पहले चराई का था डर लेकिन अब मालिकाना हक से कर रहे खेती विशेष पिछड़ी जनजाति कमार भी कहलाने लगे किसान - fastnewsharpal.com
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पहले चराई का था डर लेकिन अब मालिकाना हक से कर रहे खेती विशेष पिछड़ी जनजाति कमार भी कहलाने लगे किसान

 

पहले चराई का था डर लेकिन अब मालिकाना हक से कर रहे खेती
  विशेष पिछड़ी जनजाति कमार भी कहलाने लगे किसान
 

 
गरियाबंद 

  वन अधिकार पत्र मिलने से जिले के आदिवासी और विशेष पिछड़ी जनजाति कमार, भुंजिया वर्ग के वन अधिकार पत्र हितग्राही पूरे आत्मविश्वास व मालिकाना हक से खेती कर रहे है। जिला मुख्यालय से लगे ग्राम केशोडार के 40 परिवारों को 38.75 हेक्टेयर भूमि का वन अधिकार पत्र प्राप्त शासन द्वारा प्रदान किया जा चुका है। अब यहां के कमार जनजाति भी किसान कहलाने लग गये है।
वन अधिकार पत्र लाभान्वित हितग्राही भगवान दास मानिकपुरी ने बताया कि वे भी शासन से वन अधिकार पत्र से मिली जमीन 1 एकड़ 70 डिसमिल में मालिकाना हक के साथ किसानी कर रहे है। उन्होंने बताया कि पहले चराई का डर था, साथ ही जमीन पर मालिकाना हक नहीं होने से डर कर खेती करते थे। आज स्थिति बदल गई है। अब हम पुरे हक के साथ खेती कर रहे है। गांव के ही जयसिंग कमार ने भी बताया कि अब उन्हें धान, खाद, बीज लेने में कोई परेशानी नहीं होती। उनका ऋण पुस्तिका भी मिल चुका है।
गांव के ही कुमार साय कमार इस बात से खुश है कि अब वो भी किसान कहलाने लगा है। साय बताते है कि लगभग दो एकड़ काबिज जमीन पर उनके दादा खेती करते आ रहे थे। वन अधिकार अधिनियम के तहत उन्हें पट्टा मिला। पिछले 30 साल से इनके दादा और पिता जी डर कर खेती करते आ रहे थे। इस दौरान उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन जैसे ही वन अधिकार पत्र मेरी मां फुलबाई और मुझे प्राप्त हुआ तब से पुरे आत्मविश्वास और तैयारी के साथ धान की खेती हर वर्ष कर रहे है। पिछले वर्ष समर्थन मूल्य पर करीब 30 क्विंटल धान बेचा था। मां फुलबाई के नाम पर भी 5 एकड़ जमीन में लगभग 50 क्विंटल धान बेचा। इस तरह कुल 7 एकड़ खेत में हमारे द्वारा किसानी किया जा रहा है। हमारा 6 सदस्यीय परिवार अब आर्थिक रूप से सक्षम है। इस साल भी अच्छी फसल हुई है और बेचने को तैयार है।

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