माघी पूर्णिमा महोत्सव के अंतर्गत 26 फरवरी को पाटेश्वर धाम आएंगी छत्तीसगढ़ की राज्यपाल महामहिम सुश्री अनुसुइया उइके जी
माघी पूर्णिमा महोत्सव के अंतर्गत 26 फरवरी को पाटेश्वर धाम आएंगी छत्तीसगढ़ की राज्यपाल महामहिम सुश्री अनुसुइया उइके जी
पाटेश्वर धाम के संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा प्रतिदिन ऑनलाइन सत्संग का आयोजन उनके सीता रसोई संचालन ग्रुप में किया जाता है जिसमें वे प्रतिदिन गीता के ज्ञान से सभी को आलोकित कर आ रहे हैं
गीता चर्चा में संत श्री जी ने बताया कि श्रीमद भगवत गीता के पाठ एवं पावन रहस्य के प्रति यदि हममें लगन लगा ली तो समझिए कि ईश्वर से हमारा लगन लग गया
यह केवल एक ग्रंथ नहीं संसार में रहने वाले पतित,भटके हुए जीव, कुकर्म करने वाले और अधर्म का आचरण करने वाले लोगों के लिए साक्षात हरि का रूप है यह हम कह सकते हैं कि गीता बनाई ही इसलिए गई है कि जगत के पापियों का उद्धार हो सके
भगवत गीता के त्रयोदश अध्याय के प्रथम श्लोक में भगवान श्री कृष्ण क्षेत्र एवं क्षेत्रज्ञ का विवरण देते हुए स्पष्ट करते हैं कि हमें जीव एवं ईश्वर क्या है यह जानना आवश्यक है ईश्वर ने इस नश्वर शरीर की रचना क्यों कि यह भी जानना आवश्यक है इसके लिए भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट किया है कि जिस प्रकार एक सारथी अपने रथ को नियंत्रित करके सही गति एवं दिशा प्रदान करता है वैसे ही हम हमारे शरीर के स्वामी है और गति रूपी इंद्रियों को नियंत्रित कर सकना हमारे बस में है परंतु जब हम पर क्रोध अहंकार हावी हो जाते हैं तो हमारे शरीर की गति अनियंत्रित हो जाती है. अपने शरीर की इंद्रियों को नियंत्रित करना आवश्यक है और यह केवल और केवल सत्संग गीता चिंतन द्वारा प्राप्त होता है
आगामी 21 फरवरी से 27 फरवरी तक प्रति वर्ष अनुसार होने वाले माघी पूर्णिमा महोत्सव में छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला महामहिम राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके का आगमन 26 फरवरी को होगा यह जानकारी बाबा जी ने आज प्रदान की और पोस्टर जारी किया
आज की सत्संग परिचर्चा में डुबोवती यादव ने जिज्ञासा की,कि दंडचक्र,कालचक्र,और विष्णुचक्र तथा इंन्द्रचक्र नामक अस्त्र भगवान श्री राम को किसने प्रदान किये थे गुरुदेव
इसे स्पष्ट करते हैं बाबा जी ने बताया कि रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्री राम के जिस रूप का वर्णन किया है वह उनके मनुष्य रूप में नर लीला का वर्णन है जिसमें उनकी दिव्य अलौकिक रूप को वर्णित नहीं किया गया वह मानव रूप में पूरी तरह से शिक्षा भी ग्रहण करते हैं तो अपने गुरुवर की सेवा भी करते हैं तो अपने माता-पिता के आज्ञा अनुसार वन गमन भी करते हैं, इस प्रकार से उनकी हर रूप में नर रूप का ही वर्णन है, परंतु भगवान के दंडचक्र,कालचक्र,और विष्णुचक्र तथा इंन्द्रचक्र अस्त्रों का वर्णन ऋषि वशिष्ठ के द्वारा लिखी गई रामायण मिलता है और भगवान वाल्मीकि जी के आध्यात्मिक रामायण जो कि मूल रामायण कहलाती है जिसमें भगवान राम की दिव्य रूप जिसमें उनको स्वयं हरि का अवतार बताया गया है जिसमें उनके चमत्कारों का भी वर्णन किया गया है, जिसमें लिखित है कि यह अस्त्र विश्वामित्र जी, गुरु वशिष्ठ द्वारा प्रदत किए गए
पाठक परदेसी जी ने रामचरितमानस में राम जी के भक्तों के वर्णन के विषय में पूछा बाबाजी ने इस विषय में बताते हुए कहा कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस में स्पष्ट रूप से चार प्रकार के भक्तों का वर्णन बताया है प्रथम भाव पूर्ण विभीषण जी दूसरा कुभाव से रावण तीसरा अनख अर्थात जलन से मेघनाथ और चौथा है आलस्य से कुंभकरण, प्रथम है विभीषण जी जो कि भगवान के दर्शन एवं चरण स्पर्श के लिए अद्भुत भाव से भगवान के मिलन की प्रतीक्षा करते हैं दूसरा आता है रावण के भाव जो कि परमात्मा के प्रति कुभाव रखते हुए भी निरंतर उन्हीं के प्रति भाव रखता है तो वह चिरंतन गति को प्राप्त हुआ, तीसरा आता है अनख भाव अर्थात जलन से जो कि मेघनाथ भगवान राम से और लक्ष्मण की वीरता से जलन रखता है, और भगवान द्वारा मोक्ष गति को प्राप्त होता है, चौथा आता है आलस्य पूर्ण भाव जो कि कुंभकरण में थे वह प्रति 6 माह में जब भी जगता तो यह पूछता श्री राम का जन्म हो गया क्या और अपने सेवकों से यह कहता कि जब भी राम का जन्म होगा मुझे उठाना इस प्रकार उसके निरंतर चीर में भी भगवान श्रीराम ही विराजते थे इसलिए वह भी वीरगति को प्राप्त हुआ यह सभी की भाव भक्ति दिखावे की नहीं थी वह अपने अपने भाव से श्री राम को भजते थे इसीलिए उन्हें सद्गति प्राप्त हुई
इस प्रकार आज का सत्संग संपन्न हुआ
जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम