रक्षा बन्धन का पर्व भद्रा मुक्त होकर मनाया जाता है--पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री
रक्षा बन्धन का पर्व भद्रा मुक्त होकर मनाया जाता है--पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री
नवापारा राजिम
19 अगस्त सोमवार को भाई बहन का पावन प्यारा त्योहार रक्षा बन्धन है, युगों युगों से यह पर्व मनाया जाता रहा है, पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री ने कहा कि सतयुग के देवासुर संग्राम के समय विजय और रक्षा की कामना से देवराज इन्द्र की पत्नि शची ने अपने पति को रक्षा सूत्र बांधा था, द्वापर में चीर हरण के समय श्री कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा की थी क्योंकि एक बार श्री कृष्ण के चोटिल होने पर द्रौपदी ने अपनी साड़ी का लीर चीर कर उनकी कलाई पर बांधा था इसी सनातन परम्परा को हमारे ऋषि गण एवम ब्राह्मण देवता राजा महाराजाओं को विभिन्न आपदाओं से मुक्ति दिलाने के नाम पर अभिमंत्रित रक्षा सूत्र बांधते रहे हैं यह सनातन परम्परा आज भी जीवित है, बहनें अपने भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है और भाई अपनी बहनों की रक्षा का वचन देते हैं, ज्योतिष भूषण पण्डित ब्रह्मदत्त शास्त्री ने बताया कि रक्षा बन्धन का पर्व भद्रा मुक्त होकर मनाया जाता है, भद्रा रविवार की रात्रि 3 बजकर 4 मिनट पर लग रही है जो कि सोमवार को दोपहर 1 बजकर 30 मिनट तक रहेगी, इसलिए इसके बाद ही रक्षा बंधन का पर्व मनाना श्रेयस्कर होगा, उन्होंने कहा कि इस दिन श्रवण नक्षत्र और शोभन योग लेकर आई पूर्णिमा सर्व सुखकारी है, भद्रा भी जो है वह भू लोक की नही, पाताल लोक की है जो शुभकारी है इस दिन सनातनी लोग प्रायश्चित कर्म करते हैं विशेष रूप से हमारे ब्राह्मण लोग श्रावणी उपाकर्म दशविध स्नान, दान और नया यज्ञोपवीत धारण करके करते हैं हमारे यहां बहनों को इस दिन का विशेष रूप से इंतज़ार रहता है, वे अपने भाइयों की प्रतीक्षा करती है और उनका मुंह मीठा करा कर उनको राखी बांधती है, हमारे समाज और देश की रक्षा में सजग प्रहरी बनें पुलिस के लोगों , फौजी भाइयों एवम जन प्रतिनिधियों को भी राखी बांधने की परम्परा है