मन्दिर का शताब्दी महोत्सव ना भूतों ना भविष्यति --- पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री
मन्दिर का शताब्दी महोत्सव
ना भूतों ना भविष्यति --- पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री
नवापारा-राजिम
श्री रेखराज चतर्भुज अग्रवाल परिवार द्वारा नगर को समर्पित श्री राधाकृष्ण मन्दिर के 100साल पूरे होने के उपलक्ष्य में 1महीने से चल रहा उत्सव जब समाप्त हुआ तो न केवल नगर बल्कि अंचल के सभी लोग बोल पड़े, अद्भुत, अभूतपूर्व, अकल्पनीयऔर सचमुच ही यह अलौकिक आयोजन ऐसा ही था, इसका बखान करते हुए सामाजिक सरोकारों से जुड़े पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री ने मन्दिर के ट्रस्टी अग्रवाल परिवार को साधुवाद देते हुए और उनकी भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए कहा कि इस विराट महोत्सव का समग्र आयोजन निर्विघ्न और सानंद सम्पन्न होना यह दर्शाता है कि इस देव कार्य में सृष्टि स्नेह वर्षा कर रही थी, इनके पूर्वजों का पुण्य प्रताप आशीषों की वर्षा कर रहा था, विघ्न विनाशक मंगलमूर्ति गणेश जी व हनुमंत लाल जी मानों स्वयं सारे सूत्र संचालन कर रहे थे, 3नवम्बर से शुरू हुए नगर भोज की शुरुआत ही शुभकारी रही जब पूरा अग्रवाल परिवार एक कतार में खड़ा होकर आगंतुकों की अगवानी स्नेह सद्भाव से भरकर पूरे सम्मान और विनम्रता से हाथ जोड़कर करने लगा, इस सेवाभाव के आगे पूरा नगर नतमस्तक हो गया और जब तीन दिनों के धार्मिक अनुष्ठान के शुभारंभ में विशाल कलश यात्रा नगर भ्रमण पर निकली तो हर समाज अग्रवाल परिवार का स्वागत करने पलक पावडे बिछाकर खड़ा हो गया, सनातन संस्कृति का प्रतीक विराट विष्णु यज्ञ अनुष्ठान शुरू हुआ, आहुतियां पड़ने लगी तो सकारात्मक ऊर्जा और नवचेतना का संचार होने लगा, गूंजते मंत्रोच्चारण और शंख वे घंटियों के स्वर ऐसा दिव्य वातावरण निर्मित कर रहे थे मानों सतयुग आ गया हो और देवता दुंदुभी बजाकर पुष्प वर्षा कर रहे हो पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री कहते हैं कि जो भी इस आयोजन से जुड़े, श्री राधा कृष्ण युगल सरकार के दर्शन किए वह बरबस ही कह उठा किया कि हमें अद्भुत आनन्द और सौभाग्य की अनुभूति हुई, जीवन में न तो ऐसा आयोजन देखा और न देख पाएंगे मथुरा बृंदावन की तरह सजी फूल बंगले की झांकी, दुल्हन की तरह सजा मन्दिर परिसर, पण्डित विजय शंकर मेहता जी का ओजस्वी व्याख्यान, राधाकिशोरी जी की नृत्य नाटिका से सजी नरसिंह भगत की निर्दोष भक्ति और कृष्ण भगवान पर अखण्ड विश्वास का दर्शन, हेमन्त बृजवासी और लीला बैंड की भजनों की नॉन स्टॉप प्रस्तुतियां सबकुछ इतना आकर्षक और सम्मोहक था कि लोग रात भर जमे रहे मंत्र मुग्ध होकर सुनते रहे, झूमते रहे, शास्त्री जी ने कहा किया शताब्दी यात्रा इतनी यादगार रही कि वर्षों तक लोग इसे भूल नहीं पाएंगे, उन्होंने कृतज्ञता पूर्ण शब्दों में कहा कि मेरे पूज्य पूर्वज मेरे दादाजी पण्डित सूरजमल शास्त्री ने इस मन्दिर का भूमि पूजन कराया, प्राण प्रतिष्ठा कराई, ठाकुर जी की सेवा करते हुए, यहीं उनका प्राण छूटा, भागीरथ लाल अग्रवाल परिवार ने उनकी अंतिम क्रिया भक्ति भाव से कराई, ताऊजी और पिताजी पण्डित बनवारी लाल, युगलकिशोर शास्त्री ने भी यहां सेवाएं दी, हम आभारी हैं, अनुग्रहित हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि इनके परिवार में धर्मप्रभावना निरन्तर बनी रहे,इनके यश कीर्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहे, धर्म और आध्यात्म के पथ पर यह परिवार अनवरत चलता रहे,यही समस्त नगर वासियों की भी मंगल कामना..
श्री राधाकृष्ण मन्दिर के निर्माण से संबंधित इतिहास को एक पुस्तिका के रूप में लिखा गया, इस सचित्र पुस्तिका का विमोचन पण्डित विजय शंकर मेहता जी ने किया, मंच पर ट्रस्ट परिवार की श्री मति कुसुम, बीना, सविता,पूजा निधि, गौरी, भारती अग्रवाल उपस्थित थी
पुस्तिका पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री ने लिखी है, उनके दादाजी पण्डित सूरजमल जी शास्त्री, मन्दिर के प्रथम आद्य पुजारी थे, जिन्होंने मन्दिर का भूमि पूजन व प्राण प्रतिष्ठा कराई थी


