खड़मा के ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय मे पुर्व अंतर्राष्ट्रीय मुख्य प्राशाशिका की 17वी पुण्य तिथी मनाई
"विश्व बन्धुत्व दिवस"पर याद किये गये डॉ दादी प्रकाशमणी
खड़मा के ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय मे पुर्व अंतर्राष्ट्रीय मुख्य प्राशाशिका की 17वी पुण्य तिथी मनाई
महान सामाजिक क्रान्ति की नायिका थी दादी प्रकाशमणी ---- ब्रह्माकुमारी अंशु
खंडमा
ग्रामीण क्षेत्र मे आध्यात्मिक ज्ञान एबं राजयोग की शिक्षा से एक नई उर्जा के साथ जीवन जीने की मार्ग प्रशस्त करने वाली अन्तर्राष्ट्रीय संस्था प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की खड़मा सेवा केन्द्र मे पुर्व अन्तर्राष्ट्रीय मुख्य प्रशाशिका डॉ दादी प्रकाशमणी जी की 17वी पुण्य तिथी 25अगस्त को "विश्व बन्धुत्व दिवस " के रूप मे मनाई। ग्राम खड़मा स्थित ब्रह्माकुमारीज की ओम शाँति भवन मे आस-पास के गाँव की ब्रह्माकुमारीज गीतापाठशाला के सदस्यों ने दादीजी की छायाचित्र पर दीप प्रज्वलित कर श्रद्धांसुमन अर्पित किये,एवं उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाले।सेवा केन्द्र प्रभारी राज योगिनी ब्रह्माकुमारी अंशु बहन ने कहा कि
ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय’ की मुख्य प्रशासिका रहीं दादी प्रकाशमणि ने आध्यात्मिक नेता के रूप में विश्वव्यापी पहचान बनाकर सब को जीने का सही तरीका सिखाया। ‘शांतिदूत’ पुरस्कार से सम्मानित दादी ऐसी विदुषी नारी थीं, जिन्होंने यह सिद्ध किया कि शांति स्वरूपा नारी महान सामाजिक क्रांति की नायिका बन सकती है। दादी ने अपने नेतृत्व में लाखों भाई-बहनों के जीवन में अद्भुत परिवर्तन लाकर उन्हें विश्व सेवा के लिए प्रेरित किया ,जिसके यू.एन.ओ. द्वारा संस्था को मान्यता प्रदान की गई।उन्होनेआगे बताये कि दादी ने अपने अनुपम मूल्यनिष्ठ जीवन, अध्यात्मिक शक्ति व प्रशासनिक दक्षता से ब्रह्माकुमारीज संगठन को प्रेम, शांति, सत्य, समरसता, सद्भावना, आत्मिक दृष्टि, वात्सल्य व करुणा जैसे मूल्यों से सुसज्जित करके दुनिया भर में अध्यात्म की ज्योति जलाई। उनके प्रयास से दुनिया के 140 देशों में 8 हजार राजयोग केंद्र स्थापित हैं।प्रजापिता ब्रह्मा बाबा के 18 जनवरी 1969 को अव्यक्त होने के बाद से दीदी मनमोहिनी के साथ-साथ दादी प्रकाशमणि मधुबन से ही यज्ञ की संभाल करने लगीं। अव्यक्त होने से पहले ही ब्रह्मा बाबा ने दादी को यज्ञ की समस्त जिम्मेदारी दे दी थी। दादी के समर्थ नेतृत्व में संस्था आगे बढ़ती गई और कई देशों में राजयोग सेवा-केंद्र खुले। दादी प्रकाशमणि के प्रताप से ही सिंध हैदराबाद में रोपित पौधा आज वट वृक्ष का रूप धारण कर चुका है। जुलाई 2007 में दादी जी का स्वास्थ्य नीचे आने लगा और 25 अगस्त, 2007 को उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया। दादी की याद में मधुबन में ‘प्रकाश स्तंभ’ बनाया गया है, जिस पर उनकी शिक्षाएं लिखी गई हैं। इस अबसर पर संस्थान के वरिष्ठ बी के गोविंद भाई,अगहन सिग ठाकुर,याद राम साहू, सियाराम सिंहा, रूपेंद्र चंद्राकार,हेमलाल यादव,लवण साहू,तेजस्वी यदु,सज्जन यादव, ब्रह्माकुमारी चंद्रीका बहन हेमीन निषाद,केशर सिन्हा,शान्ती साहू,रधीका ध्रुव,दुमेश्वर,गुनित राम भाई सहित,ग्राम खड़मा,गायडबरी,कनेसर कर्चाली,पिपरछेडी,मड़ेली,छुरा आदि ग्राम के सदस्य बडी संख्या मे उपस्थित रहे।