*महारानी अहिल्याबाई होल्कर की 300 वीं जयंती पर विशेष आलेख*
*महारानी अहिल्याबाई होल्कर की 300 वीं जयंती पर विशेष आलेख*
*अहिल्याबाई होल्कर: इतिहास की विलक्षण दीपशिखा*
लेखक - अशोक बजाज
राजनीति को सेवा, धर्म को लोक कल्याण और न्याय को करूणा का स्वरूप देने वाली तथा नारी होकर भी दक्ष प्रशासन देने वाली महारानी अहिल्याबाई होल्कर एक ऐतिहासिक महिला थी। समाज में धर्म, संस्कृति, शिक्षा, सेवा और मानवीयता के लिए उनका योगदान अतुलनीय हैं। अहिल्याबाई होल्कर एक आध्यात्मिक और नैतिक क्रांति की अद्भूत मिसाल है। यू तो भारत का इतिहास नारी शक्ति के शौर्य, वीरता एवं त्याग से भरा पड़ा है, महारानी लक्ष्मीबाई से लेकर रानी दुर्गावती तक की वीर गाथायें प्रेरणादायी हैं। भारत की नारी को जब जब प्रतिभा दिखाने का अवसर मिला तब तब उसने उम्मीद से दुगुना परिणाम दिया है। वास्तव में पुरूष प्रधान इस देश में नारी सदैव सबल, प्रबल एवं कुशल रहीं हैं।
महारानी अहिल्याबाई ने प्रतिकूलता के बावजूद समाज में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई थी। उसका जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के चौंडी नामक छोटे से गाँव में हुआ। उनके पिता मनकोजी शिंदे एक देशस्थ ब्राह्मण थे। यद्यपि अहिल्याबाई उच्च कुल की नहीं थीं परंतु उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि जब इंदौर के महाराजा मल्हारराव होल्कर ने उन्हें देखा तो उनकी सरलता बुद्धिमत्ता और व्यवहार कुशलता से प्रभावित होकर उनके पिता मनकोजी शिंदे से अपने इकलौते पुत्र खंडेराव से शादी का प्रस्ताव रखा। दोनों परिवारों की सहमति से राजकुमार खंडेराव की शादी अहिल्याबाई से हो गई। विवाह के बाद उन्होंने जीवन के कठिन संघर्षों को सहन करते हुए भी अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा से निभाया। दुर्भाग्य से शादी के कुछ वर्षों बाद ही खंडेराव की मृत्यु हो गई और फिर ससुर महाराज मल्हारराव भी चल बसे, इसके बाद राज्य की बागडोर संभालने का दायित्व अहिल्याबाई पर आ पड़ा एक महिला वह भी विधवा का उस कालखंड में शासन करना न केवल कठिन बल्कि समाज की दृष्टि से अस्वीकार्य भी था परंतु अहिल्याबाई ने अपने अदम्य साहस और विवेक से यह साबित कर दिया कि भारत की नारी भी पुरुषों की तरह सक्षम नेतृत्व प्रदान कर सकती है। युद्ध हो या अन्य कोई चुनौती पूरे हिम्मत के साथ वह कर्तव्य पथ पर डटी रही उन्होंने जितने युद्ध लड़े सभी में दुश्मनों के छक्के छुड़ाए।
