दिगंबर जैन धर्म के पर्वाधिराज पर्युषण पर्व क्या हैं..?? दशलक्षण पर्व ओर क्या है महत्व... - fastnewsharpal.com
फास्ट न्यूज हर पल समाचार पत्र,

दिगंबर जैन धर्म के पर्वाधिराज पर्युषण पर्व क्या हैं..?? दशलक्षण पर्व ओर क्या है महत्व...

 दिगंबर जैन धर्म के पर्वाधिराज पर्युषण पर्व क्या हैं..?? दशलक्षण पर्व ओर क्या है महत्व...



    सुरेन्द्र जैन /धरसींवा 


दिगंबर जैन समाज के महा पर्व पर्वाधिराज पर्युषण पर्व  19 सितंबर मंगलवार से प्रारम्भ हो रहे हैं। यह दस दिन तक चलते हैं दस धर्मो पर आधारित होने से इन्हें दशलक्षण पर्व भी कहा गया है। वैसे यह  पर्व साल में तीन बार आते हैं


(1) *भादों सुदी पंचमी से चौदस तक,* 

(2) *माध सुदी पंचमी से चौदस तक और*

(3) *चैत्र सुदी पंचमी से चौदस तक।*


किन्तु पूरे देश में विशाल रूप और उत्साह से यह पर्व भादों सुदी पंचमी से चौदस तक मनाया जाता है।


जहां भी पर्व का नाम आता है तो मन में एक कल्पना आ जाती है कि खूब तड़क भड़क और मौज मजा। किन्तु जैन समाज के इस पर्व में धार्मिक बंधु संयम से रहते हैं, पूजन-पाठ करते हैं, व्रत -नियम-उपवास रखते हैं और हरित पदार्थों से परहेज रखते हैं। अतः ये पर्व त्याग का पर्व है और इसीलिये इसे महा पर्व कहा जाता है. 


धर्म, जो व्यक्ति को दुःख से मुक्त कराकर सुख तक पहुंचा दे, उसे धर्म कहते हैं। इस धर्म के दस लक्षण कहे गए हैं:

 

*उत्तम क्षमा, उत्तम मार्दव, उत्तम आर्जव, उत्तम शौच, उत्तम सत्य, उत्तम संयम, उत्तम तप, उत्तम त्याग, उत्तम आकिंचन्य और उत्तम ब्रह्मचर्य।* 


ये उत्तम दस धर्म आत्मा के भावनात्मक परिवर्तन से उत्पन्न विशुद्ध परिणाम हैं, जो आत्मा को अशुभ कर्मों के बंध से रोकने के कारण संवर के हेतु हैं। ख्याति, पूजा आदि से निरपेक्ष होने के कारण इनमें "उत्तम" विशेषण लगाया गया है।


पर्युषण महा पर्व का प्रत्येक दिन धर्म के दस लक्षण को समर्पित है:


1. *उत्तम क्षमा* : उत्तम क्षमा को धारण करने से मैत्रीभाव जागृत होता है। इससे कुटिलताएं समाप्त होकर शत्रुता मिट जाती है।

 

2. *उत्तम मार्दव* : उत्तम मार्दव धर्म को धारण करने या अपनाने से मान व अहंकार का मर्दन हो जाता है तब विनम्रता और विश्वास प्राप्त होता।


3. *उत्तम आर्जव* : उत्तम आर्जव को अपनाने से मन राग-द्वेष से मु‍क्त होकर एकदम निष्कपट हो जाता है। सरल हृदय व्यक्ति के जीवन में ही सुख, शांति और समृद्धि होती है।

 

4. *उत्तम सत्य* : जो मन, वचन और कर्म से सत्य को अपनाता है उसकी संसार सागर से मुक्ति निश्चित है।

 

5. *उत्तम शौच* : परमशांति हेतु मन को निर्लोभी बनानाना और संतोष धारण करना ही शौच है।

 

6. *उत्तम संयम* : संयम धारण करने वाले मनुष्य का जीवन सार्थक तथा सफल है। इससे कई तरह की फिजूल बातों से बचा जा सकता है।

 

7. *उत्तम तप* : शास्त्रों में वर्णित बारह प्रकार के तप से जो मानव अपने तन, मन और संपूर्ण जीवन को परिमार्जिन या शुद्ध करता है, उसके जन्म जन्मांतर के पाप कटकर कर्म नष्ट हो जाते हैं।

 

8. *उत्तम त्याग* : मन, वचन और कर्म से जो त्याग करता है उसके लिए मुक्ति सुलभ है। त्याग में ही संतोष और शांति का भाव है।

 

9. *उत्तम आकिंचन्य* : जिस व्यक्ति ने अंतर बाहर 24 प्रकार के परिग्रहों का त्याग कर दिया है, वो ही परम समाधि अर्थात्‌ मोक्ष सुख पाने का हकदार है।

 

10. *उत्तम ब्रह्मचर्य* : ब्रह्मचर्य का पालन करने वाले को रिद्धि, सिद्धि, शक्ति और मोक्ष मिलता है।

Previous article
Next article

Articles Ads

Articles Ads 1

Articles Ads 2

Advertisement Ads