अपकार की भावना से आत्म ज्योति मलिन होती है ---ब्रह्मा कुमार नारायण भाई
क्षमाशील व्यक्ति सहनशील होने के कारण सदा विजयी होता है
अपकार की भावना से आत्म ज्योति मलिन होती है ---ब्रह्मा कुमार नारायण भाई
अलीराजपुर
ईर्ष्या और द्वेष की भावना अज्ञानता का लक्षण है । इससे हम दूसरों को तो शायद ही दुख दे पाते हो, परंतु स्वयं अवश्य दुखी होते हैं । हमारी शारीरिक और आत्मिक दोनों शक्तियों ह्रास होता है । अपकार की भावना से आत्मा-ज्योति मलिन होती है लेकिन अपकारी पर परोपकार करने से यह ज्योति प्रज्वलित हो उठती है ।यदि कोई व्यक्ति उन्माद के वशीभूत होकर अपने शरीर का अंग काटने लगे तो देखने वाला उस पर दया करके उसे बचाने की ही कोशिश करेगा, ना कि उसका अनुकरण करके अपना भी अंग काटने लगेगा । ठीक इसी प्रकार आत्माभिमानी व्यक्ति का ह्रदय क्रोधी, विकारी और अपकारी के प्रति दया, करूणा तथा शमा से भर जायेगा और वह उसे सन्मार्ग पर लाने की कोशिश करेंगा । यह विचार इंदौर से पधारे जीवन जीने की कला के प्रणेता ब्रहमा कुमार नारायण भाई ने क्षमा आत्मा को शक्तिशाली बनाती है इस विषय पर दीपा की चोकी पर स्तिथ ब्रम्हाकुमारी सभागृह में नगर वासियों को संबोधित करते हुए बताया ।उसे अपकार्य करता देखकर यदि वह स्वयं भी वैसा ही करने लग जाए तो गोया उसका उन्मत्त होना ही है ।_
आज भक्त मंदिरों में जाकर भगवान से प्रार्थना करते हैं कि हे भगवान हमारे पाप क्षमा कर दो । लेकिन स्वयं क्षमाशील न बनकर, वे बदले और ईर्ष्या, द्वेष की अग्नि में जलते रहते हैं । निसंदेह, परमात्मा क्षमा के सागर हैं लेकिन उनकी क्षमा का अधिकारी भी वही व्यक्ति हो सकता है जो स्वयं क्षमाशील हो ।_ हमें यह याद रखना चाहिए कि क्षमा ही मनुष्यात्मा का भूषण भी है और धर्म भी । क्षमा से बढ़कर संसार में और कोई भी तप नहीं है तथा अपकारी पर उपकार करना ही सच्चा देवत्व है ।_ आत्माभिमानी मनुष्य सदा क्षमाशील होगा । जो मनुष्य सभी को आत्म रूप में देखेगा, उसमें क्रोध द्वेश और अवतार की भावना उत्पन्न ही नहीं होगी । वह तो सदा अन्य आत्माओं को भाई भाई की दृष्टि से अर्थात् एक परम पिता की संतान होने के नाते से आपस में स्नेह और सहयोग की दृष्टि से ही देखेगा । देही अभिमानी व्यक्ति सदा शांत चित्त और अंतरमुखी होगा और उसे क्रोध तो लेश मात्र भी छू नहीं सकेगा । वह विकारों के वशीभूत नहीं होगा । परमात्मा से योग युक्त होने के कारण वह अपनी आत्मिक शक्ति का हनन नहीं करेगा । अतः आत्मदृष्टा व्यक्ति के मन में अपकार करने वाले व्यक्ति के प्रति भी दया का भाव उत्पन्न होगा क्रोध का नहीं ।_