*ईश्वर की याद में बनाया गया भोजन प्रसाद - बीके स्वाति दीदी* - fastnewsharpal.com
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*ईश्वर की याद में बनाया गया भोजन प्रसाद - बीके स्वाति दीदी*

 *ईश्वर की याद में बनाया गया भोजन प्रसाद - बीके स्वाति दीदी*



 बिलासपुर

 संसार में मनुष्य में अभी तक जितनी भी तरक्की की है - चाहे विज्ञान के क्षेत्र में अथवा तकनीकी क्षेत्र में, चाहे कंप्यूटर में या गणित में या किसी भी क्षेत्र में। यह उपलब्धियां उसने तब प्राप्त की है जब मानव ने बाह्य जगत को समझने की प्रक्रिया में अपने मन को बाहरी वस्तुओं पर एकाग्र किया। बाह्य संसार जितना विशाल है उतना ही भीतरी संसार की विशाल है, लेकिन यह अंतर्जगत पूरी तरह से गुप्त है।




उक्त वक्तव्य प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की स्थानीय शाखा टेलीफोन एक्सचेंज रोड स्थित राजयोग भवन में चल रहे 7 दिवसीय *हैप्पी लिविंग* कार्यक्रम में सेवाकेंद्र संचालिका बीके स्वाति दीदी ने कही। दीदी ने आगे कहा कि मानव को बाह्य जगत को जानने में हजारों वर्ष लग गए लेकिन भीतर का अंतर्जगत इतना विशाल है कि अभी तक मानव ने उसे अंश मात्र भी नहीं समझा है। इस अंतर्जगत को समझने में भारत का प्राचीन राजयोग हमारा सरल और सही मार्गदर्शन करता है। अंतर्जगत का आधार इस पहेली को सुलझाने से प्राप्त होता है कि मैं कौन हूं? जीवन दो चीजों से बना है एक है शरीर दूसरी है आत्मा। केवल आत्मा से ही जीवन नहीं है, और ना ही केवल शरीर से जीवन है। शरीर की वास्तविकता पांच तत्व है। उसी प्रकार शरीर के अंदर जो चैतन्य शक्ति आत्मा है उसे जीवन जीने के लिए 7 गुण चाहिए। इसलिए आत्मा को सतोगुण ही कहा जाता है। आत्मा की चैतन्या की अभिव्यक्ति इन्हीं 7 गुणों के माध्यम से होती है। जो जीवन को अर्थपूर्ण बना देते हैं। यह 7 गुण है ज्ञान, पवित्रता, प्रेम, शांति, सुख, आनंद और शक्ति। दीदी ने बताया कि दुनिया में दो प्रकार के लोग होते हैं एक वह जो आते हैं तो बहुत खुशी देते हैं और दूसरे वह जो जाते हैं तो बहुत खुशी देते हैं। अब हमें यह निर्णय करना है कि हमें कैसा बनना है। जिसके प्रकम्पन्न सकारात्मक होते हैं तो उनकी उपस्थिति मात्र से सभी को शांति, खुशी का अनुभव होता है और जिनके प्रकम्पन्न नकारात्मक होते हैं उनकी उपस्थिति से कोई भी खुश नहीं होता है। यह प्रकपन्न आत्मा के इन सात गुणों के माध्यम से ही बाहर निकलते हैं। यह प्रकम्पन्न कुछ इंच से लेकर कई सौ मीटर तक फैलते हैं। दीदी ने उदाहरण देते हुए बताया कि जैसे हिटलर कहने से ही एक नकारात्मक प्रकम्पन्न लगते हैं लेकिन अगर मदर टेरेसा कहते हैं तो सकारात्मकता की अनुभूति होती है। प्रकृति के तत्व हमारे वाइब्रेशन को बहुत जल्दी ग्रहण करते हैं। इसीलिए जब घर में प्रसाद बनाया जाता है तो उसके स्वाद में बहुत अंतर होता है क्योंकि वह प्रसाद बहुत ही शुद्ध भाव से बनाया जाता है। दीदी ने कहा कि जब हम भगवान की याद में एक दिन प्रसाद बना सकते हैं तो क्यों नहीं जब रोज भोजन बनाते हैं तो तीनो टाइम ही भगवान की याद में भगवान के लिए भोजन बना रहे हैं इस स्मृति से उस भोजन को प्रसाद बना दें! ऐसा भोजन ग्रहण करने से शरीर की सारी बीमारियां, घर का तनाव आदि का निवारण किया जा सकता है। शिविर के दूसरे दिन मन को कैसे शक्तिशाली बनाये बताया जाएगा।


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