*रानी रास मणि धीवर माता की जयंती 28 सितम्बर को धूमधाम से मनाया गया :खेलन सिंह तारक प्रदेश सह सचिव छत्तीसगढ़*महासभा धीवर समाज छत्तीसगढ़*
*रानी रास मणि धीवर माता की जयंती 28 सितम्बर को धूमधाम से मनाया गया :खेलन सिंह तारक प्रदेश सह सचिव छत्तीसगढ़*महासभा धीवर समाज छत्तीसगढ़*
राजिम
*धीवर समाज राजिम परगना जिला गरियाबंद धीवर समाज द्वारा रानी रास मणि धीवर माता की जयंती मनाया गया*
*रानी रासमणि धीवर माता की कहानी, जिन्होंने काली मंदिर का निर्माण करवाया।कोलकाता के दक्षिणेश्वर मंदिर और उसके पुजारी श्री रामकृष्ण परमहंस का नाम प्रसिद्ध है पर वह मंदिर बनवाने वाली रानी रासमणि को लोग कम ही जानते हैं। रानी का जन्म 28 सितंबर 1793 को बंगाल के 24 परगना जिले के हाली शहर के गंगा के तट पर बसे ग्राम कोना में हुआ था। उनके पिता श्री हरेकृष्ण दास एक साधारण किसान थे। परिवार का खर्च चलाने के लिए वे खेती के साथ ही जमींदार के पास कुछ काम भी करते थे। उसकी चर्चा से रासमणि को भी प्रशासनिक कामों की जानकारी होने लगी। रात में उनके पिता लोगों को रामायण, भागवत आदि सुनाते थे। इससे रासमणि को भी निर्धनों के सेवा में आनंद मिलने लगा।*
*रासमणि जब बहुत छोटी थीं, तभी उनकी मां का निधन हो गया। ऐसे में उनका पालन उनकी बुआ ने किया। तत्कालीन प्रथा के अनुसार 11 वर्ष की अवस्था में उनका विवाह बंगाल के बड़े जमींदार प्रीतम बाबू के पुत्र रामचंद्र दास से हो गया। ऐसे घर में आकर भी रासमणि को* *अहंकार नहीं हुआ। 1823 की भयानक बाढ़ के समय उन्होंने कई अन्नक्षेत्र खोले तथा आश्रय स्थल बनवाये।* *इससे उन्हें खूब ख्याति मिली और लोग उन्हें ‘रानी’ कहने लगे।विवाह के कुछ* *वर्ष बाद उनके पति का निधन हो गया। तब तक वे* *चार बेटियों की मां बन चुकी थीं; पर उनके कोई पुत्र नहीं था।अब सारी सम्पत्ति की देखभाल का जिम्मा उन पर ही आ गया। उन्होंने अपने दामाद मथुरानाथ के साथ मिलकर सब काम संभाला।** *सुव्यवस्था के कारण उनकी आय काफी बढ़ गयी। सभी पर्वों पर रानी गरीबों की खुले हाथ से सहायता करती थीं। उन्होंने*जनता की सुविधा के लिए गंगा के तट पर कई घाट और सड़कें तथा जगन्नाथ भगवान के लिए सवा लाख रु. खर्च कर चांदी का रथ भी बनवाया।*
*रानी का ब्रिटिश साम्राज्य से कई बार टकराव हुआ। एक बार अंग्रेजों ने दुर्गा पूजा उत्सव के ढोल-नगाड़ों के लिए उन पर मुकदमा कर दिया।*
*इसमें रानी को जुर्माना देना पड़ा; पर फिर रानी ने वह पूरा रास्ता ही खरीद लिया और वहां अंग्रेजों का आवागमन बंद करा दिया। इससे शासन ने रानी से समझौता कर उनका जुर्माना*वापस किया*।
*एक बार शासन ने मछली पकड़ने पर कर लगा दिया। रानी ने मछुआरों का कष्ट जानकर वह सारा तट खरीद लिया। इससे अंग्रेजों के बड़े जहाजों को वहां से निकलने में परेशानी होने लगी। इस बार भी शासन को झुककर मछुआरों से सब प्रतिबंध हटाने पड़े।*
*एक बार रानी को स्वप्न में काली माता ने भवतारिणी के रूप में दर्शन दिये। इस पर रानी ने हुगली नदी के पास उनका भव्य मंदिर बनवाया। कहते हैं कि मूर्ति आने के बाद एक बक्से में रखी थी। तब तक मंदिर अधूरा था। एक बार रानी को स्वप्न में मां दुर्गा ने कहा कि बक्से में मेरा दम घुट रहा है। मुझे जल्दी बाहर निकालो। रानी ने सुबह देखा, तो प्रतिमा पसीने से लथपथ थी। इस पर रानी ने मंदिर निर्माण का काम तेज कर दिया और अंततः 31 मई, 1855 को मंदिर में मां दुर्गा की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो गयी।इस मंदिर में मुख्य पुजारी रामकुमार चटर्जी थे। वृद्ध होने पर उन्होंने अपने छोटे भाई गदाधर को वहां बुला लिया। यही गदाधर रामकृष्ण परमहंस के नाम से प्रसिद्ध हुए। परमहंस जी सिद्ध पुरुष थे। एक बार उन्होंने पूजा करती हुई रानी को यह कहकर चांटा मार दिया कि मां के सामने बैठकर अपनी जमींदारी का हिसाब मत करो। रानी अपनी गलती समझकर चुप रहीं*
*रानी ने अपनी सम्पत्ति का प्रबंध ऐसे किया, जिससे उनके द्वारा संचालित मंदिर तथा अन्य सेवा कार्यों में भविष्य में भी कोई व्यवधान न पड़े। अंत समय निकट आने पर उन्होंने अपने कर्मचारियों से गंगा घाट पर प्रकाश करने को कहा। इस जगमग प्रकाश के बीच 19 फरवरी, 1861 को देश, धर्म और समाजसेवी रानी रासमणि का निधन हो गया। दक्षिणेश्वर मंदिर के मुख्य द्वार पर लगी प्रतिमा उनके कार्यों की सदा याद दिलाती रहती है। उसको याद करते हुए आज रानी रास मणि धीवर माता का जयंती मनाया गया!*
*आज के कार्यक्रम मे मुख्य रूप से परगना अध्यक्ष रामु राम तारक, उपाध्यक्ष चेमन तारक, कोषाध्यक्ष झाड़ू राम तारक, सचिव तुका राम तारक लेखपाल अरुण हिरवानी, मीडिया प्रभारी राजेश धीवर, दौआ राम तारक, महिला अध्यक्ष श्री मति पूर्णिमा तारक, युवा अध्यक्ष इशू तारक, घुराऊ राम तारक, संतोष तारक, बाल्मीकि तारक, मेघराज तारक,गैंद तारक समस्त पंच गण, महिला पदाधिकारी गण व समस्त धीवर समाज के बंधु गण शामिल हुए।