महारानी अहिल्याबाई ने मालवा की राजधानी महेश्वर को एक सांस्कृतिक, व्यापारिक और न्यायप्रिय नगरी बना दिया, उनके शासन में प्रजा की आवाज़ सीधे रानी तक पहुंचती थी तथा वह प्रतिदिन जनता के बीच बैठकर न्याय करती थीं। उनके दरबार में विद्वानों, कलाकारों और साधुओं को सदैव उचित सम्मान और संरक्षण मिलता था।उन्होंने कृषि, व्यापार और उद्योग को प्रोत्साहित किया। साथ ही साथ शासन की कर-प्रणाली को पारदर्शी और सरल बनाया, उन्होंने स्त्री सुरक्षा और सम्मान को सर्वाेच्च प्राथमिकता दी। उनकी न्यायप्रियता ऐसी थी कि वह अपने निकट संबंधियों को भी दोषी पाए जाने पर दंडित करने में नहीं हिचकती थी, वह अपनी प्रजा के लिए ममतामयी माँ थी तथा उनकी देखभाल शासिका के तौर पर नहीं बल्कि माता के समान करती थी इसीलिए लोग उन्हें ‘‘लोकमाता’’ शब्द से संबोधित करते थे।
महारानी अहिल्याबाई की सर्वाेच्च प्राथमिकता भारत के धार्मिक स्थलों के पुनर्निर्माण की थी, उन्होंने मुग़ल और अन्य आक्रमणकारियों के आक्रमणों से ध्वस्त हो चुके अनेक मठ-मंदिरों को स्वयं के खर्चे से जीर्णाेद्धार करवाया। हालांकि यह बहुत ही जोखिम भरा कार्य था फिर भी उन्होनें पूरे साहस के साथ काशी विश्वनाथ मंदिर, सोमनाथ मंदिर हो, मथुरा, वृंदावन, अयोध्या, रामेश्वरम, द्वारका, उज्जैन आदि अनेक प्रमुख तीर्थ स्थलों का पुनर्निर्माण अथवा जिर्णाेद्धार कराया। महारानी ने धर्मावलंबियों के ठहरने के लिए जहाँ जहाँ आवश्यकता थी वहां वहां धर्मशालाओं का निर्माण कर अनुकरणीय कार्य किया है। इसी प्रकार उन्होंने आवागमन की सुविधा के लिए सडकों का निर्माण करवाया तथा असंख्य कुएं, तालाब व जलागार भी बनवाये। अहिल्याबाई के योगदान से निर्मित घाट, मंदिर, जलकुंड और धर्मशालाएं आज भी उनकी सांस्कृतिक चेतना और वास्तु सौंदर्यबोध का आभाष कराती हैं, यह उनकी दृढ़ता एवं साहस का जीवंत प्रमाण भी हैं। महारानी अहिल्याबाई ने धर्म को कर्मकांड नहीं बल्कि जनसेवा और समाज कल्याण का माध्यम मानकर एक आदर्श प्रस्तुत किया है।
वास्तव में महारानी अहिल्याबाई होल्कर त्याग, तपस्या और साहस की प्रतिमूर्ति थी,वह केवल एक राज्य की महारानी ही नहीं बल्कि भारतीय नारी की आदर्श स्वरूपा थी. उन्होंने जिस कठिन दौर में शासन किया, वह कालखंड स्त्रियों के लिए सबसे कठिन और दमनकारी माना जाता था परंतु उन्होंने उस समय भी प्रभुत्व, विवेक और संवेदना से एक आदर्श समाज की स्थापना की. उन्होंने कभी अपनी शासन शक्ति को युद्ध या विस्तार का माध्यम नहीं बनाया, बल्कि उसे लोकसेवा का यज्ञ माना। आज जब हम राजनीति में नैतिकता, समाज मे सहिष्णुता और जीवन में करूणा का अभाव महसूस करते हैं तब अहिल्या बाई का जीवन दर्शन हमारे लिए एक दीपशिखा है। समाज का बड़ा तबका आज भी अहिल्याबाई के नेक विचारों, रचनात्मक कार्याे एवं शौर्य गाथाओं से अनभिज्ञ हैं, या यों कहें कि अनभिज्ञ रखा गया है. पाठ्यपुस्तक में भी साईड नोट्स तक सीमित है। वर्तमान समय में महारानी की विस्तृत व प्रमाणिक इतिहास जानने के लिए नई पीढ़ी उत्सुक है। यह समय की आवश्यकता भी है तथा समाज की जिज्ञासा भी।
लेखक - अशोक बजाज
पूर्व अध्यक्ष जिला पंचायत रायपुर
मोबाईल नं. - 9425205969
Email - ashokbajaj99@gmail.com