*अपनी इच्छाओं और वृत्ति को श्रेष्ठ कर्म की ओर लगाओ तो पाप कर्मों से मुक्त हो सकते है--- ब्रह्मा कुमार नारायण भाई* - fastnewsharpal.com
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*अपनी इच्छाओं और वृत्ति को श्रेष्ठ कर्म की ओर लगाओ तो पाप कर्मों से मुक्त हो सकते है--- ब्रह्मा कुमार नारायण भाई*

 *अपनी इच्छाओं और  वृत्ति को श्रेष्ठ कर्म की ओर लगाओ तो पाप कर्मों से मुक्त हो सकते है--- ब्रह्मा कुमार नारायण भाई* 




     अलीराजपुर,

, हम सभी जानते है कि हमारे तन-मन के सभी दुःखों के कारण हमारे द्वारा जन्म-जन्मान्तर से किये गये पापकर्म ही है । विकारों के वशीभूत होकर मनुष्य स्वयं को  , दूसरे व्यक्तियों व समाज को जो पीडा पहुँचाता है  , उन्हीं को पापकर्म कहा जाता है । कर्म के नियम के अनुसार जो जैसे कर्म करता है  , वैसा ही फल वह कभी न कभी अवश्य भोगता है । इन सजाओं से बचने के लिए हर एक व्यक्ति पापों से छुटकारा पाना चाहता है । इसके लिए पाप करने के कारण व निवारण करने की जाँच करनी जरूरी है । 

  




  श्रीमदभगवत गीता में उल्लेख है कि अर्जून  , कृष्ण से प्रश्न करता है कि कोई भी पाप नही करना चाहता  , फिर भी लोग पाप क्यों करते है ? कृष्ण कहते है -- मनुष्य की इच्छा उनकी बुध्दि को हर कर उनसे पापकर्म करवाती है । महात्मा बुध्द भी कहते है -- मनुष्य की इच्छायें व लालसाएँ ही उनके दुःखों का कारण है । अहंकार के वश मनुष्य किसी का अपमान  , शोषण या हानि आदि पहुँचा-कर पापकर्म करता है । क्रोध में आकर बिना सोचें-समझे व्यक्ति को कुवचन व कुकर्म से अधिक गहरी चोट पहुँचाता है  , पाप करता है । संग-दोष से व्यक्ति पापकर्म करने लग पडता है । यह विचार इंदौर से पधारे जीवन जीने की कला के प्रणेता ब्रह्माकुमार नारायण भाई ने महात्मा गांधी मार्ग पर स्थित ब्रम्हाकुमारी सभागृह में पाप कर्मों से छुटकारा कैसे हो इस विषय पर नगर वासियों को संबोधित करते हुए बताया

     हम अपनी इच्छा  , अहंकार  , क्रोध  , संग-दोष को जीतकर पापकर्मों से छुटकारा पा सकते है । अब संगमयुग पर शिव परमात्मा अवतरित होकर बतलाते है कि इच्छाओं और वृत्तियों को दबाओं नही बल्कि उनको श्रेष्ठ बनाओ  , इससे पापकर्म समाप्त होंगे । शिवबाबा कहते है -- संग तारे  , कुसंग बोरे । व्यक्ति परमात्मा से व दैवी परिवार से जुडकर पापकर्मों से बच सकता है । इसके लिए सरल ईश्वरीय ज्ञान व सहज राजयोग को अपनाओ और पापकर्मों से छुटकारा पाओ। इस अवसर पर गंधवानी से पधारी ब्रम्हाकुमारी आरती बहन ने बताया कि

    जैसे स्वस्थ तन के लिये पौष्टिक भोजन अतिआवश्यक है... वैसे ही स्वस्थ मन के लिये भी  शुद्ध विचारों की उतनी ही अधिक आवश्यकता होती है.....।तभी हमारे बड़े हमें सुबह उठते ही भगवान का ध्यान करना,या पूजा पाठ करने,और आरती आदि करने की आदत डलवाते हैं,क्योंकि भगवान के ज्ञान व ध्यान से अधिक शुद्ध इस संसार में कुछ भी नहीं है...।उनका ध्यान करने अर्थात उनको याद करने से ही आत्मा शुद्ध और शक्तिशाली बनती है.....। कार्यक्रम के अंत में सभी को  गहन शांति की अनुभूति  राजयोग के द्वारा कराई गई।

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