*आध्यात्म....मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है?...*
*आध्यात्म....मनुष्य जीवन का लक्ष्य क्या है?...*
मनुष्य का वर्तमान जीवन बड़ा अनमोल है क्योंकि अब संगम युग में ही वह सर्वोत्तम पुरुषार्थ करके जन्म-जन्मान्तर के लिए सर्वोत्तम प्रारब्ध बना सकता है और अतुल हीरों-तुल्य कमाई कर सकता है।
वह इसी जन्म में सृष्टि का मालिक अथवा जगत्-जीत बनने का पुरुषार्थ कर सकता है। परन्तु, आज मनुष्य को जीवन का लक्ष्य मालूम न होने के कारण वह सर्वोत्तम पुरुषार्थ करने की बजाय इसे विषय-विकारों में गंवा रहा है अथवा अल्पकाल की प्राप्ति मे ही लगा रहा है। आज वह लौकिक शिक्षा द्वारा वकील, डाक्टर, इंजीनियर बनने का पुरुषार्थ कर रहा है और कोई तो राजनीति में भाग लेकर देश का नेता, मन्त्री अथवा प्रधान मंत्री बनने के प्रयत्न में लगा हुआ है। अन्य कोई इन सभी का संन्यास करके, 'संन्यासी' बनकर रहना चाहता है। परन्तु सभी जानते हैं कि मृत्युलोक में तो राजा-रानी, नेता, वकील, इंजीनियर, डाक्टर, संन्यासी इत्यादि कोई भी पूर्ण सुखी नहीं हैं। सभी को तन का रोग, मन की अशान्ति, धन की कमी, जनता की चिन्ता या प्रकृति के द्वारा कोई पीड़ा, कुछ-न-कुछ तो दुःख लगा ही हुआ है। अतः इनकी प्राप्ति से मनुष्य जीवन के लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती क्योंकि मनुष्य तो सम्पूर्ण-पवित्रता, सदा सुख और स्थायी शान्ति चाहता है।
चित्र में अंकित किया गया है कि मनुष्य जीवन का लक्ष्य जीवन मुक्ति की प्राप्ति अथवा वैकुण्ठ में सम्पूर्ण सुख-शान्ति सम्पन्न श्री नारायण या श्री लक्ष्मी पद की प्राप्ति ही है क्योंकि वैकुण्ठ के देवता तो अमर माने गये हैं, उनकी अकाल मृत्यु नहीं होती; उनकी काया सदा निरोगी होती है और उनके खजाने में किसी भी प्रकार की कमी नहीं होती। इसीलिए ही तो मनुष्य स्वर्ग अथवा वैकुण्ठ को याद करते हैं और जब उनका कोई प्रिय सम्बंधी शरीर छोड़ता है तो वे कहते हैं कि वह स्वर्ग सिधार गया है।
इस पद की प्राप्ति स्वयं परमात्मा ही ईश्वरीय विद्या द्वारा कराते हैं
इस लक्ष्य की प्राप्ति कोई मनुष्य अर्थात् कोई साधु-संन्यासी, गुरु या जगद्गुरु नहीं करा सकता बल्कि यह दो ताजों वाला देव-पद अथवा राजा-रानी पद तो ज्ञान के सागर परमपिता परमात्मा शिव ही से प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा ईश्वरीय ज्ञान तथा सहज राजयोग के अभ्यास से प्राप्त होता है।
अतः अब जबकि परमपिता परमात्मा शिव ने इस सर्वोत्तम ईश्वरीय विद्या की शिक्षा देने के लिए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय की स्थापना की है तो सभी नर-नारियों को चाहिए कि वे अपने घर-गृहस्थ में रहते हुए, अपना कार्य-धन्धा करते हुए प्रतिदिन एक-दो घण्टे निकालकर अपने भावी जन्म-जन्मान्तर के कल्याण के लिए इस सर्वोत्तम तथा सहज शिक्षा को प्राप्त करें।
इस विद्या की प्राप्ति के लिए तो कुछ भी खर्च करने की आवश्यकता नहीं है; इसलिए इसे तो निर्धन व्यक्ति भी प्राप्त कर अपना सौभाग्य बना सकते हैं। इस विद्या को तो कन्याओं, माताओं, वृद्ध-पुरुषों, छोटे बच्चों और अन्य सभी को प्राप्त करने का अधिकार है क्योंकि आत्मा की दृष्टि से तो सभी परमपिता परमात्मा की सन्तान हैं।
अभी नहीं तो कभी नहीं
वर्तमान जन्म सभी का अन्तिम जन्म है। इसलिए, अब यह पुरुषार्थ न किया तो फिर यह कभी न हो सकेगा क्योंकि स्वयं ज्ञान सागर परमात्मा द्वारा दिया हुआ यह मूल गीता-ज्ञान कल्प में एक ही बार इस कल्याणकारी संगम युग में ही प्राप्त हो सकता है।

