जीव जब अपना जीवत्व छोड़कर ईश्वर के साथ प्रेम से तन्मय हो जाता है तब ईश्वर भी अपना ईश्वरत्व ऐश्वर्य भूल जाते हैं_ आचार्य युगल - fastnewsharpal.com
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जीव जब अपना जीवत्व छोड़कर ईश्वर के साथ प्रेम से तन्मय हो जाता है तब ईश्वर भी अपना ईश्वरत्व ऐश्वर्य भूल जाते हैं_ आचार्य युगल

 जीव जब अपना जीवत्व  छोड़कर ईश्वर के साथ प्रेम से तन्मय हो जाता है तब ईश्वर भी अपना ईश्वरत्व ऐश्वर्य भूल जाते हैं_ आचार्य युगल



सुदामा के तांदुल खाकर द्वारकाधीश ने दिया द्वारिका का ऐश्वर्य_आचार्य युगल शर्मा


आरंग

श्री सार्वजनिक गोरागुड़ी केवशी लोधी पारा समिति के तत्वाधान में आयोजित श्री भागवत कथा के छठवें दिन आचार्य पंडित युगल किशोर शर्मा ने अक्रूर प्रसंग,कंस वध वा उद्धव के मार्मिक प्रसंग की व्याख्या करते हुए कहा कि उद्धव का ज्ञान मार्ग धीरे-धीरे मिट् रहा था क्योंकि उनका ज्ञान भक्ति रहित था तो भगवान ने उनको ब्रज भेजा था, उद्धव नंद यशोदा सी प्रेम मूर्ति को देखकर आनंदित हो गए, उद्धव ने कहा मैं श्री कृष्ण का संदेश लेकर आया हूं तो गोपियों ने कहा कि तुम थोथे पंडित हो क्या, श्री कृष्ण केवल मथुरा में ही बसते हैं वो तो सर्वत्र हैं तुम्हें मात्र मथुरा में ही भगवान दिखाई देते हैं और हमको कण कण में, हमारा कृष्णा कदंब के वृक्ष पर बैठा बांसुरी बजा रहा है वह तुम्हें नहीं दिखाई देता यदि कृष्ण से तुम्हारा साक्षात्कार हुआ होता तुम उन्हें वहां छोड़ यहां नहीं आए होते आचार्य पंडित शर्मा ने स्पष्ट किया कि उद्धव ने  गोपियों को व्यापक निर्गुण ब्रह्म का उपदेश देने का विचार किया किंतु गोपियों के उत्तर से वे निरुत्तर हो गए। गोपियों ने कहा कि हम तो गांव की अनपढ़ गोपिया हैं अपना सगुण निर्गुण ब्रह्म का विवेक तुम अपने पास रखो हम तो कृष्ण प्रेम में ही तन्मय है वह हमें प्रत्यक्ष दर्शन देते रहता है, तुम्हारे उस निर्गुण ब्रह्म की आराधना हेतु हम दूसरा मन और चित् कहां से लाए क्योंकि हमारा चित तो कान्हा ने चुरा लिया है, वही श्रीराधा जी ने भी उद्धव को उपदेश दे डाला और कहा कि प्रेम राज्य में एक ही प्रीतम का शासन होता है, अपना तो ज्ञान शास्त्र कर्म धर्म सब कुछ कन्हैया है, अपनी सांस तक कृष्ण में है फिर तुम्हारा थोथा ज्ञान हम कहां रखें इस प्रेम की भूमि में तुम प्रेम की बात कर सकते हो शुष्क ज्ञान की नहीं, उन्होंने कहा कि भगवान सर्वव्यापी हैं फिर भी तुम उन्हें केवल मथुरा वासी बता रहे हो, तब उद्धव जी ने क्षमा मांगते हुए कहा की आज मुझे ज्ञात हो गया की श्री राधा माधव अभिन्न है यह मैंने प्रत्यक्ष देखा ।  