आज का सुविचार
आज का चिंतन(सुविचार)
गुरुवार, 28 जनवरी 2021
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💠 *Aaj_Ka_Vichar*💠
🎋 *..28-01-2021*..🎋
✍🏻एक दिन हम और आप महज एक याद बनकर रह जायेंगे। कोशिस कीजियेगा कि यादे अच्छी बनी रहे।
💐 *Brahma Kumaris* 💐
🌷 *σм ѕнαитι*🌷
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💥 *विचार परिवर्तन*💥
✍🏻बीत जाती है ज़िंदगी ये ढूँढने में, की ढूँढना क्या है, जबकि मालूम नहीं ये भी, की जो मिला है, उसका करना क्या है।
🌹 *σм ѕнαитι.*🌹
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💧 *_आज का मीठा मोती_*💧
_*28 जनवरी:-*_ रिश्ते पेड़ की साखाओ की तरह है, जिसे प्यार सुख और आनंद के जल से सिच कर हरा भरा करना होता है।
🙏🙏 *_ओम शान्ति_*🙏🙏
🌹🌻 *_ब्रह्माकुमारीज़_*🌻🌹
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*गीता का दूसरा अध्याय*
*Episode - 6 ( आत्मा के सात गुण )*
कल के अध्याय में हमने समझा था कि हर आत्मा को जीवन जीने के लिए 7 गुण चाहिए। आत्मा का जो स्वधर्म है वह 7 गुण हैं। वहीं उसके रियल पोटेंशियल हैं उसमें भी सबसे पहले ज्ञान । आज विज्ञान चरम सीमा पर है लेकिन फिर भी हर इंसान को जीवन जीने में आध्यात्मिक ज्ञान चाहिए। क्यों चाहिए? क्योंकि मनुष्य जीवन में सबसे बड़ा अज्ञान अगर है तो वह है ईगो। कहा जाता है -
**Ego is the greatest ignorance in human life*
*इगो* सबसे बड़ा अज्ञान है . और यह अहंकार के कारण कितने रिश्ते टूट रहे हैं कितने परिवार टूट रहे हैं ,बिखर रहे हैं, कितनी *मिसअंडरस्टैंडिंग्स क्रिएट हो रही हैं, कितना क्लेश हो रहा है* और उसका कोई समाधान है प्रैक्टिकल दुनिया के अंदर , उसका समाधान नहीं होता है । इसका समाधान सिर्फ और सिर्फ आध्यात्मिक ज्ञान है जो इस अहंकार को खत्म कर देता है जैसे जैसे व्यक्ति के अंदर विश्राम आती है उसका एगो खत्म होने लगता है इसलिए यही एकमात्र साधन है। तभी बचपन से हमें एक प्रार्थना कराइ जाती है कि अज्ञान से हमें ज्ञान की ओर ले चलो ,है प्रभु ! अंधकार से हमें प्रकाश की ओर ले चलो हे प्रभु ! और मृत्यु से हमें अमृत्व की ओर ले चलो हे प्रभु ! अज्ञान जितना होगा जीवन अंधकार में होगा और मृत्यु लोके को ही प्राप्त होगा लेकिन ज्ञान का प्रकाश जैसे जैसे आता जाता है वैसे वैसे *व्यक्ति का एलिवेशन होता है अमरत्व की ओर।*
आज व्यक्ति में को *थोड़ा बहुत ज्ञान* आया है उसकी वजह से *अज्ञान अहंकार* बढ़ता जा रहा है, रोशनी नहीं आई है लेकिन *अहंकार की गर्मी* जरूर बढ़ गई हैं।
दूसरी क्वालिटी है *प्योरिटी* एक बच्चा जब पैदा होता है तो वह कितना *इनोसेंट* निर्मल होता है। यह हमारी *रियल आईडेंटिटी है* जैसे ही वह बच्चा बड़ा होता है और दुनिया के वातावरण में पहुंचता है तो अपनी *असली आइडेंटिटी* को भूल जाता है और झूठी आईडेंटिटी को अपनाने लगता है। जिसके कारण उसके अंदर *impurities* क्रिएट होनी शुरू हो जाती हैं।
