*26-27 अगस्त को सिंघू बॉर्डर में संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के प्रतिनिधियों ने लिया हिस्सा*
*एक बार फिर भारत से कंपनी राज के खिलाफ हुआ आवाज बुलंद*
*26-27 अगस्त को सिंघू बॉर्डर में संयुक्त किसान मोर्चा के राष्ट्रीय अधिवेशन में अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के प्रतिनिधियों ने लिया हिस्सा*
केंद्र सरकार की कॉरपोरेट हितैषी, किसान, कृषि और आम उपभोक्ता विरोधी कानून को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून पारित करने की मांग को दिल्ली सीमाओं पर जारी किसान आंदोलन को 26अगस्त को नौ महीना पूरा हुआ। 26 नवंबर 2020 को देश के किसान अलग अलग राज्यों से राजधानी दिल्ली के लिए निकले हुए थे जिन्हें 27 नवंबर को दिल्ली सीमाओं जैसे सिंघू-कुंडली, गाजीपुर, टिकरी, शाहजहांपुर में केंद्र सरकार द्वारा रोक दिया गया जहां पर किसान अनिश्चित कालीन धरना प्रदर्शन शुरू कर दिए। इस शांतिपूर्ण ऐतिहासिक किसान आंदोलन के नौ महीने पूरे होने पर सिंघू बॉर्डर में दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया गया है जिसमें अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के प्रतिनिधि के रूप में छत्तीसगढ़ से तेजराम विद्रोही, जागेश्वर जुगनू चंद्राकर, गोविंद चंद्राकार, पंकज चंद्राकर, मध्यप्रदेश से कॉम बैजनाथ विश्वकर्मा, कॉम तीजू सिंह, दिल्ली से कॉम उमाकांत, कॉम विमल त्रिवेदी, उत्तर प्रदेश से कॉम विकास, आंध्रप्रदेश से डी एच रंगनाथन सहित देश भर से किसान, मजदूर व नागरिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
तीसरे सत्र में सिंघू बॉर्डर के मुख्य मंच से संबोधित करते हुए हुए छत्तीसगढ किसान मजदूर महासंघ के संचालक मंडल सदस्य एवं अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के सचिव तेजराम विद्रोही ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा के देशव्यापी आह्वान पर छत्तीसगढ़ में लगातार धरना प्रदर्शन आंदोलन करते आ रहे हैं। छत्तीसगढ़ में किसान आंदोलन को और मजबूत करने के लिए आगामी 28 सितंबर को छत्तीसगढ़ के राजिम में किसान महापंचायत आयोजित किया जा रहा है जिसमे दिल्ली किसान आंदोलन के नेतृत्वकारी साथियों को आमंत्रित हैं। साथ ही संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा रखे गए प्रस्ताव का समर्थन करते हुए सुझाव रखा कि पूरे राज्यों में संयुक्त किसान मोर्चा की इकाइयों को मजबूत किया जाए। सार्वजनिक संस्थानों जैसे रेलवे, हवाई सेवा, औद्योगिक संस्थानों आदि सरकारी उपक्रमों के लिए किसानों से जमीनें ली गई थी। वर्तमान सरकार उन तमाम सरकारी उपक्रमों को निजीकरण ठेकाकरण कर बेचा जा रहा है। इस प्रकार जिस प्रयोजन के लिए जमीनें ली गई थी उस उद्देश्य के विरुद्ध कार्य हो रही है। इसलिए ली गई भूमि को किसानों को वापस किया जाए, उन उपक्रमों पर जिनका निजीकरण किया जा रहा है उस पूर्ण रूप से प्रतिबंध किया जाए। भारतीय अनुसंधान परिषद द्वारा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों के शब्दकोश से मोपला विद्रोह के 387 शहीदों के नाम हटाए जाने के खिलाफ निंदा प्रस्ताव की मांग की। क्योंकि मोपला विद्रोह एक किसान विद्रोह था जो 1921में केरल के मालाबार क्षेत्र के मोपला समुदाय द्वारा किसानों के साम्राज्यवादी और सामंतवादी शोषण के खिलाफ हुआ था। इसलिए हटाए गए 387शहीदों के नाम वापस जोड़ने की मांग किया।