आचार्य शर्मा ने तत्वज्ञ प्रवचन में कहा कि गोपियों के भाव विभोरता  देखकर श्रीकृष्ण मथुरा में दौड़े चले आए और गोप मंडली सहित राधिका जी के साथ विराजमान हुए ,गोपियों और उद्धव ने किशोरी जी व कृष्ण के मनोहर स्वरूप का दर्शन किया उन्हें अब यह भी ज्ञात नहीं कि वह कौन है, कहां है ,और कहां से आए हैं, उद्धव जी का ज्ञान अभिमान निर्मल हो गया, उनकी आंखों में आंसू छलक आते हैं की गोपियां धन्य है जो पल-पल ब्रह्मा का अनुभव करती हैं। आचार्य ने कहा कि मनुष्य यदि चाहे तो नारायण बन सकता है किंतु उससे पहले आसक्ति का त्याग करना पड़ेगा और परम आनंद की स्थिति में आना होगा। वही रुक्मणी विवाह प्रसंग में आचार्य ने कहा कि यदि रुक्मणी लौकिक सुख चाहती वहां उपस्थित अन्य किसी भी राजा के साथ ब्याह कर सकती थी किंतु उसने बड़े विवेक से श्री कृष्ण का वर्णन किया जो ईश्वर के साथ विवाहित होता है तो कृतार्थ हो जाता है, रुक्मणी श्रीकृष्ण का विवाह जीव और ईश्वर का मिलन है जो सुदेव जैसे सतगुरु की कृपा से हुआ रुक्मणी स्वयं महालक्ष्मी है ,भगवान की आद्य शक्ति हैं एवम संत ही ब्रह्म संबंध कर सकता है, सुयोग्य सद्गुरु और सत्संग के प्रभाव से जीव ईश्वर के करीब जा सकता है उन्होंने आगे कहा कि श्रीमद् भागवत गीता में कर्म भक्ति और ज्ञान तीनों का अद्भुत समन्वय है आचार्य जी ने कहा गीता के प्रथम 6 अध्याय भक्ति योग के हैं तथा 13 से 18 अध्याय तक ज्ञान योग है आचार्य शर्मा ने आगे उपदेश करते हुए कहा कि राजसुई यज्ञ में दुर्योधन का अपमान हुआ और अंधे का पुत्र अंधा इस कर्कश वाणी ने कलह को जन्म दिया जिसकी परिणीति महाभारत के युद्ध से हुई, अतः हमें वाणी में संयम  रखना चाहिए आचार्य ने जब सुदामा चरित सुनाया तो सबकी आंखें नम हो गई सुदामा शब्द सुनते ही भगवान द्वार की और दौड़े भगवान सुदामा को पुकारते हुए दौड़कर द्वार पर आए जिससे रानियों को आश्चर्य हुआ श्री कृष्ण ने सुदामा को हृदय से लगा लिया अपने मित्र की ऐसी दशा देखकर उन्हें अत्यंत दुख हुआ उन्होंने सुदामा के लिए अपने ईश्वरत्व भी एक और रख दिया क्योंकि जीव जब अपने जीवत्व को छोड़कर  ईश्वर के साथ प्रेम से तन्मय होता है तो ईश्वर भी अपना ईश्वरत्व और ऐश्वर्य भूल जाते है,  भगवान मानव के वस्त्र नहीं हृदय देखते हैं ।आचार्य ने उपदेश करते हुए कहा कि दरिद्र होना अपराध नहीं है दरिद्रता में भगवान को भूल जाना अपराध है। सुदामा तंदुल की पोटली संकोच बस छिपा रहे हैं भगवान मुस्कुराते हैं कि पहले भी इसने चने छुपाए थे और आज तांदूल छुपा रहा है जो मुझे कुछ देता नहीं है उसे मैं क्या दूंगा सो मुझे छीनना ही पड़ेगा और भगवान ने तांदूल की पोटली छीन ली तथा प्रेम पूर्वक उसे भोग लगाया जिसे देखकर रानी रुक्मणी आश्चर्यचकित हो गई एक मुट्ठी भर तांदूल के बदले द्वारकाधीश कन्हैया ने समग्र द्वारिका का ऐश्वर्या सुदामा के घर भेज दिया। इस प्रकार आज आचार्य श्री ने भ्रमर गीत, विरह गीत, गोपी गीत, उधो गीत,विवाह गीत, छत्तीसगढ़ी भजन,सरस्वती वन्दना एवं राधे राधे की धुन के साथ अनेक भजनों से सभी श्रोताओं को भक्ति रस से सराबोर कर दिया एवं मंगलआरती,पुष्पांजलि तथा प्रसाद वितरण के साथ कथा को विश्राम दिया गया।

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