जिस तरह हम देखते हैं कई बार दो व्यक्ति आपस में बहुत अच्छे दोस्त हैं लेकिन कुछ समय के बाद कुछ *conflict* हो जाता है तो जो पूछा जाता है तो कहते हैं कि उसका व्यवहार कुछ अच्छा नहीं था मन में कुछ और था सामने से कुछ और था तो मैं *उसके साथ कंफर्टेबल नहीं था।* हम कंफर्टेबल कहां होते हैं *जहां प्योरिटी* है जहां शुद्धि है वहां हम कंफर्टेबल फील करते हैं जैसे ही कोई व्यक्ति चलाकि शुरू करता है अंदर कुछ बाहर कुछ , लोग भले बोलेंगे नहीं लेकिन समझ जाते हैं और धीरे-धीरे उस व्यक्ति से दूर होने लगती और दूर होने के बाद क्या कहते हैं- दूसरों को भी सावधान करने के लिए बड़ा खतरनाक है, संभल कर चलना! जिसके अंदर कोई हेराफेरी नहीं होगी उसे *भगवान का बंदा* कहा जाता है । हम क्या बनना चाहते हैं अपने जीवन के अंदर - *खतरनाक या भगवान का बंदा* ।जहां निस्वार्थ प्रेम है वहां ही शांति है हर कोई एक-दूसरे से शांति चाहता है।
जहां यह चारों आते हैं वहां जीवन में सच्चा सुख है जहां शांति निवास करती ।सब कुछ होते हुए भी सुख नहीं , नींद की गोलियां लेने के बाद भी नींद नहीं , सब कुछ होते हुए भी सुख नहीं और जहां यह पांचों बातें हैं वहां जीवन की सर्वोच्च प्राप्ति आनंद है। *सुख शांति प्रेम आनंद पवित्रता ये पांच गुण बहुत आवश्यक है* जीवन में खुशी का निर्माण करने के लिए। खुशी का अनुभव करने के लिए भी बगीचे में जाकर हंसना पड़ता है। आजकल लाफिंग चैनल देखते हैं। घर में अगर मुस्कुरा दिए तो सबसे पहले घर वाले पूछना चालू कर देते हैं कि क्या बात है आज बहुत खुश हो इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो? आजकल मुस्कुराने पर भी लोग पूछते हैं कि मुस्कुराने का क्या कारण है और जब बता नहीं पाता तो कहते हैं कुछ खास नहीं। अगर व्यक्ति ऑफिस में गया मुस्कुराता हुआ चेहरा लेकर के तो ऑफिस वाले इशारा करते हैं कि क्या बात है आज तो बहुत मुस्कुरा रहा है आज बंदा खुश है जो काम करवाना है करवा लो। एडवांटेज लेना शुरू कर देते हैं। इसलिए भी व्यक्ति एकदम सीरियस हो करके अपना मुस्कुराता हुआ चेहरा लेकर के नहीं चल सकता है।
कहने का भावार्थ यह है कि भगवान ने जो हमें इतना पोटेंशियल दिया जो हमारी ड्यूटी है उस पोटेंशियल से कितना दूर हो गए हैं इसलिए कहा जाता है कि आत्मा का सत्य स्वरूप क्या है ? *आत्मा सत चित्त आनंद है।* कहां गया सत्य उसका जो सत्य स्वरूप है आनंद है उसकी चेतनता की अभिव्यक्ति आनंद से है खुशी से है या लिविंग बींस की अभिव्यक्ति आनंद से है लेकिन आज ही आनंद नहीं तो क्या कहती हैं जिंदा लाश । *उसका वास्तविक स्वरूप है उसकी रियल आईडेंटिटी। जहां यह बातें हैं वहां जीवन की सर्वोच्च विल पावर है क्योंकि ये 6 गुण नहीं है 6 शक्तियां हैं*
💥Power of knowledge
💥Power of wisdom
💥power of clarity
💥power of peace
💥power of love
💥power of happiness
