संतान प्राप्ति अउ दीर्घायु के कामना के परब हलषष्ठी:-
संतान प्राप्ति अउ दीर्घायु के कामना के परब हलषष्ठी:-
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष के छठ तिथि के दिन मनाय जाथे। ए कमरछठ, हरछठ के नाम से भी जाने जाथे।
इही दिन भगवान श्री कृष्ण के ज्येष्ठ भ्राता बलराम के जन्म होय रिस। ए कारण इही दिन बलराम के जन्मोत्सव के रूप म भी मनाय जाथे । एकर पूजा हलषष्ठी परब के साथ–साथ इनकर शस्त्र हल अउ मूसल के भी पूजा करे जाथे। इहाँ ल ध्यान देने के बात ए हावय की हमर देश ह कृषि प्रधान देश आय। जिहाँ किसान अउ उनकर खेती– बाड़ी म कारज अवईया उपकरण के विशेष पूजा होथे।एकर बिना कोनो भी कृषि कारज ह सम्पन्न नही होवय।अउ इही हर भारतीय संस्कृति के रूप म हमन ल दिखाई देथे। अउ सब के प्रतिनिधि के रूप म बलराम जी ल माने जाथे।ओकरे जईसे पुत्र के कामना करत जम्मो माता मन ए व्रत ल रखथें । माता मन ए दिन संकल्प लेके दीवार म भईस के गोबर से छट माता के चित्र बनाथे, अउ एकर साथ म गणेश,कार्तिकेय,पार्वती के पूजा करथें।एक छोट अकन तरिया भी बनाय जाथे,जेमा बोईर, परसा अउ काशी के पेड़ ल उगाए जाथे।ओ तरिया म पानी भरे जाथे। अउ ओकर तिर बईठ के माता मन छठ के कथा ल सुनथें।ए कथा ह कुछ ए प्रकार से आथे–"चंद्रवत नाम के एक धर्मनिष्ठ राजा रहिस ओहर प्रजा के कल्याणार्थ अड़बड़ अकन तरिया खनवाईस पर ओमा पानी नई रहिस, अवईया -जवईया सब प्रजा मन राजा ल भला बुरा कहे लागिन।जब राजा ल ए बात मालूम होईस त ओला अबड़ दुख होईस।उही रात के राजा ल वरुण देव के सपना आथे अउ कथे की- “तय हर अपन इकलौता पुत्र ल बलि देबे त तरिया म पानी हर लबालब भर जाही।“ ए बात ल राजा हर अपन साभसद मन ल सुनाईस अउ कहिस की- “चाहे जो भी हो जाए मैं अपन पुत्र के बलि नहीं दे सकंव।“ ए बात ल ओकर पुत्र ल पता चल जाथे ओहर धर्म के मर्यादा और प्रजा के हित के लिए अपन आप ल बलि देके स्वयं तरिया म जा बईठथे। जईसे ही ओहर तरिया म बईठिस ओेसने ही तरिया ह पानी म भर जाथे।अपन इकलौता पुत्र के बलि से राजा अड़बड़ दुखी होके ओहर जंगल तरफ चल देथे। उहाँ ओहर देखिस की कुछ स्त्री में कुछु व्रत करत़ हावय,राजा ओ करा जाके पुछिस,त ओ स्त्री मन पुत्र के मंगल कामना अउ हलषष्ठी के विधान ल बताईस।तब राजा हर विधि विधान पूर्वक ए व्रत ल करिस।तब ओकर पुत्र ह जीवित होगे। अउ तरिया ले बाहिर आगे। ए प्रकार से माता मन पुत्र के दीर्घायु अउ संतान प्राप्ति के लिए ए व्रत करथें।ए दिन माता मन जे जगह नागर चले रहिथे ओ जगह के फसल से बने व्यंजन के उपयोग नई करय। इहाँ उहाँ तरीया डबरा म अपने अपन जागे पसहर चाउर के उपयोग खीर अउ पांच प्रकार के भाजी बनाके ओकर भोग लगाके अपन व्रत ल पूर्ण करथें।भईस दूध के सेवन करे जाथे. भईस के दूध से बने व्यंजन ल ग्रहण करे जाथे।
हमर हिंदू संस्कृति म गाय ल गउ माता के रूप म माने जाथे।इही ल कामधेनु कहे जाथे।ठीक अईसन हे महत्व हमर संस्कृति म भईस के भी हावय।ओकर दूध बलवर्धक रथे, अउ यम देव के वाहन भी इही भईसा हर आय।माता मन के द्वारा इही भईस के दूध से बने चीज के भोग लगाय जाथे। अउ यमराज ले दीर्घायु जीवन के कामना करथे। ए प्रकार से ए व्रत हर लंबा उम्र के प्रतीक माने जाथे।