*बुद्ध पूर्णिमा पर गौतम बुद्ध के योगदान को किया स्मरण
*बुद्ध पूर्णिमा पर गौतम बुद्ध के योगदान को किया स्मरण*
राजिम
शासकीय राजीव लोचन स्नातकोत्तर महाविद्यालय,राजिम इस वर्ष को स्वर्ण जयंती वर्ष रुप में मना रहा है। इस कड़ी में बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर NAAC/IQAC सेल व इतिहास विभाग के द्वारा गौतमबुद्ध के योगदान को स्मरण करने व विघार्थियों को जागरूक करने की दृष्टि से बुद्ध के योगदान विषय पर व्याख्यान माला का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ संस्था प्रमुख डॉ सोनिता सत्संगी के करकमलों से दीप प्रज्जवलित कर किया गया।
व्याख्यान का प्रारंभ करते हुए संस्था प्रमुख ने इस आयोजन के लिए आयोजक समिति को बधाई दी व बतलाया कि बुद्ध पूर्णिमा भगवान बुद्ध के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। भगवान बुद्ध के अनुयायि न सिर्फ भारत मे बल्कि दुनिया भर के देशों में बड़ी संख्या में मिल जाएंगे। और यह भी माना जाता है कि इस दिन हि भगवान गौतमबुद्ध को कठिन साधना के बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी। बुद्ध पूर्णिमा न सिर्फ बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि यह तिथि हिंदू धर्म को मानने वालों के लिए भी महत्वपूर्ण है।
व्याख्यान की श्रृंखला के अगले क्रम में B.Sc के विघार्थी कु.गुंजा साहू व लोकेश्वर साहू ने क्रमशः बुद्ध पूर्णिमा मनाने के विभिन्न देशों में अलग अलग परंपराओं की जानकारी देते हुए बतलाया कि मान्यता के अनुसार जब गौतमबुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी उसके बाद उन्होंने अपना व्रत खीर खाकर तोड़ा था यही कारण है कि इस दिन प्रायः सभी घरों में खीर बनाई जाती है वहीं इस दिन बौद्ध मंदिरों को फूलों से बेहद खूबसूरत अंदाज से सजाया जाता है और प्रार्थना का आयोजन किया जाता है , साथ ही सूर्योदय के पश्चात बौद्ध धर्म का झंडा फहराया जाता है। इस दिन दान पुण्य करने का विशेष महत्व माना गया है।इस दिन विश्व भर से बौद्ध धर्म के अनुयायि बोध गया आते है, और भगवान गौतमबुद्ध की पूजा करते है। इस तरह की रोचक जानकारी विघार्थियों द्वारा साझा की गई।
इतिहास के सहायक प्राध्यापक आकाश बाघमारे ने गौतमबुद्ध के जीवन कालिक वृतांत पर प्रकाश डालते हुए कहा कि *बुद्ध* शब्द का अर्थ है *वह जो जाग गया हो* यानि जिसे वास्तविकता का ज्ञान हो गया हो। बुद्ध का जन्म 563 B C में कपिल वस्तु, नेपाल की तराई में *सिद्धार्थ गौतम* के रूप में हुआ था। वे एक साधारण मनुष्य के रूप में जन्मे और जीवन के सत्य को खोजने के कारण महात्मा बुद्ध बनकर उभरे। महात्मा बुद्ध जब सिद्धार्थ के रूप में जन्मे तब उन्हें मृत्यु और कष्ट जैसे शब्दों का अर्थ नहीं पता था क्योंकि वे राजमहल में रहते थे और उनके पास सारी सुख सुविधाएं थी। लेकिन जब वह एक बार नगर भ्रमण के लिए निकले तो उन्हें एक बीमार और एक मरा व्यक्ति दिखा और यही वह घटना है थी जिसने उन्हें जीवन के सत्य को जानने के लिए मजबूर कर दिया। जीवन के सत्य को खोजने के लिए उन्होंने अपने महलों के ऐशो आराम व परिवार को त्याग कर ज्ञान प्राप्ति की साधना में लग गए। और तपस्या के माध्यम से स्वयं को महात्मा बुद्ध बना लिया।
इस तरह से उन्होंने सिद्धार्थ से लेकर गौतमबुद्ध बनने की यात्रा को स्मरण किया।
इस आयोजन में प्रमुख रूप से गोपाल राव उरकुरकर, एम.एल.वर्मा, डॉ.गोवर्धन यदु, डॉ समीक्षा चंद्राकर,जी.पी.यदु, डॉ.संगीता झा, चित्रा खोटे, क्षमा शिल्पा चौहान, राजेश बघेल, योगेश तारक, श्वेता खरें, आदि प्राध्यापक व धारिणी, अहिल्या,प्रतिक्षा,बबीता,महिमा,मोनी, तेजराम, खूबलाल आदि स्नातकोत्तर के विघार्थी उपस्थित रहे।