अगर यह सारी पावर्स नहीं है तो *जीवन बेकार है ।* अपनी वास्तविक ता से दूर चले गए इसीलिए कहा गया कि पहले जाना कि *मैं कौन हूं* जब यह रहस्य या पहेली सुलझा एंगे वही जीवन में खुश रहना जानता है जो इस मिस्ट्री को समझता है। वह जीवन में इस पोटेंशियल के साथ काम करना जानता है। *शांति प्रेम आनंद खुशी शक्ति अंडरस्टैंड उसे जीना जानता है।* तब भगवान ने अर्जुन को कहा *स्वधर्म को देख कर के भी तू भय करने योग्य नहीं है।* लोगों को डर तभी लगता है जब उनके अंदर ही पावर नहीं है , शक्ति नहीं है तो भी है शक्ति का अभाव क्रिएट करता है *जब आत्मा के अंदर यह गुण धर्म है तो आत्मा डर ही नहीं सकते, परेशान हो नहीं सकती* ।
⛥ओम शांति ⛥
♦️♦️♦️ रात्रि कहांनी ♦️♦️♦️
*जाको राखे साईंया
मार सके ना कोइ 🏵️
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*बहोत ही मार्मिक कहानी है ..............अवश्य पढ़े➖*
किशोर का जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ था।उसके पिता नगर के प्रसिद्ध सेठ थे। परिवार में कोई कमी नहीं थी।
किशोर के दो बड़े भाई थे जो पिता के व्यवसाय में उनका हाथ बटाते थे। किन्तु किशोर के लिए सब कुछ ठीक नहीं था। किशोर जन्म से ही नैत्र हीन था इस कारण उसका सारा जीवन घर में ही व्यतीत हुआ था। उसको घर में ही सभी सुख-साधन उपलब्ध रहते थे, नेत्रहीनता के अतिरिक्त किशोर के लिए एक और कष्टकारी स्थिति थी वह यह कि उसकी माँ का निधनछोटी उम्र में ही हो गया था। यद्धपि किशोर के पिता और उसके भाई उससे अत्यधिक प्रेम करते थे और उसकी सुख-सुविधा का पूर्ण ध्यान रखते थे किन्तु व्यापार की व्यस्तता के चलते वह घर में अधिक समय नहीं दे पाते थे किशोर का जीवन सेवकों के सहारे ही चल रहा था जिस कारण किशोर के मन में विरक्ति उत्त्पन्न होने लगी। वह ठाकुर जी के ध्यान में लीन रहने लगा। धीरे-धीर ठाकुर जी के प्रति उसकी भक्ति बढ़ती चली गई।अब उसका सारा समय ठाकुर जी के ध्यान और भजन-कीर्तन में व्यतीत होने लगा। उसके पिता और उसके भाइयों को इससे कोई आपत्ति नही थी, उन्होंने उसको कभी इस कार्य से नहीं रोका। किन्तु समय की गति को कौन रोक सकता है। समय आने पर दोनों बड़े भाइयों का विवाह हो गया, आरम्भ में तो सब ठीक रहा किन्तु धीरे-धीरे किशोर की भाभीयों को किशोर अखरने लगा। किशोर भी अब युवा हो चला था। उसकी दोनों भाभी किशोर की सेवा करना बिल्कुल भी पसंद नहीं करती थी। पहले तो वह इस बात को मन में छुपाये रहीं किन्तु धीरे-धीरे इस बात ने किशोर के प्रति ईर्ष्या का भाव ले लिया।अपनी भाभी की इन भावनाओं से अनभिज्ञ किशोर उनमे अपनी माँ का रूप देखता था और सोंचता था की उसकी माँ की कमी अब पूर्ण हो गई है। धीरे-धीरे ईर्ष्या विकराल रूपों धारण करती जा रही थी। समय की बात कुछ दिनों बाद किशोर के पिता का भी देहांत हो गया, अब किशोर पूर्ण रूप से अपने भाई और भाभी पर ही निर्भर हो गया था।उसके भाइयों का प्रेम अब भी उसके प्रति वैसा ही बना रहा। किन्तु कहते है कि त्रियाचरित के आगे किसी की नहीं चलती। अवसर देख किशोर की भाभीयों ने अपने पतियों को किशोर के विरूद्ध भड़काना आरम्भ कर दिया। जैसे-जैसे समय बीतता गया उनका षड्यंत्र बढ़ता गया, अंततः वह दिन भी आ गया जब जी किशोर के भाई भी पूर्ण रूप से किशोर की विरुद्ध हो गए, अब उनको भी किशोर अखरने लगा था।इस सब बातो से अनभिज्ञ सहज, सरल हृदय किशोर अब भी ठाकुर जी की भक्ति में ही लीन रहता था, वह अपने भाइयों और भाभीयों के प्रति मन में किसी प्रकार की शंका नहीं रखता था। किन्तु ऐसा कब तक चलता आखिर एक दिन भाइयों की पत्नियों ने अपने पतियों को समझाया की इस नेत्रहीन के मोह में क्यों फंसे हो, इससे मुक्ति प्राप्त करो अन्यथा एक दिन तुमको अपनी सम्पति इसके साथ बाँटनी पड़ेगी, इस संपत्ति पर इसका अधिकार ही क्या है, इसने जीवन भर करा ही क्या है, यह जो भी कुछ है सब तुम्हारे परिश्रम का ही परिणाम है फिर आखिर इसको क्यों दी जाये। भाइयों के मन में कपट घर कर गया एक दिन सब मिल कर किशोर से कहा की अब हम तुम्हारा बोझ और अधिक नहीं उठा सकते इसलिए हम तुम्हारा रहने खाने का प्रबंध कही और कर रहे हैं, अब तुम वही रहा करो। तुमको समय पर खाना कपडे और अन्य आवश्यक सामग्री मिलती रहेगी, तुमको किसी प्रकार का कोई कष्ट नहीं होने देंगे। अपने भाइयों के मुख से अनायास ही इस प्रकार की बात सुन कर किशोर अवाक् रह गया। वह नहीं समझ सका की वह के बोले, उसकी आँखों से झर-झर अश्रु बह निकले, किन्तु वह कुछ भी बोल पाने की स्तिथि में नहीं रहा। अन्तः स्वयं की संयत करते हुए वह बोला। भाई आप ने मेरे लिए जो निर्णय लिया है वह निश्चित रूप से मेरे अच्छे के लिए ही होगा, किन्तु बस इतना तो बता दो की मेरा अपराध क्या है, बस यही कि में नैत्रहीन हूँ, किन्तु इसमें मेरा क्या दोष। यह तो प्रभु की इच्छा है, और भाई अब तक आपने मुझको इतना प्रेम किया फिर अनायास यह क्या हुआ। भाइयों के पास कोई उत्तर नहीं था। वह उसको छोड़ कर चले गए। अब किशोर पूर्ण रूप से अनाथ हो चुका था। किन्तु ऐसा नहीं था जिसका कोई नहीं होता उसके भगवान होते है और फिर किशोर तो ठाकुर जी का दीवाना था फिर वह भला कैसे अनाथ हो सकता था। दुःखी मन किशोर ठाकुर जी के ध्यान में खो गया उसके मन से स्वर निकल उठे।
है गिरधर गोपाल, करुणा सिंधु कृपाल।
भक्तवत्सल, सबके सम्बल, मोहे लीजो सम्भाल।।
हरी में नैन हीन तुम नैना।
निर्बल के बल, दीन के बंधु।
कृपा मोह पे कर देना।।
अगले ही दिन किशोर के रहने का प्रबन्ध एक अन्य स्थान पर कर दिया गया, वह स्थान एकदम वीरान था, ना किसी का आना ना जाना, कुछ पशु-पक्षी वहा विचरते रहते थे, थोड़ी ही दूर से जंगल आरम्भ हो जाता था। किशोर के खाने-पीने और देख-रेख के लिए एक सेवक की नियुक्ति कर दी गई। प्रतिदिन सुबह नाश्ते का प्रबंध और दोपहर तथा रात्री के भोजन के प्रबन्ध किशोर के भाई और भाभी कर देते थे। उसके वस्त्र भी घर से धुल कर आ जाते थे। किशोर ने कुछ भी विरोध नहीं किया, वह उसमे ही संतुष्ट रहने लगा, उसका नियम था वह जब भी कुछ भोजन करता पहले अपने गोविन्द का स्मरण करता, उनको भोजन अर्पित करता और उस भोजन के लिए धन्यवाद देकर तब भोजन ग्रहण करता। कुछ दिन यह क्रम चलता रहा इस बीच किशोर की दोनों भाभीयों को पुत्र रत्न की प्राप्त हुई। उसके बाद उनको किशोर का यह प्रति दिन का खाने और वस्त्र का प्रबंध भी अखरने लगा। तब दोनों ने मिल का एक भयानक षड्यंत्र रचा, उन्होंने किशोर को समाप्त करने की योजना बनाई। अगले दिन रात्री के भोजन में विष मिलकर सेवक के हाथ भेज दिया इस बात से अनभिज्ञ सेवक भोजन लेकर पहुंचा और किशोर को भोजन सौंप दिया। किशोर ने भोजन प्राप्त किया और प्रतिदिन की भाँति
*जय जिनेन्द्र जी*
भोजन गोविन्द को अर्पित किया, अब जिसके साथ गोविन्द सदा रहते हो उसके सामने कोई षड्यंत्र भला क्या करता। गोविन्द के भोजन स्वीकार करते ही भोजन प्रशाद के रूप में परिवर्तित हो गया, किशोर ने सुख पूर्वक भोजन किया भगवान का धन्याद किया और लग गया हरी भजन में। उधर दोनों भाभी प्रसन्न थी कि चलो आज पीछा छूटा। अगले दिन अनजान बन कर उन्होंने फिर से प्रातः का नाश्ता तैयार किया और सेवक के हाथ भेज दिया, इस आशा में की थोड़ी ही देर में सेवक उनके मन को प्रसन्न करने वाली सूचना लेकर आएगा।नाश्ता देकर जब सेवक वापस लौटा तो किशोर को कुशल जान उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। वह दोनों पाप बुद्धि यह नहीं जान पाई की जिसका रक्षक दयानिधान हो उसका भला कोई क्या बिगाड़ सकता है, उन्होंने सोंचा हो सकता है कि किसी कारण वश किशोर ने रात्री में भोजन ही ना किया हो, ऐसा विचार कर उन कुटिल स्त्रिओं ने अपने मन की शंका का समाधान स्वयं के करने की ठानी, उस दिन उन्होंने दोपहर के भोजन में किशोर के लिए खीर बनाई और उसमे पहले से भी अधिक तीक्षण विष मिला दिया, वह स्वयं ही खीर लेकर किशोर के पास गई और किशोर से बड़े ही प्रेम का व्यवहार किया और पूंछा की आज तुम्हारा चेहरा कुछ उदास लग रहा है, क्या रात्री में भोजन नही किया। अपनी भाभियों को वहा देख निर्मल मन किशोर बहुत प्रसन्न था, वह बोला नहीं भाभी मेने तो भोजन करा था, बहुत स्वादिष्ट लगा, यह तो आपका प्रेम है जो आपको ऐसा प्रतीत हो रहा है।यह सुनकर दोनों पापी स्त्रियां, शंका में पड़ गई कि इसने भोजन किया तो फिर यह जीवित कैसे है, उनकी पाप बुद्धि ने अब भी उनका साथ नही दिया और वह सत्य को नहीं पहचान पाईं। उन्होंने में में विचार किया की किशोर हमसे झूंठ बोल रहा है, तब उन्होंने प्रेम पूर्वक किशोर को खीर देकर कहा, आज हम तुम्हारे लिए अपने हाथ से खीर बना कर लाई है, और अपने सामने ही खिला कर जाएँगी। उनके कपट पूर्ण प्रेम के नाटक को किशोर नहीं जान पाया उसकी आँखों में आंसू आ गए उसने प्रेम से वह खीर ली और खाने बैठ गया, किन्तु खाने से पूर्व वह अपने गोविन्द को नहीं भूला, उसने प्रेम पूर्वक गोविन्द को स्मरण किया उनको खीर अर्पित करी और प्रेम पूर्वक खाने लगा। फिर कैसा विष और कैसा षड्यंत्र वह सुख पूर्वक सारी खीर खा गया। उधर उसकी भाभियों ने उसको खीर खाते देखा तो सोंचा की हो गया इसका तो अंत, अब यहाँ रुकना उचित नहीं, ऐसा विचार कर वह तुरंत ही वहां से निकल गई। खीर खाने के बाद किशोर ने भाभी को धन्यवाद कहा, किन्तु वह वहां होती तब ना, किशोर को बहुत आश्चर्य हुआ कि अनायास ही वह दोनों कहाँ चली गई। जब कोई उत्तर नहीं मिला तो उसने भगवान को पुनः स्मरण किया और हरी भजन में तल्लीन हो गया।