सुदामा और कृष्ण की मित्रता एक आदर्श अनुपम उदाहरण---पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री
सुदामा और कृष्ण की मित्रता एक आदर्श अनुपम उदाहरण---पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री
नवापारा (राजिम)
जब हम लोगों के बीच से ही कोई बड़ा आदमी बन जाता है तो हम सभी को उससे अपने संबंधों का बखान करने लगते हैं, जैसे कोई मुख्यमंत्री मंच पर हों और उनका कोई स्कूल का सहपाठी रहा व्यक्ति आसपास के लोगों को बताए कि यह मेरा बाल सखा है हम साथ साथ पढ़े हैं तो कोई बड़ी बात नहीं है, मजा तो तब है कि मुख्यमंत्री उसे पुकार कर मंच पर बुला लें, उसे गले लगाकर कहें कि यह मेरे बचपन का मित्र है, श्री कृष्ण ने यही सुदामा के साथ किया, पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री ने बगदेही पारा में कथा के अंतिम दिवस व्यासपीठ से कथा गंगा बहाते हुए कहा कि लोग व्यर्थ ही सुदामा को निर्धन कहते हैं, जबकि श्रीमद्भागवत में स्पष्ट लिखा है कि कृष्ण का यह सखा ब्रह्म ज्ञान से सम्पन्न तपोधनी था, जितेंद्रिय और प्रशान्त था, रुक्मणि और सत्यभामा के उलाह्ननो को सुनकर द्वारकाधीश उत्तर देते हैं कि सारी सृष्टि को तो सुदामा का आभारी होना चाहिए क्योंकि ब्रह्मज्ञानी सुदामा जानते थे कि वह ब्राह्मणी जिसके चने की पोटली चोर चुराकर ले गए थे और डर के मारे सांदीपनी आश्रम में पटक गए थे, और उस भूखी i प्यासी वृद्धा ने यह श्राप दिया था कि जो मेरे इन चनों को खायेगा वो दरिद्री हो जायेगा तो सुदामा ने जानबूझकर सारे चने खा लिए, क्योंकि वो यह कभी नहीं चाहते थे कि मेरा मित्र दरिद्र बनें,शास्त्री जी ने नवधा भक्ति का बखान करते हुए कहा कि 9 में से 7 प्रकार की भक्ति करने में तो हम स्वतंत्र हैं पर दास्य और सख्य यह दो प्रकार की भक्ति प्रभु की विशेष कृपा से ही प्राप्त होती है, अर्जुन सुदामा और उद्धव को यह भक्ति मिली है,इसके बाद दत्त अवधूत के प्रसंग में 24 गुरुओं की कथा,श्री कृष्ण के स्वधाम गमन और परिक्षित मोक्ष की कथा सुनाकर , हरि नाम संकीर्तन कराकर उन्होंने कथा को विराम दिया, गीता पाठ, तुलसी वर्षा और हवन परायणकर्ता सौरभ महाराज ने कराया, यजमान पंचूराम जोहनि साहू और उनके परिवार ने पूर्णाहुति दी और सभी आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया, अंतिम दिवस के कथा प्रसंग में विजय अग्रवाल, राजेंद्र बंगानी, संतोष मखीजा, सुभाष पारख मोहम्मद नजीर, रविशंकर साहू, रामकुमार देवांगन, सोहनसिंह ऑयल सिंघानी, सुन्दर पंजवानी, आचार्य रमाकांत जी, डॉक्टर टी एन रमेश, घनश्याम साहू, रामप्रकाश संतोष साहू, लाकेश, प्रेमलाल व परदेशी राम साहू, अनूप खरे, दयालू राम गाड़ा शिवराम देवांगन आदि उपस्थित थे, अंतिम दिन पंचूराम साहू परिवार की ओर से भंडारा किया गया