राजिम कुम्भ कल्प मेला --पर राजिम त्रिवेणी संगम महानदी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही, सुध लेने वाला कोई नहीं - fastnewsharpal.com
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राजिम कुम्भ कल्प मेला --पर राजिम त्रिवेणी संगम महानदी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही, सुध लेने वाला कोई नहीं

 राजिम कुम्भ कल्प मेला --पर राजिम त्रिवेणी संगम महानदी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही, सुध लेने वाला कोई नहीं



नवापारा-राजिम 

राजिम कुंभ कल्प को शुरू होने में अभी लगभग सप्ताह भर बाकी है इसकी तैयारियों को लेकर अधिकारियों की लगातार बैठकें हो रही है, युद्ध स्तर पर कार्य हो रहे हैं, गरियाबंद और रायपुर जिले के आला अधिकारी  निरीक्षण करने के लिए भी आते हैं पर किसी का भी दया नवापारा नगर की सीमाओं से सटी महानदी की तरफ नहीं गया है, महानदी के किनारे, उसके टूटे फूटे घाट गंदगी और बदबू से भरे हुए हैं,



 महानदी के भीतर पैर रखते ही कचरे का ढेर उभर कर तैरने लगता है, नहाने की बात तो दूर, आचमन करने की भी हिम्मत नहीं होती, होना तो यह था कि प्रदेश के सबसे बड़े आयोजन राजिम कुंभ  की गरिमा के अनुरूप महानदी के स्वरूप को सजाया संवारा जाता, सोमवारी बाजार से लेकर घटौरिया के पास एनीकेट तक नदी में चैन माउंटेन डालकर इसके भीतर सड़ रहे टनो कचरे और गाद को निकाल बाहर किया जाता पर ऐसा कुछ भी नहीं होता है, सारे काम राजिम की ओर तक ही सिमट कर रह जाते हैं, कहने को तो गार्डन के बाजू से राजिम और कुलेश्वर मंदिर की तरफ सड़क  हर साल बनाई जाती है, पर  नदी, के किनारों और घाटों की साफ सफाई और सौंदर्यीकरण पर ध्यान नहीं दिया जाता, तुकाराम कंसारी ने कहा कि हम लोगों ने महानदी के प्रहरी नाम की एक समिति भी बनाई है, जो समय समय पर नदी, घाटों की साफ सफाई भी प्रतीकात्मक स्वरूप में ही कर पाती है, हमारे पास समुचित संसाधन नहीं है,समाचार पत्रों और अधिकारियों को ज्ञापन दे देकर भी थक गए, कुछ नहीं होता, नगर के आस्था क्लिनिक के डॉक्टर के आर सिन्हा ने कहा कि नदी नहाने के लायक नहीं रह गई है, विभिन्न चर्म रोगों की शिकायत लेकर मरीज आते हैं इसका पानी पीना स्वास्थ के लिए हानि कारक है, जन प्रतिनिधियों को इसका संज्ञान लेना चाहिए, पण्डित परिषद के ब्रह्मदत्त शास्त्री, जो कि त्रिवेणी महानदी की आरती के रचनाकार और संयोजक है ने व्यथित मन से कहा कि महानदी अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है और कोई सुध लेने वाला नहीं है, यह बड़ी भयावह स्थिति है, हम आने वाली पीढ़ियों को विरासत में क्या देने जा रहे हैं, यह शोचनीय विषय है, हम सभी ने बाल्यकाल में ऐसी निर्मल, स्वच्छ नदी देखी है, जिसकी रेत सोने जैसी दमकती रहती थी, उसमें छोटे छोटे शंख, सीपी और मछलियां दिख जाती थी आज वो नदी मर चुकी है, अशोक गंगवाल, रमेश पहाड़िया, भागचंद बेगानी विजय गोयल , गोपाल यादव  ने भी अपनी गंभीर चिंता जताई है और शीघ्र इस विकट समस्या का हल निकालने के लिए जन प्रतिनिधियों से अपील की है

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