राजिम आध्यात्मिक संग्रहालय के हाल में नव चेतना मंच द्वारा सैन्य प्रशिक्षण की ट्रेनिंग में आए हुए छात्र छात्राओं को शारीरिक योग्यता के साथ मनोबल को कैसे बढ़ाए
सैन्य प्रशिक्षण केंप/*राजयोग शारीरिक क्षमता के साथ मानसिक क्षमता में भी वृद्धि करता है --ब्रहमा कुमार नारायण भाई*
राजिम आध्यात्मिक संग्रहालय के हाल में नव चेतना मंच द्वारा सैन्य प्रशिक्षण की ट्रेनिंग में आए हुए छात्र छात्राओं को शारीरिक योग्यता के साथ मनोबल को कैसे बढ़ाए
राजिम ,
जीत और हार अपने विचारों पर निर्भर करती है। मान लो तो हार होगी और ठान लो तो जीत होगी। राजयोग वैज्ञानिक पद्धति है जिससे हमारा मनोबल इतना ऊंच बन जाता है जिससे स्वतः शारीरिक फिटनेस के साथ आरोग्यता स्वतः आ जाती है। विचारों की शक्ति, विद्युत ऊर्जा के समान ही एक ऊर्जा हैं। आत्मा और शरीर के मध्य विचार की शक्ति के द्वारा संचार व्यवस्था कायम रहती है। इस ऊर्जा को उच्च शक्ति प्रदान करने के लिए योगाभ्यास की आवश्यकता होती है। साधारणतया मनुष्य सारे दिन में 30 से 50 हजार तक विचार करता है। एक साथ समानांतर कई विषयों पर विचार चलते रहते हैं। जिसका प्रभाव लगभग 75 से 80 ट्रिलियन कोषों पर पड़ता है। यदि विचार नकारात्मक है तो उसका नकारात्मक प्रभाव सभी सेल्स (कोषो) पर पड़ता है। और यदि सकारात्मक विचार हैं तो उन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।अनेक शोधो से यह निष्कर्ष निकला है कि विषैले विचार और नकारात्मक विचारों का हमारे (कोषो) पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है।
जिसके फलस्वरूप तन और मन दोनों प्रभावित होते है। यह विचार इंदौर से पधारे धार्मिक प्रभाग के जोनल कोऑर्डिनेटर ब्रहमा कुमार नारायण भाईने ब्रह्मा कुमारी आध्यात्मिक संग्रहालय के हाल में नव चेतना मंच द्वारा सैन्य प्रशिक्षण की ट्रेनिंग में आए हुए छात्र छात्राओं को शारीरिक योग्यता के साथ मनोबल को कैसे बढ़ाए इस विषय पर आपने बताया कि घातक विषैले विचारें का हमारे सेल्स पर खतरनाक प्रभाव पड़ता है। इससे किसी की मृत्यु तक संभव रहती है। इस विचार श्रेणी में ईर्ष्या-द्वेष, बदला, घृणा, क्रोध इत्यादि भाव वाले विचार आते हैं। जिसका प्राणान्तक प्रभाव स्वयं तथा दूसरों दोनों पर ही पड़ता है। इसका रासायनिक प्रभाव इतना जहरीला होता है कि यह खून को विषमय बनाकर अनेक भयंकर बीमारियों को उत्पन्न करने का कारण बन जाता है। ऐसे खतरनाक प्रभाव उत्पन्न करने वाले विचारों को अपने जीवन से किसी भी तरह से शून्य कर देने का प्रयत्न करना चाहिए। भय और क्रोध तो अत्यंत घातक और विषैला है इसलिए भय मुक्ति अत्यंत आवश्यक है। इसके शारीरिक प्रभाव से जोड़ों में दर्द, सिर का दर्द, एसिडिटी, हाई ब्लड प्रेशर। इसका प्रभाव मस्तिष्क को अत्यधिक क्षतिग्रस्त कर देता है और उस क्षती की पूर्ति कभी-कभी बिल्कुल असंभव हो जाती है। मस्तिष्कीय कोशिकाएं जब एक बार नष्ट हो जाती है तो उसे दोबारा नहीं बनाया जा सकता। रक्तवाहिनियां सिकुड़ जाती है, रक्त दिमाग में पर्याप्त रुप से नहीं पहुंच पाता है। भावनात्मक प्रभाव से रक्तवाहिनियां फट जाती है, दिमाग शक्ति ग्रस्त हो जाता है। अतः यह जानलेवा साबित होता है। इसका प्रभाव चयापचय क्रियाओं पर पड़ता है। सकारात्मक विचारों का हमारे सेल्स पर सकारात्मक होने के कारण से हमारे अंदर उमंग और उत्साह कायम रहता है। कार्य क्षमता में वृद्धि होती है, मानसिक शक्ति का विकास होता है, भावनात्मक परिपक्वता आती है, संवेदनशील व्यवहार के साथ-साथ सर्जनात्मकता का विकास और आध्यात्मिक विकास होता है। छत्तीसगढ़ स्कूल संघ प्रदेश महामंत्री विवेक शर्मा ने बताया कि उच्चविचार आध्यात्मिक श्रेणी में आते,जहां एक और विषैले विचार शरीर के लिए हानिकारक और अत्यधिक घातक होते हैं। वही आध्यात्मिक विचार शरीर और मन के लिए अत्यंत पोषक होते हैं । नींद के 2 घंटे में शरीर जितना विष विसर्जित करता है वहीं यह काम आध्यात्मिक विचार आनंद उत्पन्न करने के कारण उस विसर्जन के कार्यो को आधे घंटे में ही पूरा कर देता है। सैन्य प्रशिक्षक रिटायर्ड मेजर गोवर्धन शर्मा जी ने कहा राजयोग, ध्यान हमारे शरीर और मन की रोग प्रतिरोधक क्षमता अप्रत्याशित रूप से बढ़ जाती है।
ऐसा अभी मेडिकल साइंस ने भी सिद्ध किया है कि राजयोग से दूसरे रसायन जैसे दर्दनिवारक रसायन, आनंद उत्पादक रसायन का श्राव बढ़ जाता है जो अप्राकृतिक रसायनों से पचास गुना अधिक प्रभावी होता है। अत: राज योग के अभ्यास से ही हम सकारात्मक चिंतन करके अपने विचारों को नियंत्रित कर उन पर विजय प्राप्त कर सकते हैं और आनंद पूर्वक जीवन जी सकते हैं। कार्यक्रम के अंत में सभी को मानसिक एकाग्रता के लिए राजयोग का अभ्यास कराया गया।