मौन क्यों रह गए ????
मौन क्यों रह गए ????
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अपने बनाए आशियाना देखो,
देखते ही देखते ढह गए|
दोषी कौन बताओ जरा?
क्यूँ पश्चात्य धारा में बह गए||
सच है बेटा और बेटियों के बीच,
अब रहा न कोई अंतर|
क्यूँ परंपराएं कुरुती हो गए,
आधुनिकता का छाया मंतर||
बेटी की चोटी,छोटी हो गई,
बेटों के मस्तक पे लगे न टीके|
सुहागन की पल्लू कहाँ खो गए,
अब लगते हैं सिंदूर फीके||
अपने बच्चों के लिए माँ बाप के,
अरमां धरे के धरे रह गए--
रामायण पर धूल चढ़ी है,
अब तो जूते सजाएआलमारी में|
कैंसर की अब बात ही छोड़ो,
लोग मर रहे शक्कर बीमारी में||
पंगत की रंगत अब नहीं दिखते,
बासी भी खाते टेबल पर|
कैसा जमाना आ गया,
बेटा बाप को न समझे लेबल पर||
अब कसूरवार किसको कहें ?
अपने ही अपना न रह गए---
दादा-दादी,काका-काकी का,
अब होता न घरों पर दर्शन|
दाना न रहे खाने को घरों में,
झूठी शान का होता प्रदर्शन||
माँ का आँचल वो कहाँ से लाए,
जो देते हैं जींस में दर्शन|
अनाचार को न्यौता क्यूँ देते?
कब बंद होगा अंग प्रदर्शन||
जिंदगी माना मौज मस्ती को,
सब संस्कार अधूरे रह गए---
शिक्षा में संस्कार नहीं है,
अब जीवन में व्यवहार नहीं है|
आदर्श वाक्य बेतुके लगते,
अब कहीं सदाचार नहीं है||
भाव-भजन को कोई न जाने,
देवी-देवता कोई न मानें |
गौ माता को वनवास भेज रहे,
लोग बने कुत्तों के दीवाने||
सोचो अगले पीढ़ी हेतु,
अब कौन सा नैतिकता रह गए--
अपनी संस्कृति और सभ्यता,
अगर हम ही बचा न पायेंगे||
फिर आने वाले वक्त में हम,
अपने वंशजों से गाली खायेंगे||
मत देख बुरी नजर से तू,
औरों के चाल,चरित्र और कर्म को|
अब भी संभल जा और सुधार ले,
निज कर्तव्य और धर्म को||
फिर मुझे मत कहना प्रखर,
आखिर तुम भी क्यूँ मौन रह गए-
रचनाकार
:-श्रवण कुमार साहू, "प्रखर"
शिक्षक/साहित्यकार, राजिम, गरियाबंद, (छ.ग.)

