महातपस्वी महंत भगवान दास जी अग्नि रूप में लाए थे मां हिंगलाज को
महातपस्वी महंत भगवान दास जी अग्नि रूप में लाए थे मां हिंगलाज को
सुरेंद्र जैन/धरसींवा
विंध्याचल की सुरम्य वादियों की गोद में बसा मध्य प्रदेश के रायसेन जिले का बाड़ी वैसे तो हिंदू जैन सनातन धर्मियों के हजारों साल प्राचीन धार्मिक स्थलों से भरा पड़ा है लेकिन अभी हम बात कर रहे हैं माता रानी हिंगलाज देवी की जिन्हें लगभग पांच सौ साल पहले खाकी संप्रदाय के महातपस्वी महंत भगवान दास जी कठिन तपस्या के बाद अग्नि रूप में दर्शन कर बाड़ी लाए थे....भोपाल से जबपुर की ओर जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग 45पर भोपाल से 103किलो मीटर की दूरी पर यह पावन पवित्र उप शक्तिपीठ है....राजमार्ग के उत्तर में विंध्याचल की तलहटी में मां हिंगलाज का दरबार है जहां चैत्र ओर शारदीय नवरात्रि का बड़ा महत्व है प्रतिदिन देर रात से ही दूर दूर से मां हिंगलाज को जल चढ़ाने आने वालों की अपार भीड़ लगने लगती है....बाड़ी का खाकी अखाड़ा श्रीरामजानकी मंदिर महामंडलेश्वर गादी रहा है यहीं से भोपाल के कमाली मंदिर सहित एक सौ पांच मंदिरों का संचालन होता था,....खाकी संप्रदाय के तपस्वी महंत यहां गर्म राख अपने शरीर पर लगाते थे और कठिन तपस्या करते थे.....इन्हीं तपस्वियों में से महंत भगवान दास जी थे एक बार उन्हें मां हिंगलाज ने स्वप्न में दर्शन दिए लेकिन मां की आज्ञा क्या है इस बात को लेकर वह बेचैन रहने लगे और एक दिन यात्रा का मन बना लिया अस्वस्थता के चलते उन्हें सभी ने मना किया लेकिन महंत जी ने जब नहीं माने तो सभी ने एक शिष्य को साथ ले जाने का कहा तब एक शिष्य को साथ लेकर वह पदयात्रा करते हुए निकले....कहते हैं कि करीब दो वर्ष की पदयात्रा करते करते वह पाकिस्तान के बलूचिस्तान के घनघोर जंगल पहुंचे ही थे कि सामने उन्हें अचानक एक वन कन्या दिखाई दी और उसने महंत जी से कुछ सवाल किए जिन्हें सुनते ही महंत भगवान दास जी को यह आभास हो गया कि हो न हो यह तो मेरी आराध्य देवी मां हिंगलाज ही हैं और महंत जी ने अग्नि रूप में दर्शन की इच्छा जताई तब उस वन कन्या की देह से अग्नि प्रफुटित ही ओर आवाज आई भक्त तुम्हारी कामना पूर्ण हुई मेरी अग्नि प्राप्त कर लो और यथा स्थान स्थापित करना वहां जो भी सच्चे मन से मस्तक झुकाएगा उसकी हर कामना पूर्ण होगी....महंत जी उस अग्नि को कमंडल में लेकर जब वापस बाड़ी आए तभी खाकी अखाड़ा मंदिर के हाथी द्वार के समीप दाहिनी तरफ स्वतः वह अग्नि कमंडल से नीचे गिर गई....महंत जी ने पहले तो उस अग्नि को चारों तरफ से दीवार से बन पेक करा दिया लेकिन छह माह बाद जब मूर्ति स्थापित की तब देखा तो अग्नि उसी रूप में थी...महंत जी ने उसी अग्नि के ऊपर मां हिंगलाज किनोहरी प्रतिमा स्थापित कराई तभी से यह स्थान उप शक्तिपीठ के रूप में विख्यात हुआ....एक समय यहां जिनकी गोद सुनी रहती थी वह महिलाएं मन्नत मांगली उल्टा थापा लगाकर जाती थी और मन्नत पूरी होते ही पुनः दर्शनों को आकर थापा सीधा करती थी मां हिंगलाज का शृंगार कराती थी और नृत्य करती थी.....मुख्य शक्तिपीठ आग्नेय मां हिंगलाज तीर्थ पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित है कहते हैं कि सती की मृत देह के विभिन्न अंग गिरने से जो इक्यावन शक्तिपीठ विख्यात हुए उनमें हिंगलाज प्रमुखता शक्तिपीठ है यहां सती की देह का ब्रह्मरंध्र गिरा था...लेकिन बाद में इस प्रमुखतम शक्तिपीठ को पाकिस्तान में नानी ओर यहां की यात्रा को नानिकी हज कहने लगे....इसी स्थान से बाड़ी की मां हिंगलाज का इतिहास जुड़ा होने से यह उप शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध हुआ...बीते कुछ सालों से बाड़ी के इस पवित्र स्थल पर संस्कृत महाविद्यालय भी स्थापित हो चुका है जहां बच्चे अपनी संस्कृति का संस्कृत में ज्ञान के रहे हैं