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सब एक दूसरे को स्नेह करे, सहयोग करे और सम्मान देते चले--ब्रह्मा कुमार नारायण भाई

 निर्विघ्न जीवन जीना है तो परिवार से तनाव, कड़वाहट और संघर्ष को दूर करने का प्रयास करे .. मनमुटाव नहीं



 सब एक दूसरे को स्नेह करे, सहयोग करे और सम्मान देते चले--ब्रह्मा कुमार नारायण भाई


अलीराजपुर

हम सभी संगठनों में रहते है। हमारा परिवार भी सुन्दर संगठन होता है। परिवारों में प्यार रहे, तनाव न रहे। सम्बन्ध हमारे सुखदाई हो जाये। सब एक दूसरे को स्नेह, सहयोग और सम्मान देने लगे।यदि ऐसा होने लगे तो मनुष्य को जीवन जीने का सुख प्राप्त होता है। 

और सम्बन्धों में यदि कड़वाहट रहे,पति-पत्नी के बींच संघर्ष चलता है, बाप और बच्चों के बीच मनमुटाव रहता है, तो जीवन सुखद प्रतीत नहीं होता है। 

आजकल संसार में, सम्बन्धों में समस्यायें बढ़ती जा रही है। और तनावग्रस्त होने के कारण और माया का फोर्स होने के कारण लोग व्यसनों के शिकार होते जा रहे है।

कई लोग तो अपने वासनाओं को दवाने के लिए व्यसनों का आधार लेते है। परन्तु व्यसनों से वासनायें बढ़ती है। घटती नहीं है।




हम ईश्वर के बच्चे है। हमारे पास ईश्वरीय शक्तियाँ है। हम अपनी शक्तियों को पहचाने। 

और याद रखें, जितना हमारा सर्व शक्तियाँ बढ़ती जायेंगी, जीवन निर्विघ्न होता जायेगा। यह अटोमेटिक है। विघ्न आयेंगे ही नहीं। जय विचार इंदौर से पधारे जीवन जीने की कला के प्रणेता ब्रह्माकुमार नारायण भाई ने महात्मा गांधी मार्ग पर स्थित ब्रम्हाकुमारी सभागृह में पारिवारिक जीवन में संतुष्टता  के महत्व पर नगर वासियों को संबोधित करते हुए बताया

इसलिए बहुत अच्छा अभ्यास हमें रखना चाहिए ..

" मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ .. बाबा की शक्तियाँ मेरे पास है "इस सत्य को रियेलाइज करे। इस सत्य को स्वीकार करे। हम सर्वशक्तिमान के बच्चे बहुत शक्तिशाली है। उसकी शक्तियाँ हममें थी। लेकिन जब बाबा आ गये, तो उसने अपनी और बहुत सारी शक्तियाँ दे दी है।

और फिर जितना जितना हम योग लगाते है, हमारी आंतरिक शक्तियाँ बढ़ती जाती है। तो हम बनते जाते मास्टर सर्वशक्तिमान। 

और यदि हम इसकी स्मृति बार-बार लायेंगे। शक्तियाँ तो हमारे पास है, लेकिन उनकी स्मृति लाना आवश्यक  है। 

यदि बार-बार उनकी स्मृति लायेंगे, तो सोई हुई शक्तियाँ जागृत रहेगी। शक्तियाँ एक्टिव रहेगी। वह कार्य करती रहेगी, और हमारा कार्य निर्विघ्न रूप से सफल होते रहेंगे। इस अवसर पर अरुण गहलोत ने बताया कि

तो हम संगठनों में चलते हुए, परिवारों में रहते हुए, अपने को मोल्ड करते चले। अपने को झुका कर चले। दुसरों के बातों को सम्मान देकर चले।

जो व्यक्ति मुड़ता है, वह सहज ही मंजिल पर पहुँच जाता है। और जो अकड़ के खड़ा रहता है, वह जहाँ तहाँ टकराता है। उसकी मानसिक शक्तियाँ नष्ट होती है। उसके कदम रुकते है, मंजिल उससे दूर चले जाते है। तो मोल्ड होना सीखें। और मोल्ड वही होता है ।संसार में भी देखें .. किस वस्तु को हम मोड़ सकते है? जो नरम है। एक नरम गोल्ड आराम से मुड़ जाता है। लोहे को मोड़ने लिए भी उसे गरम करना पड़ता है।यदि हम स्वमान की गर्मी अपने अंदर धारण करे .. यह स्वमान, इस ईश्वरीय नशा में इतनी गर्मी है, जो हमें सरलचित्त बना देता है। और हमारे लिए स्वयं को मोल्ड करना बहुत सहज हो जाता है।मुकाबला इसके .. कि दूसरे को मोल्ड करने की इच्छा हो। पहले यह मोड़े, फिर मुड़े। यह नहीं.. बड़े हम है, महान हम है। महानता की शुरुआत हमें करनी है। 

हम मुड़े, हम झुके तो सचमुच दूसरा भी मुड़ने लगेगा और झुकने लगेगा। इससे हमारे सम्बन्धों में अमृत घुल जायैगा।



तो आज सारा दिन अभ्यास करेंगे .." मैं मास्टर सर्वशक्तिमान हूँ .. सम्पूर्ण निरहंकारी हूँ "

परमधाम में सर्वशक्तिमान को विजुयालाइज करेंगे ..

" उनकी शक्तियों के किरणें मुझ में समा रही है "मानो .. 

" उपर से सर्वशक्तिमान की शक्तियों की वरसात हो रही है .. यह किरणें हममें समा रही है .. हमारे विकर्मो को नष्ट कर रही है "

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