर भाग जाये ऐसा भगत सिंह नहीं
कहकर बटुकेश्वर संग अपने पैर जमा दिए
और इंकलाब जिंदाबाद इंकलाब जिंदाबाद
उद्घोष संग सारे पर्चे उड़ा दिए ।
फिर आयी शाम तेईस की
मार्च का था महीना
सीने में भरकर जोश जोशीला
चले जवान पहन बसंती चोला।
मौत का न था डर उनको
भारतभूमि शीश चढ़ाने बढ़े चले
फाँसी के फंदे को गले लगाने
वतन के शहीदे आजम बढ़े चले ।
स्वरचित
समीक्षा गायकवाड़
व्याख्याता
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय राजिम
जिला- गरियाबंद
छत्तीसगढ़
