माता, पिता और गुरु का अपमान भूलकर भी ना करे - - आचार्य नंदकुमार शर्मा - fastnewsharpal.com
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माता, पिता और गुरु का अपमान भूलकर भी ना करे - - आचार्य नंदकुमार शर्मा

 माता, पिता और गुरु का अपमान भूलकर भी ना करे - - आचार्य नंदकुमार शर्मा 



   सुरेन्द्र जैन/धरसीवां

सिलयारी के ग्राम मढ़ी मे आयोजित भागवत कथा के अंतिम दिवस भागवत आचार्य पं नंदकुमार जी शर्मा, निनवा वाले ने गुरु की महिमा बताते हुए कहा कि मनुष्य का जीवन बिना गुरू के अधूरा माना जाता है। गुरू के बिना ज्ञान नहीं मिलता और बिना ज्ञान के मनुष्य विवेकहीन हो जाता है! जीवन रूपी पतंग की डोर गुरू के हाथ में होने से वे उसे ऊंचाई तक ले जाते हैं, जिससे अपने आप लक्ष्य मिल जाता है। उन्होने कहा जीवन में गुरु की परम आवश्यकता होती है। हमको गुरु के पास नहीं, अपितु गुरु के साथ रहना चाहिए। 



अर्जुन ने अपनी डोर श्रीकृष्ण को सौंप कर महाभारत में विजय प्राप्त कर धर्म की स्थापना की। उन्होंने कहा कि गुरु की आवश्यकता स्वयं भगवान को भी पड़ती है! मनुष्य के सामने चार प्रश्न होते हैं। मै कौन हूं, इस दुनिया में क्यों आया हूं, मैं क्या कर रहा हूं, मुझे कहां जाना है। इन सबका सही ज्ञान एक सद्गुरु गुरु ही दे सकता है। उन्होंने कहा जो पशु स्वतंत्र होता है वह असुरक्षित व डरा हुआ भी होता है, लेकिन जो खूंटे में बधा हुआ होता है वह सुरक्षित व निर्भय हो जाता है, क्योंकि उसकी हर तरह की चिंता मालिक की होती है। ठीक उसी तरह मनुष्य को भी सद्गुरु के ज्ञान रूपी खूंटे से बंधकर रहना चाहिए। फिर आगे की चिंता गुरु की होती है। आचार्य शर्मा ने बताया कि भगवान दत्तात्रेय जी ने अपने जीवन काल मे 24 गुरु बनाए! उन्होने कहा कि जीवन मे हमे जिससे भी सच्चा ज्ञान प्राप्त हो वही हमारे लिए गुरु है. उन्होने बताया कि माता, पिता, और गुरु का अपमान जीवन मे कभी भी ना करे! इन लोगों का अपमान करने के बाद आप कितनी ही पूजा-पाठ या दान-धर्म कर ले लेकिन उसका पाप नहीं मिटता। इसलिए भूलकर भी आपको इनका अपमान नहीं करना चाहिए।

हर धर्म में मां का सम्मान करने और भूलकर भी उनका अपमान न करने के बारे में बताया गया है। जो मां की सेवा करता है उसे स्वर्ग मिलता है इसके विपरीत उनका अपमान करने वाला मनुष्य कभी खुश नहीं रह पाता। भूलकर भी आप अपनी मां का अपमान न करें। कहा जाता है कि जो व्यक्ति अपने पिता का सम्मान नहीं करता, उनकी आज्ञा का पालन नहीं करता, वह पशु के समान माना जाता है। माता-पिता का अपमान करना मनुष्य का सबसे बड़ा अवगुण माना जाता है।गुरु का दर्जा बहुत ऊंचा माना जाता है। गुरु हमें शिक्षा ज्ञान देते है।  जो शिष्य अपने गुरु का सम्मान नहीं करता, उनकी दी गई शिक्षा का अनादर करता है, वह कभी भी सफलता हासिल नहीं कर पाता। इसलिए कभी भी अपने गुरुओं का अपमान नहीं करना चाहिए। आगे कहा कि समय और स्थिति कभी भी बदल सकती है, अतः कभी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए और ना ही किसी को तुच्छ समझना चाहिए. इंसान शक्तिशाली हो सकता है लेकिन 'समय' मनुष्य से भी ज्यादा शक्तिशाली और बलशाली होता है! राजा हो या भिखारी हो सभी के लिए समय अपना प्रभाव दिखा देता है! राजा को भिखारी और भीखरी को राजा बना देता है. आगे आचार्य जी ने परीक्षित मोक्ष की कथा बताते हुए भगवान कथा का समापन किए. अंतिम दिवस कथा सुनने श्रद्धालुओं की अपार भीड़ उमड़ पड़ी।

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