उधर दोनों भाभी प्रसन्न मन अपने घर पहुंची तो देखा घर में कोहराम मचा था, देखा तो पता चला कि उन दोनों के पुत्रों ने कोई विषेला पदार्थ खा लिए जिससे उनकी मृत्यु हो गई। यह देख दोनों को काटो तो खून नहीं की स्तिथि में पहुँच गई। अब उनको अपने पाप का अहसास हो गया था। वह जान गई की भगवान ने उनको उनके कर्मो का दण्ड दिया है, वह दोनों दहाड़े मार-मार कर रोने लगी और खुद को कोसने लगीं। उधर एक सेवक दौड़ा-दौड़ा किशोर के पास पहुंचा और सारी घटना सुनाई, सुनकर किशोर एकदम से विचलित हो गया और रो पड़ा, वह सेवक से बोला भाई मुझको वहा ले चलो, सेवक किशोर को लेकर घर पहुंचा वह जाकर किशोर ने देखा कि सभी लोग जोर-जोर से विलाप कर रहे हैं, उसके भाई और भाभी का तो रो रो कर बुरा हाल था। किशोर को वहां जीवित खड़ा देख दोनों भाभी सन्न रह गई अब उनको इस बात का विश्वाश हो गया था की जिस किशोर को उन्होंने ठुकरा दिया और जिसकी हत्या करने की कुचेष्टा करी भगवान स्वयं उसके साथ है इसलिए उसका बाल भी बांका नहीं हुआ बल्कि भगवान ने उनको ही उनकी करनी का फल दिया है। वह दोनों कुटिल स्त्रियां किशोर से भयभीत हो उठी और उसके पैरो में गिर कर अपने सारे अपराध स्वीकार कर लिए और उनको क्षमा करने की दुहाई देने लगी किशोर और उसके भाई उन दोनों के इस षड्यंत्र को सुन अवाक् थे किन्तु किशोर तो वहां उन बच्चों की खातिर आया था। किशोर ने सेवक से कहा मुझको बच्चों तक पहुंचा दो, सेवक ने ऐसा ही करा, बच्चों के पास जाकर किशोर ने श्री गोविन्द को स्मरण किया और प्रार्थना करी कि है गोविन्द आज मेरी लाज आपके हाथ में हैं, इन दोनों मासूमो को जीवन दान दो या फिर मेरा भी जीवन ले लो। ऐसी प्रार्थना कर किशोर ने दोनों बच्चों के सर पर हाथ रखा। ठाकुर जी की लीला, अपने भक्त की पुकार को कैसे अनसुना करते पल भर में भी दोनों बच्चे जीवित हो उठे। यह देख किशोर के भाई और भाभी को बहुत लज्जा आई उन्होंने किशोर से अपने कर्मो के लिए क्षमा मांगी और कहा कि अब उसको कहीं जाने की आवश्यकता नहीं है, अब वह यही रहेगा, पहले की ही तरहा।किन्तु किशोर का सर्वत्र तो अब उसके गोविन्द थे, उसको इन सब बातो से भला क्या लेना, वह सेवक के साथ वापस लौट गया। किशोर के भाई और भाभी बहुत लज्जित हुए जा रहे थे, सारा समाज उनको बुरा भला कह रहा था। सबने यही कहा कि अंत में वही भाई काम आया जिसको उन्होंने निर्दयिता से ठुकरा दिया था। उन सभी को सारी रात नींद नहीं आई । अगले दिन सभी ने मिल कर किशोर को वापस लाने का निर्णय किया। सब लोग मिलकर किशोर के पास पहुंचे किन्तु किशोर तो पहले ही सब कुछ भांप चुका था, वह लोग जब किशोर के निवास पर पहुंचे तो किशोर वहां नहीं था। वह वहां से जा चुका था। भाई भाभी को बहुत पछतावा हुआ, उन्होंने किशोर को आस-पास बहुत खोजा किन्तु वह नहीं मिला, निराश मन सब लोग वापस लौट गए। उधर जंगल में कही दूर स्वर लहरियां गूँज रही थीं ................
*है गिरधर गोपाल, करुणा सिंधु कृपाल।*
*भक्तवत्सल, सबके सम्बल, मोहे लीजो सम्भाल।।*
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