*शिक्षा विभाग में अंधे के हाथ बटेर*
*शिक्षा विभाग में अंधे के हाथ बटेर*
फिंगेश्वर
स्कूल शिक्षा विभाग योजना अंतर्गत खेलगढीया योजना से स्कूलों में खेल सामग्री क्रय न कर स्कूलों में टेलीविजन खरीदा गया और वह भी ऐसी स्कूलों में जहां बिजली कनेक्शन उपलब्ध नहीं है। इस पूरे भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया तत्कालीन जिला मिशन समन्वयक श्याम चंद्राकर ने। तत्कालीन कलेक्टर गरियाबंद श्रीमती नम्रता गांधी के द्वारा 4 सदस्य जांच कमेटी का गठन कर जांच करवाई गई। जिसमें अपर कलेक्टर जे.आर.चौरसिया, जिला कोषालय अधिकारी बी.के. तिवारी, जिला योजना एवं सांख्यिकी अधिकारी एसके बंजारे तथा जिला उद्योग एवं व्यापार महाप्रबंधक एस. के.सिंह ने विभिन्न पक्षों का वक्तव्य लेने के उपरांत स्पष्ट रूप से अपना अभिमत दिया कि तत्कालीन जिला मिशन समन्वयक श्याम चंद्राकर के मौखिक निर्देश के कारण खेलगढ़िया मद की राशि से टेलीविजन क्रय किया गया। अतः तत्कालीन जिला मिशन समन्वयक श्याम चंद्राकर ही प्रथम दृष्टया पूर्णतया दोषी है। उक्त जांच रिपोर्ट लोक शिक्षण संचालनालय नया रायपुर को पत्र क्रमांक 92 दिनांक 21.01.2022 को कलेक्टर महोदया द्वारा भेजी गई परंतु किसी भी प्रकार की कार्रवाई नहीं की गई। तत्पश्चात पुनः कलेक्टर महोदया द्वारा पत्र क्रमांक 370 दिनांक 04.04.2022 को सचिव स्कूल शिक्षा विभाग को कार्यवाही हेतु पत्र लिखा गया। परंतु अपनी राजनीतिक पहुंच के कारण अपने आप को जिला मिशन समन्वयक बचाने में कामयाब रहे।
समाचार पत्रों में बार-बार खबर प्रकाशित होने पर दबाव बढ़ने के कारण स्कूल शिक्षा विभाग ने तत्कालीन जिला मिशन समन्वयक को पद से हटाते हुए शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय नागाबूड़ा में व्याख्याता संस्कृत के पद पर भेज दिया। परंतु एक बार फिर से शासन के आदेश को अंगूठा दिखाते हुए जिला खेल अधिकारी के पद पर जुगाड़ लगाकर आदेश करवाने में सफल हो गए। आरटीआई एक्टिविस्ट के द्वारा जन सूचना अधिकारी स्कूल शिक्षा विभाग को जब सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई कि कलेक्टर महोदय के शिकायती पत्र पर आज पर्यंत क्या कार्रवाई की गई तो स्कूल शिक्षा विभाग उक्त अधिकारी को संरक्षण प्रदान करते हुए संचालक लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा कार्यवाही करने की बात कही गई। वही लोक शिक्षण संचालनालय द्वारा स्कूल शिक्षा विभाग के द्वारा कार्यवाही करने की बात कही गई। इस प्रकार विभाग के आला अधिकारी ही उक्त भ्रष्ट अधिकारी को बचाने में लगे हुए हैं। क्योंकि गरियाबंद जैसे जिले में जहां शिक्षकों की कमी देखने को मिलती है ऐसे जिले में स्कूल ना जाकर कार्यालय में संलग्न हो जाना अपने आप में जोड़ तोड़ की रणनीति को प्रमाणित करता है। यहां सवाल यह उठता है कि उनके जिला खेल अधिकारी रहते हुए जिले में छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आगाज हुआ परंतु इन्होंने खेल अधिकारी के रूप में अपना दायित्व का निर्वहन कभी भी नहीं किया है। यदि उनसे खेल से संबंधित मूलभूत नियमों की जानकारी पूछा जाए तो वे निश्चित रूप से बताने में असमर्थ रहेंगे। एक ओर स्कूल शिक्षा विभाग ने समस्त प्रकार के शिक्षकों के संलग्नीकरण को समाप्त करने का आदेश जारी किया है, परंतु अपनी राजनीतिक पहुंच के चलते यह महाशय आज भी जिला खेल अधिकारी के रूप में जिले में पदस्थ हैं। जिस विद्यालय में इनकी पद स्थापना की गई है उस विद्यालय में संस्कृत का अन्य कोई व्याख्याता उपलब्ध नहीं है, जिस कारण उक्त विद्यालय में संस्कृत का अध्यापन बुरी तरीके से प्रभावित हो रहा है। यहां बताना यह दिलचस्प होगा कि उक्त व्याख्याता ने कभी भी किसी भी उच्चतर माध्यमिक विद्यालय में अध्यापन का कार्य एक भी दिन नहीं किया है। अपनी राजनीतिक पकड़ के कारण ऐसे शिक्षक जिला शिक्षा विभाग की अभिनव पहल उत्कृष्ट गरियाबंद के नोडल अधिकारी बने हुए हैं जोकि जिले में चर्चा का विषय बना हुआ है।