ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनके विभिन्न ऑनलाइन ग्रुपों में किया - fastnewsharpal.com
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ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनके विभिन्न ऑनलाइन ग्रुपों में किया

 ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनके विभिन्न ऑनलाइन ग्रुपों में किया




प्रतिदिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनके विभिन्न ऑनलाइन ग्रुपों में किया जाता है जिसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते हैं     

   रामफल जी ने आज के सत्संग परिचर्चा में जिज्ञासा रखते हुए बाबा जी से प्रश्न किया कि 

       गुरुदेव जैसे राम जी को देखते हैं तो वे सीधे खड़े हैं और कृष्ण जी को देखते हैं तो टेढ़े खड़े हुए हैं और उनकी मुकुट भी  टेढ़ा है इसका क्या कारण है प्रभु प्रकाश डालने की कृपा हो, बाबाजी ने बताया कि श्री कृष्ण भगवान और राम जी दोनों ही अवतारों में बहुत अधिक भिन्नता है श्री कृष्ण भगवान लीलाअवतार है तो भगवान श्री राम जी मर्यादा पुरुषोत्तम, भगवान श्री कृष्ण को हम देखते हैं तो उनकी  चाल हो चाहे उनके बाल हो सभी कुछ टेढ़ा है और श्री राम जी सौम्य सरल है वे हर रूप में सौम्य अवतार हैं चाहे वे राजकुमार रूप में हो या फिर वनवासी के रूप में  क्योंकि उन्होंने अपने हर रूप में मर्यादा को ही सर्वोपरि रखा है इसीलिए वे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कहलाये

        पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी थी बाबा जी, कांवड़ यात्रा की शुरूआत किसने की ओर कब हुयी और इसका क्या महत्व है ? कृपया प्रकाश डालने की कृपा करेंगे, कावड़ यात्रा के इतिहास को वर्णन करते हुए बाबा जी ने बताया कि कावड़ यात्रा का चलन बाबा बैजनाथ जी के धाम से शुरू हुआ है बाबा बैजनाथ भोलेनाथ जी का ऐसा धाम है जो अपने आप स्थापित हुआ था रावण जब कैलाश से भगवान शिव को लेकर लंका जा रहे थे तो रास्ते में विष्णु जी ने ब्रह्मण का रूप धारण कर लिया और जब रावण को तिव्र लघुशंका लगी तो उसने भगवान शिव की मूर्ति को ब्राह्मण के हाथ में दे दिया और विष्णु भगवान ने उसे धरती पर स्थापित कर दिया बाद में जब रावण ने शिवलिंग को उठाने का प्रयास किया तो वे  उससे नहीं उठे तभी से भगवान वहीं पर स्थापित हो गए और एक बैजु नाम के भक्त ने उनको गाय का दूध चढ़ाया तभी से वे बैजनाथ कहलाए और यहीं से कावड़ यात्रा प्रारंभ हुई इसका इतिहास सौ या डेढ़ सौ साल पुराना है,अधिक पुराना नहीं है रामधारी दिनकर जी की पुस्तक संस्कृति के 4 अध्याय में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है

          कुंभ लाल ने जिज्ञासा की बाबा जी इंसान अपने नश्वर कार्य में इतना मग्न है कि स्वयं परमात्मा भी उनके सामने में प्रकट हो तो उन्हें भी पहचानने की गलती कर ले कृपया  मार्गदर्शन दीजिए, बाबाजी ने बताया कि संसार में हमारे जीवन में हमें कई लोगों से संपर्क में आना होता है मिलना होता है कभी कोई हमें अंजान रूप में मिलते हैं तो कभी कोई हमारे घर में उपस्थित होते हैं उनसे हमें प्रेम भाव से ही मिलना चाहिए चाहे किसी भी रूप में हो,कोई धन अक्षम हो सकता है तो कोई कर्म से तो कोई मन से तो कोई तन से हमें उनकी अक्षमताओं को ना देखते हुए प्रेम भाव से ही उनसे हमेशा मिलना चाहिए किसी को एक गिलास पानी पिलाने या भोजन करा  देने से  हमारी संपत्ति खत्म नहीं हो जाती बस इसे प्रेम भाव ही बढता है और कोई अनजाने में भी हमें मिले तो प्रेम से ही मिलना चाहिए इससे हो सकता है कि कोई देवी शक्ति यां परमात्मा हमें मिले तो गलती से भी हमसे कोई बुरा व्यवहार नहीं होगा

         मान सिंह जी ने जिज्ञासा रखी की राम नाम मनिदीप धरू जीह देहरी द्वार! तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौ चाहसि उजियार!इस पर प्रकाश डालने की कृपा हो प्रभु जी, गोस्वामी तुलसीदास जी की इन पंक्तियों के भाव के स्पष्ट करते बाबा जी ने बताया कि हमारे बाहर भी अंधेरा है और हमारे अंदर भी 

तो देहरी अर्थात जीभ पर परमात्मा  का नाम लाने से बाहर भी प्रकाश हो जाएगा अंदर भी अर्थात हम मन में सुमिरन करते रहेंगे तो मन में मोह  का नाश होगा,शक्ति प्राप्त होगी भक्ति प्राप्त होगी और बाहर में वाणी में मधुरता आएगी

 इस प्रकार आज का ऑनलाइन सत्संग संपन्न हुआ

 जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम

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