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छुरा नगर में हलषष्ठी का पर्व मनाया

छुरा नगर में हलषष्ठी का पर्व मनाया 



तेजस्वी यादव/ छुरा

 छुरा नगर सहित इस वनांचल क्षेत्र के ग्रामीण महिलाओं द्वारा भाद्रपद मास की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी का पर्व मनाया गया । धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था.। इस पर्व को विभिन्न राज्यों में हलछठ और ललई छठ के नाम से जाना जाता है. महिलाएं इस व्रत को अपने पुत्र की लंबी उम्र और सुख समृद्धि के लिए रखती है. मान्यता है कि इस व्रत को करने से पुत्र पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं। लगभग सभी गांव,नगर व कस्बाई क्षेत्रों के महिलाओं मे आज सुबह से ही हल षष्ठी व्रत को लेकर उत्साह रहा।

 सुबह – सुबह उठकर स्नान किएऔर व्रत का संकल्प लेंकर निर्जला उपवास रहे।प्रकृति प्रदत्त वस्तुओं महुआ लकड़ी की दातुन, महुवा पत्ते की दोना ,पत्तल धान की लाई एवं भैंस की दुध,दही,घी, का ही उपयोग करते है।छै: प्रकार की भाजी छै:प्रकार का दलहनी आनाज काही उपयोग किया जाता हैं। पूजा-अर्चना करने के बाद निराधर रहना होता है और शाम के समय में सगरी पूजा करते है। जिसमें पलाश ,कुशा,कांसी,बेर के डंगाल, पीली मिट्टी की पूजा करने के बाद  अपने संतानों के कमर मे छ: बार सगरी की गीली पीली मिट्टी की पुतनी लगाकर आशीर्वाद  देती एवं भगवान शिव ,बलभद्र, यम से दीर्घायु, सुख समृद्धि रखने की कामना करती हैं. । तब शाम को पसहर चांवल का भात छै:प्रकार की भाजी,भैस की दुध ,दही, घी, मिट्टी की बर्तन मे पके फीका भात, महुए की लकड़ी केही उपयोग किया जाता हैं।व महुए की ही दो ना पत्तल मे ही भगवान को भोग लगा कर ,भोजन लेकर व्रत पूर्ण करते है।इस व्रत से धन और समृद्धि की प्राप्ति होती है. कुछ स्थानो मे  इस दिन घर के बाहर गोबर से छठी माता का चित्र बनाती हैं. इसके बाद विधि- विधान से भगवान गणेश की पूजा अर्चना करती हैं।



व्रत के दिन छोटे कांटेदार झाड़ी की एक शाखा, पलाश की एक शाखा और नारी जो कि की शाखा और नारी जोकि की शाखाओं को एक गमले में लगाकर पूजा -अर्चना करें. महिलाएं पलाश के पत्ते पर दूध और सुखे मावे का सेवन कर व्रत का पारण करती है. इस दिन गाय की दूध से बनी दही का सेवन नहीं किया जाता है. इस व्रत को पुत्रवधू महिलाएं करती हैं. शास्त्रों के अनुसार, दिन भर निर्जला व्रत रखने के बाद शाम के समय में पसही का चावल और महुए से पारण करने की मान्यता है. इस व्रत को महिलाएं अपने पुत्र की लंबी उम्र के लिए करती हैं और नवविवाहित महिलाएं पुत्र की कामना के लिए करती है।

धार्मिक कथा के अनुसार, द्वापरयुग में भगवान कृष्ण के जन्म से पहले ही शेषनाग ने बलराम के अवतार में जन्म लिया था. बलराम का मुख्य शस्त्र हल और मूसल है. इसलिए उन्हें हलदर भी कहा जाता है।

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