छ. ग .की संस्कृति में शीला बीनना अन्न और अन्नदाता का सम्मान
छ. ग .की संस्कृति में शीला बीनना अन्न और अन्नदाता का सम्मान
आरंग
छत्तीसगढ़ जिसे धान का कटोरा कहा जाता है, की संस्कृति और अर्थव्यवस्था का मूल आधार कृषि, विशेषकर धान है। "शीला बीनना" और "धान के कण बीनना" जैसे कार्य केवल कृषि से संबंधित गतिविधियां नहीं हैं, बल्कि ये ग्रामीण जीवन के संघर्ष, मेहनत और सामुदायिक भावना का प्रतीक हैं।
फसल कटाई के बाद, खेतों में बचे हुए धान के छोटे-छोटे कणों (गिरकर छूट गए दानों) को चुनना ही "शीला बीनना" कहलाता है। यह कार्य प्रायः ग्रामीण महिलाएं और बच्चे करते हैं। यह उनकी मेहनत और अन्न के प्रति आदर को दर्शाता है। छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति में, अन्न के किसी भी हिस्से को बर्बाद न करने की मितव्ययिता की भावना निहित है। यह कार्य बताती है कि कैसे छोटे-छोटे प्रयास भी जीवनयापन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। भोथली
गांव के बुजुर्ग घनश्याम लाखे(74वर्ष) बताते हैं कि उनके समय में पहले विद्यालय में शीला बिनने की छुट्टी होती थी पर अब हार्वेस्टर के आने से यह परंपरा कम हुई है शिक्षकों की माने तो धान लुवाई के कारण उपस्थिति में आंशिक कमी हुई है खासकर ग्रामीण अंचलों में महिलाएं एवं बच्चे समूह में मिलकर प्रसन्नता से शीला बिनते है जो सामुदायिक सहभागिता और सद्भाव को दर्शाता है।

