रक्षाबंधन 30 को मनाये या 31 अगस्त को --ज्योतिष भूषण पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री
रक्षाबंधन 30 को मनाये या 31 अगस्त को --ज्योतिष भूषण पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री
नवापारा (राजिम)
इस बार सावन का 2 महीना रहा, जिसमें शुरू के 15 दिनों के बाद एक महीना अधिक मास के रूप में मनाया गया और बाद के अंतिम जो 15दिन थे, उसमे पूर्णिमा तिथि और रक्षा बन्धन के पर्व को मनाए जाने को लेकर अत्यन्त संशय की स्थिति बन गई है, पंडितों के बीच मत मतांतर होने के कारण इस त्यौहार के मनाने को लेकर और भ्रम हो गया है, इस विषय में सोशल मीडिया में भी तरह तरह के विचार पढ़ने को मिल रहे हैं, भाई बहनों को भी असमंजस हो रहा है कि त्यौहार30 को मनाए या 31 को, इस सम्बंध में विभिन्न शास्त्रों के विश्लेषण के बाद नगर के ज्योतिष भूषण पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री ने बताया कि पूर्णिमा तिथि के शुरू होते ही भद्रा लग जाने के कारण यह दुविधा उत्पन्न हुई है, हमारे 2 प्रमुख त्यौहार होली और राखी पर भद्रा के विषय में विचार किया जाता है, भद्रा को त्याग कर ही ये दोनों त्यौहार मनाए जाने के शास्त्रों में स्पष्ट निर्देश है,30 अगस्त बुधवार को प्रातः 10:59 मिनट पर पूर्णिमा तिथि और भद्रा दोनों एक साथ लग रहे हैं भद्रा तो उस रात को 9 बजकर 03 मिनट पर समाप्त हो जायेगी किंतु पूर्णिमा दूसरे दिन गुरुवार को प्रातः 7 बजकर 03 पर समाप्त होगी अर्थात सूर्योदय पूर्णिमा तिथि पर ही होगा, गुरुवार को सूर्योदय 5 बजकर 51 मिनट पर हो रहा है अर्थात पूर्णिमा इस दिन एक घड़ी से भी 12 मिनट ज्यादा है, व्यवहार में सनातन वैष्णव समाज उदियात तिथि को मान्यता देता है, इस दृष्टि से 31 अगस्त गुरुवार को दिन भर राखी बांधी जा सकती है, और यह व्यावहारिक भी है, किंतु शास्त्रों के अनुसार रक्षा बंधन पर्व भद्रा समाप्त होते ही रात्रि 9 बजकर 4 मिनट से मनाया जाना चाहिए क्योंकि मुहूर्त प्रारम्भ में लिया जाता है, समापन पर नहीं, साथ ही निर्णय सिन्धु आदि मुहूर्त दिशा निर्देश देने वाले शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि अति आवश्यक परिस्थितिवश यथा फौज की ड्यूटी, यात्रा प्रसंग आदि होने पर परिहार स्वरूप भद्रा मुख काल को विशेष रूप से त्यागकर भद्रा पुच्छ काल में जो कि 30 अगस्त बुधवार शाम को 5 :34 से 6:33 तक है में राखी बांधी जा सकती है और यह जो समय है, वह गोधूली बेला को भी स्पर्श कर रहा है, जो कि पंचांग के सारे दोषों से मुक्त, शुद्ध और पवित्र माना गया है, शास्त्री जी ने कहा यह बेला उपयुक्त है अन्यथा दूसरे दिन सुबह से ही रक्षा बन्धन का पर्व मनाया जा सकता है और यह व्याहारिक भी है, पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री ने कहा कि वर्णाश्रम व्यवस्था के अनुसार यह ब्राह्मणों का विशेष पर्व है और इसे गुरुवार को मनाया जाना ही श्रेयस्कर है