*मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है ?* - fastnewsharpal.com
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*मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है ?*

 *मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है ?*




 मनुष्य का वर्तमान जीवन बड़ा अनमोल है क्योंकि अब संगम युग में ही वह सर्वोत्तम पुरुषार्थ करके जन्म - जन्मान्तर के लिए सर्वोत्तम प्रारब्ध बना सकता है और अतुल हीरों - तुल्य कमाई कर सकता है । वह इसी जन्म में सृष्टि का मालिक अथवा जगत् - जीत बनने का पुरुषार्थ कर सकता है । परन्तु , आज मनुष्य को जीवन का लक्ष्य मालूम न होने के कारण वह सर्वोत्तम पुरुषार्थ करने की बजाय इसे विषय - विकारों में गवा रहा है अथवा अल्पकाल की प्राप्ति में ही लगा रहा है । आज वह लौकिक शिक्षा द्वारा वकील , डाक्टर , इंजीनियर बनने का पुरुषार्थ कर रहा है और कोई तो राजनीति में भाग लेकर देश का नेता , मन्त्री अथवा प्रधान मंत्री बनने के प्रयत्न में लगा हुआ है । अन्य कोई इन सभी का संन्यास करके , ' संन्यासी ' बनकर रहना चाहता है । परन्तु सभी जानते हैं कि मृत्युलोक में तो राजा - रानी , नेता , वकील , इंजीनियर , डाक्टर , संन्यासी इत्यादि कोई भी पूर्ण सुखी नहीं हैं । सभी को तन का रोग , मन की अशान्ति , धन की कमी , जनता की चिन्ता या प्रकृति के द्वारा कोई पीड़ा , कुछ - न - कुछ तो दुःख लगा ही हुआ है । अतः इनकी प्राप्ति से मनुष्य जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती क्योंकि मनुष्य तो सम्पूर्ण पवित्रता , सदा सुख और स्थायी शान्ति चाहता है । चित्र में अंकित किया गया है कि मनुष्य जीवन का लक्ष्य जीवन - मुक्ति की प्राप्ति अथवा वैकुण्ठ में सम्पूर्ण सुख - शान्ति सम्पन्न श्री नारायण या श्री लक्ष्मी पद की प्राप्ति ही है क्योंकि वैकुण्ठ के देवता तो अमर माने गये हैं , उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती ; उनकी काया सदा निरोगी होती है और उनके खजाने में किसी भी प्रकार की कमी नहीं होती । इसीलिए ही तो मनुष्य स्वर्ग अथवा वैकुण्ठ को याद करते हैं और जब उनका कोई प्रिय सम्बंधी शरीर छोड़ता है तो वे कहते हैं कि वह स्वर्ग सिधार गया है ।


*इस पद की प्राप्ति स्वयं परमात्मा ही ईश्वरीय विद्या द्वारा कराते हैं*


 इस लक्ष्य की प्राप्ति कोई मनुष्य अर्थात् कोई साधु - संन्यासी , गुरु या जगगुरू नहीं करा सकता बल्कि यह दो ताजों वाला देव - पद अथवा राजा - रानी पद तो ज्ञान के सागर परमपिता परमात्मा शिव ही से प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ईश्वरीय ज्ञान तथा सहज राजयोग के अभ्यास से प्राप्त होता है । अतः अब जबकि परमपिता परमात्मा शिव ने इस सर्वोत्तम ईश्वरीय विद्या की शिक्षा देने के लिए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की स्थापना की है तो सभी नर - नारियों को चाहिए कि वे अपने घर - गृहस्थ में रहते हुए , अपना कार्य - धन्धा करते हुए प्रतिदिन एक - दो घण्टे निकालकर अपने भावी जन्म - जन्मान्तर के कल्याण के लिए इस सर्वोत्तम तथा सहज शिक्षा को प्राप्त करें । इस विद्या की प्राप्ति के लिए तो कुछ भी खर्च करने की आवश्यकता नहीं है ; इसलिए इसे तो निर्धन व्यक्ति भी प्राप्त कर अपना सौभाग्य बना सकते हैं । इस विद्या को तो कन्याओं , माताओं , वृद्ध पुरुषों , छोटे बच्चों और अन्य सभी को प्राप्त करने का अधिकार है क्योंकि आत्मा की दृष्टि से तो सभी परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं ।


*अभी नहीं तो कभी नहीं*



 वर्तमान जन्म सभी का अन्तिम जन्म है । इसलिए , अब यह पुरुषार्थ न किया तो फिर यह कभी न हो सकेगा क्योंकि स्वयं ज्ञान सागर परमात्मा द्वारा दिया हुआ यह मूल गीता ज्ञान कल्प में एक ही बार इस कल्याणकारी संगम युग में ही प्राप्त हो सकता है ।

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