वही समय सार्थक है जो परहित में ओर आत्मकल्याण के कार्य में लगता है ,, संत श्री राम बालक दास जी - fastnewsharpal.com
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वही समय सार्थक है जो परहित में ओर आत्मकल्याण के कार्य में लगता है ,, संत श्री राम बालक दास जी

 वही समय सार्थक है जो परहित में ओर आत्मकल्याण के कार्य में लगता है ,, संत श्री राम बालक दास जी



27 जनवरी

प्रतिदिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन  श्री राम बालक दास जी के विभिन्न ऑनलाइन गृपों में आज भी  प्रातः 10:00 से 11:00 बजे तक किया गया

 जिसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किये

      आज सनातन चेतन जी ने जिज्ञासा रखी की   महाराज जी व्रत और उपवास में क्या अंतर है,  प्रकास डाले, बाबा जी ने बताया कि ब्रत में हम केवल भोजन का त्याग करते हैँ और उपवास में हम भगवान का भजन पूजन यज्ञ जप के साथ  अनुष्ठान करते हैं और इसमें कई तरह के उपवास भी हो सकते जैसे इसमें मौन व्रत भी आता है और यह भगवान के सानिध्य में रहकर एक ही जगह पर स्थिर होकर किया जाता है इसमें व्यक्ति चलायमान नहीं होता जैसे हम एकादशी करते हैं और दुकान भी जा रहे हैं बाजार भी जा रहे हैं अपने सारे काम भी कर रहे हैं और सिर्फ भोजन का त्याग करें यह व्रत के अंतर्गत आता है पर उपवास परमात्मा  के नजदीक वास करने को कहते है

         गजेंद्र जी गोरखपुर ने तिलक की महिमा पर प्रकाश डालने की विनती बाबाजी की बाबाजी ने बताया कि तिलक कई तरह के होते हैं कोई लंबी  ओर कोई चौड़ी तिलक करता है ये हर तरह के आकार के हो सकते हैं माता भगवती को काला  ध्रुम रंग का तिलक पसंद होता है  36 तिलक वैष्णव धर्म में, 24 तिलक सन्यासी के और 12 तिलक देवी भक्तों के होते है  कुल मिलाकर 72 तिलक होते हैं, बाबा जी ने बताया कि वैष्णव  संप्रदाय में जो तिलक प्रचलित है 

 वह राम स्वरूप के अंतर्गत आते हैं उनके इस तिलक में श्री राम लक्ष्मण   माता सीता का प्रतीक है एवं हम संतो के मस्तक पर स्थापित तिलक मे श्री राम जी को और लक्ष्मण जी को 2 रेखाएं प्रदर्शित करती है और बीच में लाल कुमकुम  माता सीता का प्रतिनिधित्व करती है और नीचे आसन की तरह गोल बिंदी चरणों मे  बैठे हनुमान जी का प्रतीक है

    आशीष मुंदड़ा जी ने कबीर जी के दोहे

"  कबीर संगत साधु की साहिब आवे याद,लेखे में सोई घड़ी,बाकी दे दिन बाद " प्रकाश डालने  की विनती बाबाजी से की बाबा जी ने बताया कि जो जैसा संगति पाता है उसका चरित्र भी वैसा ही हो जाता है यदि आप संतो के साथ रहेंगे तो आपका जीवन भी संतों की भांति होगा, इन पंक्तियों में कबीर दास जी स्पष्ट कर रहे हैं कि जब कभी सच्चे सन्त-महापुरुषों से मिलाप होता है, तब उनकी संगति में जाकर मालिक की याद आती है, भजन की शुरुआत होती है। वास्तव में वही घड़ी सफल है, शेष दिन जीवन के निरर्थक हैं।, बाबा जी ने बताया कि  वही आपकी वास्तविक आयु है जब आप सच्चे संत को पाकर भगवान का भजन करते हैं, वही वास्तविक धन है जो आप दान करने परमार्थ करने में लगाते है

 क्योंकि वही आपके साथ जाएगा, और वही सच्ची संतान है जो भगवान का स्मरण करते हुए आपका आज्ञाकारी है

     इस प्रकार आज का ऑनलाइन सत्संग संपन्न हुआ

 जय गौ माता जय गोपाल 

जय सियाराम

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