*लोकतंत्र में लोक की अहम भूमिका-डा. चितरंजन कर* - fastnewsharpal.com
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*लोकतंत्र में लोक की अहम भूमिका-डा. चितरंजन कर*

 *लोकतंत्र में लोक की अहम भूमिका-डा. चितरंजन कर* 



*पीपला वेलफेयर फाउंडेशन के संयोजन में प्रादेशिक संगोष्ठी आयोजित*

*महासमुंद* 

 स्वाध्याय केंद्र महासमुंद में स्वयंसेवी सामाजिक संगठन पीपला वेलफेयर फाउंडेशन छत्तीसगढ़ के तत्वावधान में रविवार को ‘लोकतंत्र में लोक की भूमिका‘ विषय पर संगोष्ठी आयोजित हुआ।

जिसमें स्वर्णिम छत्तीसगढ़ के निर्माण में जन सामान्य, साहित्यकारों, विद्वानों और सामाजिक संगठनों की भूमिका पर गहन विमर्श व चिंतन किया गया। संगोष्ठी का शुभारंभ मां सरस्वती की पूजा आराधना व राजगीत से हुआ। फाउंडेशन के अध्यक्ष दूजेराम धीवर ने संगोष्ठी आयोजन के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा समाज में बढ़ रही अराजकता को सामाजिक चेतना से ही रोका जा सकता है। इसलिए संगोष्ठी के माध्यम से सामाजिक चेतना जागृत करने का प्रयास किया जा रहा है। 





संयोजक महेन्द्र कुमार पटेल ने लोकतंत्र में लोक की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा-पड़ोस में आग लगने से धुंआ सबको प्रभावित करता है। इसलिए समाज में बढ़ती अराजकता को रोकने, विद्वानों व चिंतकों को समय रहते कदम उठाना चाहिए।

कार्यक्रम के मुख्य वक्ता भाषाविद डॉ. चितरंजन कर ने कहा कि सामाजिक चेतना जागृत करने के लिए इस तरह का आयोजन होते रहना चाहिए। उन्होंने लोकतंत्र में लोक की महत्ता बताते हुए कहा कि सार्थक, क्रियात्मक और प्रेरणास्पद पहल की आवश्यकता है। हम अपने दायरे में रहकर जो कर सकते हैं, वह निरंतर करते रहंे यही लोक की भूमिका है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही सेवानिवृत्त शिक्षाधिकारी श्रीमती सौरिन चंद्रसेन ने कहा कि हमें अपने अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का बोध होना चाहिए। लोग अपने-अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाएं। 

वरिष्ठ साहित्यकार अशोक शर्मा ने लोकतंत्र में लोक की भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि जन जागरण के लिए चिंगारी जलाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में लोक स्वामी हैं और तंत्र सेवक की भूमिका में हैं। उन्होंने वर्तमान परिवेश पर कटाक्ष करते हुए कहा कि-

‘अंधेरा कितना भी घना हो, उसकी उम्र एक रात से अधिक नहीं होती।‘

वरिष्ठ पत्रकार व चिंतक आनंदराम पत्रकारश्री ने पीपला वेलफेयर फाउंडेशन की उत्पत्ति से लेकर विकास यात्रा और समाज में मीडिया की भूमिका, लोकतंत्र के लोभतंत्र में तब्दीली और चुनाव प्रणाली लोकतांत्रिक नहीं होकर पार्टी तंत्र से संचालित होने पर कटाक्ष किया।

शिक्षाविद् और थिंक आईएएस एकेडमी रायपुर के डायरेक्टर मुरली मनोहर देवांगन ने लोकतंत्र में लोक और तंत्र की परिभाषा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि साहित्य मोटी होती जा रही है, भाषा पतली। हमें समय के अनुरूप साहित्य लेखन व शिक्षा में परिवर्तन करते रहना चाहिए।

डॉ. साधना कसार ने पीपला फाउंडेशन द्वारा वैचारिक चेतना जागृत करने की पहल की मुक्त कंठ से सराहना करते हुए कहा कि समाज में महिलाएं आधुनिक होती जा रही है। इससे परिवार और बच्चों का संस्कार बदल रहा है।

राजनीतिक चिंतक योगेश्वर चंद्राकर ने कहा कि हमें अपनी भूमिका पर अवश्य चिंतन करना चाहिए। अच्छाई के चुप रहने से समाज में बुराईयां पनपती है। 

आधार वक्तव्य देते हुए मंच संचालक शशांक खरे ने कहा कि लोकतंत्र में लोक की भूमिका जब तक जागरूकता के साथ सुनिश्चित नहीं होगी। लोकतांत्रिक व्यवस्था और सफलता पर सवाल उठते रहेंगे। संरक्षक पारसनाथ साहू ने किसानों की पीड़ा और नशा की लत से बिखरते परिवार को बचाने में लोक की भूमिका रेखांकित की। शिक्षाविद् छत्रधारी सोनकर ने आभार ज्ञापित करते हुए कहा कि भीड़ तंत्र और दल तंत्र से लोकतंत्र प्रभावित हो रहा है। उन्होंने कहा कि सामाजिक जागरूकता का पर्याय शिक्षा व्यवस्था अब स्वार्थ का पर्याय बनकर रह गया है। लोगों को जागरूक होना ही पड़ेगा। संगोष्ठी में जिला महिला एवं बाल विकास अधिकारी टिकवेंद्र जाटवर ने भी सारगर्भित उद्बोधन दिया। 

प्रादेशिक संगोष्ठी के आयोजन और संयोजन में फाउंडेशन से अध्यक्ष दूजेराम धीवर, संयोजक महेन्द्र कुमार पटेल, कोषाध्यक्ष कोमल लाखोटी, सचिव अभिमन्यु साहू, समाजसेवी शेखर चंद्राकर, सक्रिय सदस्य यादेश देवांगन, राहुल पटेल, समाजसेवी तिलक साव, सुरेन्द्र मानिकपुरी, गोवर्धन साहू, कमलेश साहू, यशस्वी, साक्षी, भूमि, हिमांशी, भूजल, उज्जवल व दीपक पटेल की अहम् भूमिका रही। सभी ने फाउंडेशन द्वारा सामाजिक चेतना जागृत करने संगोष्ठी आयोजन की पहल की सराहना की।

संगोष्ठी का संचालन दूरदर्शन व आकाशवाणी के अनाउंसर शशांक खरे ने किया। इस अवसर पर प्रमुख रूप से श्रीमती माधुरी कर, पूर्व नपाध्यक्ष पवन पटेल, डॉ सविता चंद्राकर, समाजसेवी त्रिपुरारी पटेल, टेकराम सेन, पोखनदास मानिकपुरी, उमाशंकर पांडे, प्रमोद धीवर, द्रौपदी साहू, ओम पटेल सहित बड़ी संख्या में साहित्यकारों, चिंतकों और नागरिकों की उपस्थिति रही।

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