आडंबर और अंधविश्वास के अंधरे में ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले गुरु घासीदास
आडंबर और अंधविश्वास के अंधरे में ज्ञान का प्रकाश फैलाने वाले गुरु घासीदास
'मंदिरवा म का करे ल जइबो, अपन घट के देव ल मनइबो, पथरा के देवता ह हालत हे न डोलत, अपन मन ल काबर भरमइबो' (मंदिर में क्या करने जाएंगे, अपने हृदय के अच्छे विचारों को मानेंगे, पत्थर के देवता हिलता-डुलता नहीं है, अपने मन को क्यों भ्रमित करेंगे) इस बात को घासीदास जी उस समय कहा जब वे जगन्नाथ पुरी के यात्रा में जा रहे थे। उसके बाद आधे रास्ते से सारंगगढ़, रायगढ़ से वापस हो गए। और उन्होंने कहा कि मंदिर में क्या करने जाएंगे। जो अपनी खुद की रक्षा नहीं कर सकता वह क्या मनुष्य की सुनेगा। हम लोग कितने बड़े मूर्ख हैं, पत्थर की पूजा करते हैं जो कुछ बोल नहीं सकता है, न चल सकता है, न खा सकता है, न पी सकता और न उठ-बैठ सकता है। उसके तीर्थ जाकर हमलोग अपने समय और धन को नष्ट कर रहे हैं।
इस प्रकार के अंधविश्वास, रूढ़िवाद और परंपरावाद के खिलाफ जोरदार विरोध किए। घासीदास जी ने मूर्ति पूजा कभी नहीं करने की बात कही और लोगों को अपने मनोबल को बढ़ाने की अपील की। इसके लिए उन्होंने कहा कि अपने हृदय के अच्छे विकारों को मानेंगे, मन से बढ़कर के कुछ देवता नहीं है। हम लोग पत्थर की पूजा करते हैं। ये हमारी मानसिक बीमारी है, मन को पूजा-पाठ और पाखंड से दूर रखकर कर्म और मेहनत में विश्वास करें।
घासीदास जी समानता की बात भी कही। उसका कहना है कि मनखे-मनखे एक समान (मानव-मानव एक समान)। अरे भाई सभी मनुष्य एक बराबर है, जाति-धर्म के भेद को बनाकर क्यों लड़-मर रहे हो। गुरु घासीदास ये सब इसलिए कहा क्योंकि वे खुद इस पीड़ा को भोग चुके थे। गुरु घासीदास जी का जन्म 18 दिसंबर 1756 में छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले (वर्तमान में बलौदा बाजार-भाटापारा जिले) के गिरौदपुरी गांव में एक गरीब किसान परिवार में हुआ था।
उस समय में गरीब कमजोर के ऊपर बहुत शोषण और अत्याचार होते थे। अपने आप को उच्च जाति कहने वाले पाखंडी लोग कमजोर मनुष्य को शिक्षा और सार्वजनिक जगहों से दूर रखकर अपमानित करने के लिए नीच जाति कहते थे। इस पीड़ा को देखकर घासीदास जी सतनामी पंथ बनाए। दबे-कुचले मनुष्य को इकठ्ठा किए और कहा कि ये सब अपने आप को उच्च जाति समझने वालों और जाति-धर्म के नाम पर धंधा करने वालों की चाल है। जो आडंबर में फंसाकर शोषण और अत्याचार करते हैं, इसीलिए तुम लोग पोथी-पुराण और पत्थर पूजा में मत उलझो और सत्य को जानो और मानो।
जो दिख रहा है उस पर भरोसा करो, काल्पनिक बात के खुल कर विरोध करो। जो यथार्थ को मानेंगे, वहीं सतनामी कहलाएंगे। इस प्रकार के दलित-शोषित वर्ग को इकट्ठा करके समाज में बहुत बदलाव किए, तब जाकर शोषित-पीड़ित लोगों को सम्मान मिल पाए। पिछड़ा वर्ग के मनुष्य के लिए घासीदास जी मसीहा है। जो वैज्ञानिक सोच और प्रगतिशील विचारों को फैलाकर आडंबर के पेड़ पर कुल्हाड़ी चलाए। गुरु घासीदास जी अंधविश्वास और रूढ़िवाद के घोर अंधेरे में ज्ञान का प्रकाश कर नया सबेरा लाए.