*आरंग में है नवग्रहों की दुर्लभ प्रतिमा---सांसारिक सुख, शांति, समृद्धि इत्यादि की प्राप्ति के लिए होती है नवग्रहों की पूजा-डॉ. शुभ्रा रजक तिवारी
*आरंग में है नवग्रहों की दुर्लभ प्रतिमा---सांसारिक सुख, शांति, समृद्धि इत्यादि की प्राप्ति के लिए होती है नवग्रहों की पूजा-डॉ. शुभ्रा रजक तिवारी
आरंग
पुरातात्विक नगरी आरंग में जगह-जगह अनेक पुरा अवशेष हैं। जिनमें से एक है नगर के रानीसागर तालाब किनारे स्थित त्रिलोकी महादेव मंदिर के दीवारों में स्थित है नवग्रहों की प्रतिमा। जानकार बताते हैं इस प्रकार का नवग्रह पट्ट प्राचीन मंदिरों के प्रवेशद्वार के ऊपरी भाग में स्थापित किया जाता था, जिसके दर्शन पश्चात ही गर्भगृह में प्रवेश किया जाता था।
वहीं तामासिवनी निवासी पुराविद् एवं प्रांत सहसंयोजक प्राचीन कला विधा डॉ. शुभ्रा रजक तिवारी बताती हैं कि यह नवग्रह पट्ट नवमी - दसवीं शताब्दी में निर्मित प्रतीत होता है। इस नवग्रह पट्ट में दाई ओर राहू एवं केतु तथा बाई ओर सूर्य का अंकन स्पष्ट दिखाई दे रहा है। ऐसी नवग्रह की प्रतिमाएं बहुत ही कम जगहों पर मिलती है शिल्पकला के अंतर्गत छत्तीसगढ़ के अनेक स्थलों से सूर्य प्रतिमाओं एवं नवग्रहों की प्राप्ति हुई है, जो सूर्य उपासना के द्योतक हैं। इस क्षेत्र में बिलासपुर जिला के अंतर्गत आने वाले पुरातात्विक स्थल ताला (पांचवीं - छठी शताब्दी ईसवीं) में सूर्य का अंकन नवग्रह पट्टों में दिखाई देता है। यह नवग्रह पट्ट देवरानी मंदिर के गर्भगृह में स्थित है। महासमुन्द जिला स्थित प्रख्यात पुरातात्विक स्थल सिरपुर के गन्धेश्वर मंदिर परिसर में आठवीं शताब्दी का सूर्य सहित नवग्रहों का अंकन मिलता है। इस स्थल के उत्खनन से भी सूर्य प्रतिमा की प्राप्ति हुई है। डीपाडीह में सामत सरना मंदिर परिसर में जो कि बलरामपुर जिले के अंतर्गत आता है, वहाँ भी नवीं शताब्दी ईसवी के प्राप्त नवग्रह पट में सूर्य का अंकन दृष्टिगोचर होता है। इसी तरह जिला पुरातत्त्व संग्रहालय जगदलपुर में भी कुरूशपाल से प्राप्त लगभग बारहवी - तेरहवी शताब्दी ईसवी की नवग्रह पट्ट की प्रतिमा रखी हुई है। इस प्रकार हम देखते हैं कि समूचे छत्तीसगढ़ में प्राचीन काल में सौर संप्रदाय के अंतर्गत नवग्रहों के पूजा का भी विधान रहा है। छत्तीसगढ़ के अनेक मंदिरों के द्वार शाखाओं में भी नवग्रहों का अंकन दिखाई देता है।
नवग्रहों का ज्योतिष शास्त्र में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, गुरू, शुक्र, शनि, राहु तथा केतु को नवग्रहों में सम्मिलित किया गया है। नवग्रहों की पूजा सांसारिक सुख समृद्धि, शांति तथा ऐश्वर्य प्राप्ति के निमित्त प्राचीन समय से ही होती रही है। याज्ञवल्यक्य ऋषि ने स्वर्ण, रजत, ताम्रपत्र आदि के पट्ट पर नवग्रहों की स्थापना कर उनकी पूजा का विधान बताया है। पट्ट पर नवग्रहों की स्थापना कर उसके पूजन की विधि समाज में आज भी प्रचलन में दिखाई देती है।
नगर के सामाजिक संगठन पीपला वेलफेयर फाउंडेशन के संयोजक व मूर्तियों की जानकारी संकलन कर रहे समाजसेवी महेन्द्र पटेल बताते हैं इस प्रकार की प्रतिमाएं नगर में अन्यत्र कहीं और देखने को नहीं मिलती। यहां स्थित प्रतीमा में एक ही पत्थर में नवग्रहों की सुंदर छवि को दर्शाया गया है। काफी लंबे समय से यह प्रतिमा खुले में होने के कारण कुछ मूर्तियां खंडित हो चुकी है। ऐसी दुर्लभ प्रतिमाओं को संरक्षण की आवश्यकता है।