एक अमीर बनाने सौ लोगो को गरीब रखना नरक जाने की तैयारी,निर्यापक मुनिश्री सुधासागर जी के अनमोल वचन - fastnewsharpal.com
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एक अमीर बनाने सौ लोगो को गरीब रखना नरक जाने की तैयारी,निर्यापक मुनिश्री सुधासागर जी के अनमोल वचन

 एक अमीर बनाने सौ लोगो को गरीब रखना नरक जाने की तैयारी,निर्यापक मुनिश्री सुधासागर जी के अनमोल वचन

   


सुरेन्द्र जैन/ धरसीवां (रायपुर)


चन्द्रोदय तीर्थ चांदखेड़ी में विराजमान पूज्य निर्यापक श्रमण ज्ञान ध्यान तपो रक्त मुनि पुंगव108 श्री सुधासागर जी महाराज ने अपने अनमोल प्रवचन मे कहा एक अमीर बनाने के लिए सौ लोगों को गरीब रखना यह नरक जाने की तैयारी है 

1.ज्ञेयऔर ज्ञाता- हेय उपादान की दृष्टि से नहीं ज्ञेय  ज्ञाता की दृष्टि से जानना है हेय उपादान की दृष्टि से जानोगे यह व्रत है जब ज्ञेय ज्ञाता कि दृष्टि से दृष्टि ये स्वरूप हैं फुल अमंगल है गुलदस्ता यह मंगल है फूल शुगन नहीं है  गुलदस्ता शुगन हैं

2.दुसरे का फायदा-मेरा फायदा नहीं हो ओर दूसरे को फायदा हो यह तो ठीक है लेकिन मुझे नुकसान नहीं हो और दुसरे का फायदा हो जाए तुमको आपत्ति नहीं होनी चाहिए इसमें भी यदि आपत्ति हो तो यह आपका सोच को शोषण है अहंकार हैं कक्षा में सब के बराबर नंबर बराबर है आपको आनंद नहीं आएगा सेठ को सभी सेठ मिल जाए तो सेठ को नौकर नहीं मिलेंगे यह भावना उचित नहीं यह भावना करो की सब को अमीर बना दू एक अमीर बनाने के लिए सौ लोगों को गरीब रखना है नरक जाने की तैयारी है।

3.वासना-संबंध के बिना वो वस्तु आपके लिए क्या है कोई रिश्तेदार बनने पर सब कुछ न्यौछावर कर देवे  हम जिस वस्तु के लिए सोचते है वो वस्तु हमारे लिए क्या लाभ हानि ये विकल्प का ज्ञान करो इस वस्तु को लाभ हानि की वासना से  हठकर सोचना है एक व्यक्ति जो चाहता है वह खोजता है एक व्यक्ति वो जो मिलता है उसको खोज मान लेता है एक किताब को इसलिए पढ़ना कि लेखक ने जो लिखा है वह मिलेगा, लेना-देना व्यापारी का काम है व्यापार की दृष्टि से ऊपर उठकर वस्तु ज्ञेय हैंमैं ज्ञाता हूं अर्थ क्रिया लानि हैं ज्ञान की अर्थ क्रिया जानना है कि ज्ञेय की अर्थ क्रिया जानने में आती हैं सब जानने में आता रहे जब तक कोई बंध नहीं वासना जब तक नहीं तब तक अच्छा है नाम वही जाना चाहते हैं जो हमारे काम की है हम वो ही जो हमारे जानना चाहते हैं जो हमारे काम की हैं यह पापो को क्यो जानना चाहते हैं क्यो की पापों को छोड़ने की बात है ये वासना हैं।

4.सृष्टी को सृष्टी रुप-ज्ञान मिला है जानने के लिए,दर्शन मिला है देखने के लिए,सुख मिला है भोगने के लिए,कान मिला है सुनने के लिए,जिंदगी मिली है कुछ पाने के लिए,दिमाग मिला है सोचने के साथ मिले हैं कुछ करने के लिए पैर मिले हैं चलने के लिए, सामने वाले आपके लिए क्या है मन में क्या है आपके लिए ये सोचो तुम कौन हो आपके लिए सोचा सृष्टि को सृष्टी के रूप मे देखो वह क्या है यह मत देखो वह देखो जो दुनिया क्या है ये सोचना संबंध के बिना वो वस्तु आपके लिए क्या है

*प्रवचन से शिक्षा*-दुनिया क्या है ये सोचना संबंध के बिना वो वस्तु आपके लिए क्या है सकंलन ब्र महावीर।

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